सांडर्स को मारने के बाद भगत सिंह अज्ञातवास के लिए आए थे आगरा
आगरा। सरदार भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु इन तीनों क्रांतिकारियों को 23 मार्च 1931 को एक साथ फांसी दी गई। यहां उन्होंने एक वर्ष का समय बिताया साथ ही लगातार तीन वर्ष तक वे आगरा के नूरी दरवाजे में रहे। उस समय आगरा में क्रांतिकारी गतिविधियों बहुत अधिक नहीं थीं, जिसके चलते आगरा शांत था। यहां रहने पर किसी को शक भी नहीं हुआ, वहीं आगरा में रहने के बाद इन क्रांतिकारियों को कैलाश, कीठम और भरतपुर के जंगलों का भी फायदा मिलता था।
इस हवेली में रुके थे भगत सिंह
भगत सिंह नूरी दरवाजे में किराये पर कमरा लेकर रहे थे, उस जगह का नाम अब भगत सिंह द्वार है। नूरी दरवाजा पर स्थित ये जगह आज भी शहीद भगत सिंह की यादों को ताजा करती हैं। और आज भी यह इमारत आजादी की गवाह बनी है, जहां सरदार भगत सिंह ने एक वर्ष का समय बिताया था, लेकिन आज ये इमारत जर्जर हो चुकी है। 23 मार्च शहीद भगत सिंह की शहादत का दिन है। इसी दिन लाहौर में उन्हें फांसी दी गई थी। नूरी दरवाजा इलाके में ही अंग्रेजी हुकूमत को हिलाने की प्लानिंग की थी।
अज्ञातवास के लिए आए थे आगरा
नवंबर, 1928 में ब्रिटिश पुलिस ऑफिसर जॉन पी सांडर्स को मारने के बाद भगत सिंह अज्ञातवास के लिए आगरा आए थे। भगत सिंह ने नूरी दरवाजा स्थित मकान नंबर 1784 को लाला छन्नो मल को ढाई रुपए एडवांस देकर 5 रुपए महीने पर किराए पर लिया था। यहां सभी छात्र बनकर रह रहे थे, ताकि किसी को शक न हो। उन्होंने आगरा कॉलेज में बीए में एडमिशन भी लिया था। घर में बम फैक्ट्री लगाई गई, जिसकी टेस्टिंग नालबंद नाला और नूरी दरवाजा के पीछे जंगल में होती थी।
लाला छन्नो ने लाहौर कोर्ट में दी गवाही
इसी मकान में बम बनाकर भगत सिंह ने असेंबली में विस्फोट किया था। जुलाई, 1930 की 28 और 29 तारीख को सांडर्स मर्डर केस में लाहौर में आगरा के दर्जन भर लोगों ने इसकी गवाही भी दी थी। जिसमें से सीता राम पेठे वाले भी शामिल हैं। वर्तमान इनकी दुकान कोठी के ठीक सामने हैं। सांडर्स मर्डर केस में गवाही के दौरान छन्नो ने ये बात स्वीकारी थी कि उन्होंने भगत सिंह को कमरा दिया था। नूरी दरवाजा इलाके में भगत सिंह का एक मंदिर भी बना है।
बम फोडऩे के बाद किया था सरेंडर
8 अप्रैल, 1929 को अंग्रेजों ने सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट्स बिल असेंबली में पेश किया था। ये बहुत ही दमनकारी कानून थे। इसके विरोध में भगत सिंह ने असेंबली में बम फोड़ा और इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाए। इस काम में बटुकेश्वर दत्त भी भगत सिंह के साथ थे। घटना के बाद दोनों ने वहीं सरेंडर भी कर दिया। इसी केस में 23 मार्च 1931 को लाहौर के सेंट्रल जेल में भगत सिंह को फांसी दे दी गई और बटुकेश्वर को उम्रकैद की सजा सुनाई गई।
नूरी दरवाज़ा इलाके में एक भगत सिंह की स्मृति में एक मन्दिर भी बना हुआ है, लेकिन भगत सिंह जिस हवेली में रहे, वो कभी भी गिर सकती है। शहीद भगत सिंह पेठा कुटीर उद्योग संस्था चलाने वाले और उस हवेली का मालिकाना हक जिसके पास है, राजेश अग्रवाल कहते हैं कि अगर सरकार इसे अधिग्रहीत कर संग्रहालय बनाए तो हम पूरा सहयोग देने के लिए तैयार हैं। उनका कहना है कि किसी वक्त इस हवेली से आज़ादी की रूपरेखा तैयार हुई।
बात उन दिनों की है जब हर कोई आजादी का दीवाना था, भगत सिंह रात को एक बजे आया करते थे, कोठी के सामने उस समय सीता राम हलवाई की दुकान थी, जो वर्तमान में पेठे का कारोबार करते हैं। यहां से कई लोग लाहौर जेल में गवाही के लिए गए थे। इसके बाद उनको फांसी दी गई। लाला राधेश्याम, नूरी दरवाजा