आगरा. क्या आपके बच्चे का पढ़ाई या खेल में आसानी से ध्यान भंग हो जाता है. रात को सोता नहीं है. लंबे समय तक वह एक जगह टिक कर नहीं बैठता है. बैठे होने पर भी बदन या हाथ और पैर को हिलाना या फिर आपकी पूरी बात को सुने बिना उत्तर देता है तो आप अलर्ट हो जाएं. उस पर लाड़ प्यार दिखाने के बजाए जल्द से जल्द मनोचिकित्सक को दिखाएं. हो सकता है बच्चा अटेंशन डेफिशिएंट हाइपरएक्टिविटी डिस्आर्डर एडीएचडी से पीडि़त हो. ये बच्चों में पाई जाने वाली एक मानसिक बीमारी है. एक्सपर्ट का मानना है कि अगर समय पर इसका इलाज नहीं होता है तो बड़े होने पर बच्चों में मानसिक टेंशन बढ़ जाती हैं और वे क्रिमिनल बन सकते हैं.

क्लास में दूसरे बच्चों को करते हैं डिस्टर्व
एसएन मेडिकल कॉलेज की डॉ। प्रतिभा शर्मा के अनुसार यह एक न्यूरो डेवलेपमेंटल डिस्आर्डर होता है। इसमें बच्चा अपने व्यवहार को कंट्रोल नहीं कर पाता। इसके तीन साल की उम्र में लक्षण दिखने लगते हैं। लड़कियों की तुलना में लड़कों में यह तीन गुना अधिक पाया जाता है। स्कूल जाने वाले पांच फीसदी बच्चे इससे प्रभावित होते हैं। ये बच्चे लगातार शोर मचाते रहते हैं। इनका व्यवहार नार्मल नहीं होता है। क्लास में बैठे-बैठे दूसरों बच्चों को छेड़ते रहते हैं।

दिमाग में केमिकल का इनबैलेंस
एडीएचडी होने के कारण बच्चों के दिमाग में केमिकल का इनबैलेंस होना प्रेग्नेंसी के दौरान मां का तनाव में होना। प्रीमिच्योर बच्चे का जन्म का देना। प्रेग्नेंसी के दौरान शराब या सिगरेट का सेवना करना। प्रेग्नेंसी के दौरान पौष्टिक खाने का अभाव होना। इससे बच्चों तीन साल की उम्र में दूसरे बच्चों की अपेक्षा अलग व्यवहार करते हैं।

इस तरह पहचान करें एडीएचडी की
बच्चों में लक्षण पढ़ते समय या खेल में आसानी से ध्यान भंग हो जाना। सामने-सामने बात करने पर ऐसा प्रतीत होना जैसे आपकी बात नहीं सुन रहा है। समझी हुई बातों या कार्यों में गलती करना। महत्वपूर्ण सामान्य-कार्यों को भूल जाना। ऐसे कार्यों को करने में आनाकानी करना, जिसमें एकाग्र होकर बैठना लगातार चलायमान रहना। जैसे कि शरीर में मोटर लगी हो। लंबे समय तक एक जगह नहीं बैठना, बैठे होने पर भी बदन का हिलना-डुलना और हाथ-पैरों का चलते रहना। अधिक दौडऩा, कूदना या फर्नीचर पर चढऩा, जिसकी इजाजत न हो अपनी बारी आने का इंतजार न कर पाना। ट्रैफिक का ध्यान ना रखते हुए दौड़ लगाना। दूसरों से बात करते समय बीच में बाधा डालना इसके लक्षण हैं।

काउंसलिंग को आ रहे हर हफ्ते 09 नए केस
मनोचिकित्सक केसी गुनानी के अनुसार हर हफ्ते उनके सामने पांच से दस के केस आते हैं। पिछले दस सालों के दौरान केसों में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इसके पीछे अवेयर भी एक कारण हो सकता है। दूसरा चाइल्ड साइकोलाजिस्ट की कमी है। इसलिए केस यहां पर आते हों। इसलिए इनकी संख्या इतनी हो सकती है। मनोचिकित्सक के अनुसार इस तरह केसों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। तीस से लेकर चार साल के बच्चों इसकी शुरूआत होती है।


तेज होने के बाद भी नहीं करता पढ़ाई
एक सामान्य बच्चे में भी इसके लक्षण देखे जा सकते हैं। कई बार सामान्य बच्चे व एडीएचडी से पीडि़त बच्चे में अंतर को समझ पाना मुश्किल होता है। कुछ ऐसे सवाल हैं, जो आपकी मदद कर सकते हैं। बच्चा तेज होने के बावजूद पढ़ाई में ठीक नहीं कर पा रहा हो क्या वह स्कूल में खुश है। बिना वजह स्कूली बच्चों को मारना-पीटना किसी अनचाहे व्यवहार की वजह से आप चिंता में रहते हों। पढ़ाते समय इधर-उधर ध्यान रखना।

समय रहते कर सकते हैं भविष्य सुरक्षित
विशेषज्ञ डॉ। केसी गुनानी बताते हैं कि इसका इलाज आसान है। मेडिकेसन, काउंसलिंग और दवाइयों की मदद से बच्चे के दिमागी समस्या को ठीक किया जा सकता है। अगर समय पर इसका इलाज किया जाए तो बच्चे का भविष्य को सुरक्षित किया जा सकता है। वरना ऐसे बच्चे न तो जिंदगी में कोई बेहतर कार्य कर पाते हैं और न ही अपने पैरों पर खड़े होते हैं।

मारपीट से बन जाते हैं बच्चे क्रिमिनल
मनोचिकित्सा डॉ। केसी गुनानी बताते हैं कि अगर समय पर इसका इलाज न करने पर बच्चे क्रिमिनल अपराधी प्रवृत्ति के बन जाते हैं। नशे का शिकार करने लगते हैं। पेरेंट्स से बदतमीजी करते हैं। उनका सम्मान नहीं करते हैं। पढ़ाई में कमजोर हो जाते हैं।


वर्जन
यह बहुत ही कॉमन हो गया है.मेरे पास रोजाना ऐसे केस आ रहे हैं। अगर समय पर इलाज शुरू कर दिया जाए तो इसे काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है। बच्चों का भविष्य भी सुरक्षित बनता है। बड़े बच्चों में दवा भी इसका इलाज है।

डॉ। केसी गुनानी, वरिष्ठ मनोचिकित्सक

वर्जन
एक सामान्य बच्चा और एडीएचडी से पीडि़त बच्चे में अंतर को समझ पाना मुश्किल होता है। कुछ ऐसे सवाल हैं, जिद्दी होना, पेरेंट्स के साथ नार्मल तरीके से नहीं पेश आना। इसकी शुरूआत ढाई से तीन साल के बच्चे मेें हो सकती है।
डॉ। प्रतिभा शर्मा, बाल रोग विशेषज्ञ

वर्जन
एडीएचडी के बच्चों में दो लक्षण हैं, जिसमें एकग्रता की कमी होना, वहीं दूसरा हायपरएक्टिव होना, अधिक चंचलता, पढ़ाई में ध्यान नहीं देना, एक जगह टिक कर नहीं बैठना है। अगर ऐसी कोई समस्या है तो एक्सपर्ट की राय लेनी चाहिए।
डॉ। विशाल सिन्हा, एचओडी मनोरोग विभाग, एसएन मेडिकल कॉलेज


-एक महीने में आने वाले एडीएचडी से पीडि़त बच्चे
32
-मेडिकल कॉलेज में हर वीक में आने वाले बच्चे
07
-एडीएचडी की किस उम्र मेें होती है शुरूआत
3 साल

Posted By: Inextlive