Agra News दहशत और रोमांच है तेंदुए का साथ
आसान नहीं था सफर
हरविजय ङ्क्षसह बाहिया ने बताया कि कोरोना काल की हताशा के माहौल में उन्होंने फोटोग्राफी का अध्ययन किया और इसमें दक्षता हासिल की। उन्होंने बताया कि चालाक और फुर्तीले तेंदुए के बेफ्रिक आचरण का अध्ययन और फोटोग्राफी सहज नहीं है। आगरा के निकट बेरा (राजस्थान के पाली जिले की बाली तहसील) के जंगलों में तेंदुए के अध्ययन को कैमरे के साथ कई-कई दिन तक वह जंगल में भटके। तेंदुआ एक फुर्तीला और अपनी असुरक्षा को भांप तत्काल पैंतरे बदलते रहने वाला वन्य जीव है। बाहिया ने बेरा गांव के जंगलों में बनाए वीडियो और फोटोग्राफ का प्रदर्शन करते हुए बताया कि अफ्रीका प्रवास के समय हाथी, बाबून और कई जानवरों का उन्होंने सामना किया है। बेरा में रबारी जनजाति और तेंदुए बड़े आराम से रहते हैं। रबारी पुरुष लाल पगड़ी पहनते हैं। उनको सम्मान देने के लिए वाहिया ने भी लाल टोपी पहनना शुरू किया है। प्रकृति को कैमरे में कैद करने का शौक
बाहिया ने अपनी फोटोग्राफी और अध्ययन को कुछ समय से तेंदुओं पर ध्यान केंद्रित किया हुआ है। राजस्थान के पाली जिले की बाली तहसील के बेरा में तेंदुओं की वन्य जीव के रूप में मौजूदगी है। तेंदुओं पर देश में बहुत कम शोध और मौलिक काम हुआ है। यह कमी बाहिया के अध्ययन अभियान के किताब के रूप में सामने आने के बाद दूर होने की उम्मीद है। सिविल सोसायटी कॅफ आगरा के सचिव और छांव फाउंडेशन के पदाधिकारी अनिल शर्मा ने कहा कि बाहिया आने वाले समय में जंगल, वन्य जीव क्षेत्र के लेखक के रूप में भी स्थापित नाम होंगे।
एसिड पीडि़ताओं के लिये प्रेरकछांव फाउंडेशन के डायरेक्टर आशीष शुक्ला ने कहा कि हरविजय ङ्क्षसह बाहिया के साहसिक अभियान एसिड अटैक सर्वाइवर के लिये भी प्रेरक हैं। यह गोष्ठी एसिड अटैक सर्वाइवर की सामाजिक सरोकारों से संवाद शून्यता को समाप्त करने वाली साबित होगी। ब्रिगेडियर विनोद दत्ता, महेश शर्मा, सुधीर नारायण, राममोहन कपूर, डॉ। मधु भारद्वाज, देविका बाहिया, गोपाल ङ्क्षसह, आशीष भाटिया, अनिल शुक्ल, वत्सला प्रभाकर, विक्रम शुक्ला आदि मौजूद रहे।