प्याज के छिलके से होगा कैंसर मरीजों का इलाज
घर से निकले वेस्ट से रिसर्च
पीएचडी स्कॉलर शिवानी चौधरी ने वर्ष 2018-19 में आईबीएस में पीएचडी स्कॉलर के रूप में एडमिशन लिया। वह एग्रीकल्चर वेस्ट पर रिसर्च कर रहीं हैं। शिवानी ने बताया कि घर से निकलने वाला एग्रीकल्चर वेस्ट का प्रॉपर डिस्पोजल आवश्यक है। अगर ये प्रॉपर डिस्पोज नहीं हो पाता है तो ह्यूमन बॉडी के लिए बहुत खतरनाक होता है। अगर इसको जलाया जाता है तो ये सांस रोगियों को नुकसान पहुंचाता है, जमीन में दबाया जाताा है तो मिट््टी की उपजाऊ क्षमता को खत्म कर देता है। इसके लिए उन्होंने इस एग्रीकल्चर वेस्ट के रिसाइकलिंग पर रिसर्च कार्य शुरू किया। शुरूआत में उन्होंने अभी ओनियन और गेहूं की भूसी पर रिसर्च किया है। जिससे तैयार कंपोजीशन का सिर्फ मेडिसिन में ही नहीं, बल्कि कैंसर पेशेंट के लिए काफी मददगार है।
इनके लिए मददगार
- घावों को भरना
- दवाइयां
- कैंसर मरीज
ये होगा घर से निकलने वाला एग्रीकल्चर वेस्ट
- फल-सब्जी के छिलके
- आटा से निकलने वाली भूसी
- अन्य एग्रीकल्चर प्रोडक्ट का वेस्ट
इस तरह तैयार होता है कंपोजीशन
शिवानी ने बताया कि रिसर्च के लिए उन्होंने अपने घर से निकलने वाले एग्रीकल्चर वेस्ट का ही इस्तेमाल किया। वह अपने घर से प्याज के छिलके लेकर कॉलेज की लैब पहुंची। प्याज के छिलकों को सही से धोया। इसके बाद उन्हें सूखाकर अच्छे से क्रश किया गया। लैब में केमिकल और अन्य नैनो पार्टिकल मिलाकर तैयार किया गया। जो कंपोजीशन तैयार हुआ वह घाव को भरने, कैंसर मरीजों के इलाज और अन्य दवाइयों के लिए बहुत उपयोगी है। इसको लेकर उन्होंने रिसर्च पेपर भी तैयार किया जो पब्लिश हो चुका है।
अभी एग्रीकल्चर वेस्ट का नहीं होगा सेग्रीगेशन
पीएचडी स्कॉलर शिवानी बताती हैं कि घर से निकलने वाले कचरे में बड़ी मात्रा में एग्रीकल्चर वेस्ट की मात्रा होती है। अभी घरों से निकलने वाले गीले और सूखे कचरे को सेग्रीगेट किया जाता है। लेकिन एग्रीकल्चर वेस्ट की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता है। जबकि इसका सही से उपयोग किया जाए तो ये ह्यूमन बॉडी के लिए काफी हेल्पफुल साबित हो सकता है। उम्मीद है कि सरकार इस पर पहल करेगी। कचरे के सेग्रीगेशन के दौरान एग्रीकल्चर वेस्ट को अगल किया जाएगा। इसके बाद उसे रिसाइकिल किया जा सकेगा।
रिसर्च महत्वपूर्ण क्यों?
कैंसर मरीज का इलाज काफी महंगा होता है। इस रिसर्च के बाद मरीजों को सस्ती दवाएं मुहैया हो सकेंगी। पीएचडी स्कॉलर शिवानी चौधरी ने बताया कि इस रिसर्च की सबसे अच्छी बात है कि इसके लिए जो भी रॉ मेटेरियल चाहिए, वह वेस्टेज है। यानी अब भी ये वेस्ट घर से लगातार निकल रहा है, जो हार्मफुल साबित हो रहा है। वहीं जब इसको रिसाइकिल किया जाएगा तो ये हार्मफुल की हेल्पफुल बनकर साबित होगा। ऐसे में इसका रॉ मेटेरियल मिलना आसान है। हालांकि इसके कंपोजीशन को तैयार करने में खर्चा आएगा, लेकिन फिर भी ये मौजूदा कैंसर की दवाओं से सस्ता ही साबित होगा।
एग्रीकल्चर वेस्ट पर रिसर्च करने के दौरान कैंसर मरीजों के लिए महत्वपूर्ण दवा का पता लगा। ये मरीजों के लिए काफी मददगार साबित होगी। इसके साथ एग्रीकल्चर वेस्ट को रिसाइकिल करने से जहां एयर पॉल्यूशन को कंट्रोल किया जा सकता है तो वहीं ये पूरा प्रोसेज ईको फ्रेंडली भी है। शिवानी चौधरी, पीएचडी स्कॉलर कैंसर मरीजों और दूषित हो रहे पर्यावरण को बचाने में ये रिसर्च बहुत महत्वपूर्ण साबित होगी। इस रिसर्च का पेपर पब्लिश हो चुका है। प्रो। जे गौतम, शोध सुपरवाइजर, आईबीएस, केमिस्ट्री विभाग