यदि बच्चा अपनी अलग दुनिया में रहता है. वह उसी में मशगुल रहता है. किसी से बात नहीं करता है. कुछ ही शब्दों को बार-बार दोहराता है. तो यह ऑटिज्म स्वलीनता यानि ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर हो सकता है. ऐसे में बच्चे के लक्षणों को देखकर उसकी जल्द से जल्द पहचान करना जरूरी है. इससे पेरेंट्स सही कदम उठाकर बच्चे को मेनस्ट्रीम में शामिल कर सकें.

आगरा(ब्यूरो)। एसएन मेडिकल कॉलेज के डिपार्टमेंट ऑफ पीडियाट्रिक्स के प्रोफेसर और पीडियाट्रिक न्यूरोलॉजिस्ट डॉ। नीरज यादव बताते हैैं कि ऑटिज्म एक न्यूरोलॉजिकल डायवर्सिटी है। इसमें बच्चे का ब्रेन वेरिएट होता है। बच्चे के ब्रेन में कोई कमी नहीं होती है। उसमें ब्रेन पावर की कोई कमी नहीं होती है। इसमें बच्चे में सबसे बड़ी परेशानी लेक ऑफ सोशल इंटरेक्शन और लेक ऑफ सोशल कम्युनिकेशन की कमी होती है। इसके कारण बच्चा आम बच्चों की तरह दूसरों से घुल मिल नहीं पाता है।

बच्चा एक ही हरकत को दोहराएगा
डॉ। नीरज ने बताया कि बच्चे में ऑटिज्म के लक्षण एक से तीन साल की उम्र में आते हैैं। ऐसा देखने को मिलता है कि बच्चा पहले बोलता था और अचानक से कम बोलने लगता है, दोस्त नहीं बनाता है। खुद में मशगुल रहता है। स्पीच डिले करने लगता है। बच्चे को एग्रेशन हो जाता है। इसमें बच्चे सिलेक्टिव, रिपिटेटिव और रिस्ट्रिक्टिव होने लगते हैैं। सिलेक्टिव यानि जो पसंद होगा वही कार्य करेगा। रिस्ट्रिक्टिव यानि एक ही चीज जो पसंद है उसी में उलझा रहेगा। रिपिटेटिव यानि बच्चा एक ही हरकत को दोहराएगा। हाथों को घुमाएगा या खुद घूमेगा। यदि बच्चे में इनमें से कुछ लक्षण भी दिखते हैैं तो डॉक्टर से परामर्श लें। इसका स्कोङ्क्षरग सिस्टम से आंकलन किया जाता है। यदि बच्चे में इसकी पुष्टि हो जाती है तो बच्चे को अर्ली इंटरवेंशन सेंटर में भेजना चाहिए। अर्ली इंटरवेंशन सेंटर प्ले ग्रुप स्कूल की तरह होते हैैं। यहां पर ऐसे बच्चों के साथ उपचार के अनुरूप व्यवहार किया जाता है। ऑटिज्म से पीडि़त बच्चों को पैरेंट्स को कोई निर्देश नहीं देने चाहिए। इससे बच्चा कंफ्यूज हो जाता है। ऐसे बच्चों को अलग तरह का व्यवहार करने की जरूरत है। यदि बच्चा एक खिलौने से खेल रहा है तो उसके साथ में मिलकर दूसरे खिलौने से खेलना चाहिए। जिससे कि वह दूसरे खिलौने से भी खेलना सीख सके। इसके इलाज में कोई दवा या फिजियोथैरेपी और स्पीच थैरेपी नहीं करानी चाहिए। इनके बच्चे पर दुष्प्रभाव पड़ सकते हैैं। इसमें एक्सपर्ट डॉक्टर पेरेंट्स को ट्रेनिंग देते हैैं कि वे बच्चे से किस तरह से व्यवहार करें। इस परेशानी में पैरेंट्स का व्यवहार ही सबसे बड़ा उपचार है। डॉ। नीरज ने बताया कि ऑटिज्म की बीमारी ठीक नहीं होती है। सही समय से बच्चे को सही दिशा निर्देश मिले तो वह बेहतर ङ्क्षजदगी जी सकता है और मेनस्ट्रीम में शामिल हो सकता है।
बच्चों की ग्रोथ का रखें ध्यान
-छह से सात सप्ताह का बच्चा मुस्कुराने लगता है
-तीन से चार महीने का गर्दन संभालने लगता है
- छह से आठ महीने का बच्चा बैठने लगता है
- 12 से 14 महीने का बच्चा खड़े होकर चलने लगता है
बच्चे के बोलने पर करें फोकस
- छह महीने के बाद बोलना शुरू करता है
- 12 से 14 महीने पर शब्द बोलने लगता है
- दो वर्ष पर वाक्य बोलने लगता है
ऑटिज्म के लक्षण
- बच्चा अकेला रहता है, किसी से घुलता मिलता नहीं है
- एक ही तरह के खिलौने से अकेला ही खेलता रहता है
- आंख से आंख नहीं मिलाता है
- एक ही काम को बार-बार करता है
- पैरेंट्स कुछ भी कहें, उनकी बात नहीं सुनता है
यह करें पैरेंट्स
- बच्चे से बात करने की कोशिश करें, उसके साथ उसी की तरह से खेलें
- बच्चे को डांट न लगाएं, पिटाई न करें। वह जो काम कर रहा है, उसे करने दें
- कोई दिशा-निर्देश न दें
- स्पीच थैरेपी और फिजियोथैरेपी न कराएं
ऑटिज्म एक तरह का न्यूरोलॉजिकल डायवर्सिटी है। इसमें बच्चे के ब्रेन में कोई परेशानी नहीं होती है। बच्चा सोशल कम्युनिकेशन नहीं कर पाता है। सही समय पर पहचान कर उचित कदम उठाने से बच्चे को मेनस्ट्रीम में शामिल किया जा सकता है।
- डॉ। नीरज यादव, पीडियाट्रिक न्यूरोलॉजिस्ट, एसएनएमसी

