आगरा: ङ्क्षहदी अपने वैभव और गौरव को पुन: प्राप्त कर रही है. ध्वजवाहक बने युवा इसे नित नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने के लिए प्रयासों में जुटे हैं. किसी ने साहित्य को माध्यम बनाया है तो किसी ने रंगमंच और शिक्षा को. प्रयास यही है कि ङ्क्षहदी भाषा का ध्वज अपनी भाषाई सीमा को तोड़कर स्वच्छंद होकर पूरे देश में फहराएं.शृंगार रस से सजा रहे ङ्क्षहदी कविताएं

बचपन में दादी की संगत में भजन-कीर्तन में मन ऐसा रमा कि बडे होकर शृंगार रस की कविताएं लिखना शुरू कर दिया। बल्केश्वर स्थित औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आइटीआई) में पढ़ रहे बोदला निवासी 24 वर्षीय मुकुल कुमार शृंगार रस की कविताएं लिखते हैं। हाल ही में दूरदर्शन(टीवी) चैनल पर प्रसारित वाह भई वाह कार्यक्रम में अपनी कविता प्रस्तुत करने का अवसर भी उन्हें मिला। स्थानीय स्तर पर आयोजित साहित्यिक कार्यक्रमों में भी उनकी ङ्क्षहदी की कविताएं पसंद की जाती हैं। मुकुल बताते हैं कि ङ्क्षहदी हमारी भावनाओं की भाषा है। इसमें सोचना और फिर उन्हें शब्दों में पिरोना, ऐसा भाव देता है जैसे हम भगवान के लिए पुष्पमाला तैयार कर रहे हों। इसलिए कविताएं स्वत: रोचक बन जाती हैं।


ङ्क्षहदी की विरासत संभाल रहे संकल्प
सेंट पीटर्स कालेज से 10वीं और 12वीं करने के बाद नोएडा के जेपी इंस्टीट््यूट से बायोटेक में बीटेक करने के बाद अभियांत्रिकी (इंजीनियङ्क्षरग) का राह खुली। लेकिन प्रेम ङ्क्षहदी से था, तो ङ्क्षहदी के क्षेत्र में जाने का मन बनाया। अभिनय क्षेत्र का विकल्प मिलते ही अमरलोक कालोनी, ताजगंज निवासी संकल्प भारद्वाज दिल्ली में रहकर ङ्क्षहदी के नाटकों, फिल्मों व विज्ञापनों में अभिनय कर परिवार की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। वह बताते हैं कि मां ङ्क्षहदी की व्याख्याता(प्रोफेसर) रहीं, इस कारण परिवार में ङ्क्षहदी की कविताएं, कहानियां और नाटक सुनने और पढऩे की आदत रही। ङ्क्षहदी अपनी सी भाषा लगती है, तो इसमें भावनाओं को व्यक्त करना आसान हो जाता है। ङ्क्षहदी से यह जुड़ाव परिवार की देन है, जो विद्यालय (स्कूल) से ही बढऩे लगी थी। तभी कक्षा 11वीं और 12वीं में वैकल्पिक विषय के रूप में ङ्क्षहदी विषय लिया। लगातार चार वर्ष तक ङ्क्षहदी वाद-विवाद प्रतियोगिता में प्रथम तीन स्थान प्राप्त किए।

अङ्क्षहदी भाषी क्षेत्र के हितेश ने बनाई अलग पहचान
अङ्क्षहदी भाषी क्षेत्र रेवाड़ी (हरियाणा) के गांव जांटी निवासी हितेश कुमार की कहानी थोड़ी अलग है। वह अपने गांव से पांच वर्ष पूर्व आगरा आए और यहां ङ्क्षहदी पढ़ाने के लिए अनुशिक्षण (कोङ्क्षचग) और स्कूलों में नौकरी तलाशने लगे। लेकिन उनकी हरियाणवी शैली की ङ्क्षहदी सुनकर उन्हें कई स्थानों पर मना कर दिया गया। एक कोङ्क्षचग ने पांच हजार रुपये महीने का प्रस्ताव दिया लेकिन उन्होंने विकल्प पर मंथन किया, तो सोच-विचार के बाद मना कर दिया। इसके बाद उन्होंने अंतर्जाल संचार मंच (सोशल मीडिया प्लेटफार्म) के माध्यम से आभासी माध्यम से पढ़ाना प्रारंभ किया। उनकी हरियाणवी शैली के साथ कविताओं और शायरियों के सम्मिश्रण वाली ङ्क्षहदी युवाओं को पसंद आने लगी। देखते ही देखते उनकी लोकप्रियता बढ़ी, तो उनसे प्रत्यक्ष (आफलाइन) पढऩे के लिए विद्यार्थी पहुंचने लगे। वर्तमान में वह प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए ङ्क्षहदी की तैयारी कराते हैं। ऑनलाइन-आफलाइन करीब पांच हजार विद्यार्थी उनसे ङ्क्षहदी सीख रहे हैं।

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सदर बाजार में ङ्क्षहदी के प्रति उदासीनता, अंग्रेजी में सूचना पट
सदर बाजार क्षेत्र शहर का प्रतिष्ठित बाजार है, लेकिन यहां ङ्क्षहदी के प्रति उदासीनता स्पष्ट नजर आती है। तर्क हो सकता है कि यहां विदेशी पर्यटक आते हैं, लेकिन उनसे अधिक संख्या भारतीय पर्यटकों की होती है, जिन्हें ङ्क्षहदी में लिखे सूचना पट (साइनबोर्ड) अधिक पसंद आते हैं। यहां की करीब 250 दुकानों में से 70 प्रतिशत से अधिक के सूचना पट अंग्रेजी भाषा में थे। सदर बाजार वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष भूषण कुमार बताते हैं कि सूचना पट पर दुकान और उत्पाद का नाम ङ्क्षहदी में लिखा जाए या अंग्रेजी में, यह दुकानदार का अधिकार है। संगठन उसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता।

Posted By: Inextlive