Campaign : कैटल कॉलोनी बनी, प्लॉट एक भी नहीं बिका
आगरा(ब्यूरो)। शहर में जगह-जगह तबेले बने हुए हैं। नगर निगम अधिकारियों के अनुसार शहर में 92 हजार पशु हैं। 700 से अधिक पशुपालक हैं। ये शहर के विभिन्न एरियाज में हैं। इनमें से अधिकतर तबेले गोबर नाली में बहाते हैं। नाली के जरिए ये गोबर नाले में और आखिरी में यमुना में पहुंचता है। इन तबेलों को शिफ्ट करने के लिए गत दिनों नगर निगम ने विकास प्राधिकरण को जमीन उपलब्ध कराने के लिए कहा था। इसके संबंध में एडीए ने नगर निगम को पत्र लिखकर बताया है कि बुढ़ाना गांव में कैटल कॉलोनी के लिए प्लॉट आरक्षित किया गया है। वर्ष 2018 से अभी तक एक भी आवेदन नहीं आया है।
सस्ती दरों पर उपलब्ध कराने थे प्लॉट
तहसील सदर के गांव बुढ़ाना में कैटल कॉलोनी के लिए रिजर्व किया प्लॉट करीब 47290 स्क्वायर मीटर का है। इसमें करीब 144 प्लॉट काटे गए थे। प्रति प्लॉट का एरिया करीब 144 स्क्वायर मीटर है। पशुपालकों को सस्ती दरों के प्लॉट उपलब्ध कराने के लिए यहां कीमत भी करीब 7420 रुपए स्क्वायर मीटर तय की गई थी। वर्ष 2018 में रजिस्ट्रेशन ओपन किए गए, लेकिन अब तक एक भी आवेदन नहीं आया।
- 92 हजार शहरी क्षेत्र में पशु
- 700 से अधिक पशुपालक
- 47290 स्क्वायर मीटर में बननी है कैटल कॉलोनी
- 7420 रुपए स्क्वायर मीटर तय की गई थी रेट
- 144 प्लॉट पशुपालकों के लिए
शहर में तबेले होने से पशुपालक पशुओं को नहलाने के लिए यमुना में जाते हैं। इसे रोकने के लिए कई बार नगर निगम की टीम और पशुपालक के बीच टकराव भी हुआ। कई पशुओं को पकड़कर तबेला संचालकों से जुर्माना वसूला गया। शहर के विभिन्न क्षेत्रों में तबेला हटाने को लेकर भी अभियान चलाया गया, लेकिन कैटल कॉलोनी में किसी ने भी तबेला शिफ्ट नहीं किया। महंगी है कैटल कॉलोनी की जमीन
पशुपालक सुभाष ढल ने बताया कि पहले कालिंदी विहार में कैटल कॉलोनी बनाई गई थी। उसके बाद गांव बुढ़ाना में कैटल कॉलोनी बनाने का प्रस्ताव लाया गया। लेकिन यहां जमीन इतनी महंगी थी कि जिसे तबेला संचालक अफॉर्ड नहीं कर सकते थे। सरकारी विभाग परेशान करते थे। ऐसे में उन्होंने तबेला को शहर की सीमा से बाहर शिफ्ट किया।
यमुना में भैंसों को जाने से काफी हद तक रोक दिया गया है। लगातार कार्रवाई का असर है कि अब पशुपालक भैंसों को लेकर यमुना की ओर आने से बचते हैं। शहरी सीमा से तबेलों को शिफ्ट करने के लिए बुढ़ाना में कैटल कॉलोनी बनाई गई। लेकिन यहां प्लॉट खरीदने में किसी ने भी रुचि नहीं दिखाई है।
डॉ। अजय कुमार सिंह, वेटनरी ऑफिसर, नगर निगम
नरेश
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तबेला को लेकर लगातार सरकारी विभाग परेशान करते हैं। लेकिन कोई जमीन उपलब्ध नहीं कराई। जमीन दी भी गई तो इतनी दूर कि वहां तबेला शिफ्ट करना मुमकिन नहीं है।
भल्ला
हम गोबर को नालियों में नहीं बहाते हैं। खाद बनाने के लिए हमसे ट्रैक्टर-ट्रॉली वाले ले जाते हैं। अगर तबेला को शहर से बाहर ले जाएंगे तो दूध महंगा हो जाएगा।
वसीम