ऑटिज्म का उपचार न कराने से बच्चा अन्य बच्चों की तरह समझ नहीं पाता है। उम्र बढऩे पर उसे डिप्रेशन, ओसीडी, एंजाइटी जैसे मनोरोग होने की आशंका रहती है। मोबाइल के उपयोग से वर्चुअल ऑटिज्म जैसी समस्या भी देखने को मिल रही हैैं।
- डॉ। अरुण जैन, प्रेसिडेंट, आईएपी आगरा
ऑटिज्म के प्रति किया अवेयर
आगरा। ऑटिज्म अवेयरनेस डे के अवसर पर इंडियन पीडियाट्रिक सोसायटी आगरा द्वारा आवास विकास स्थित चाइल्ड डवलपमेंट सेंटर पर जागरुकता कार्यक्रम का आयोजन किया। इसमें ऑटिज्म से ग्रसित बच्चों के पैरेंट्स को बीमारी के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई। डॉ। प्रीती सिंघई जैन ने बताया कि एक समीक्षा के अनुमान के मुताबिक एक हजार लोगों में दो ऑटिज्म के मरीज होते हैैं। जबकि ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर एक हजार में से छह के करीब होते हैैं। कार्यक्रम का संचालन डॉ। अरुण जैन ने किया। इस दौरान संस्था के पूर्व अध्यक्ष डॉ। आरएन द्विवेदी, निवर्तमान अध्यक्ष डॉ। संजय सक्सेना, साइंटिफिक सचिव डॉ। अतुल बंसल, सेक्रेटरी डॉ। योगेश दीक्षित, डॉ। मनीष कुमार और डॉ। अमित मित्तल मौजूद रहे।

Posted By: Inextlive