Agra News: पुलिस कभी नहीं करती डिजिटल अरेस्ट
आगरा (ब्यूरो)। साइबर हैकर डिजिटल अरेस्ट के नाम पर लोगों को लगातार निशाना बना रहे हैं। अब रिटायर्ड टीचर से ढाई लाख रुपए की ठगी को अंजाम दिया गया। हैकर ने स्पाई वीडियो कॉल कर उन्हें ड्रग के अवैध कारोबार में लिप्त बताकर कार्रवाई का डर दिखाया। साइबर सेल ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए एडवाइजरी जारी की है, जिसमें पुलिस के वर्क ऑउट को बताया गया है। साथ ही ये भी स्पष्ट किया गया है कि पुलिस कभी किसी को डिजिटल अरेस्ट नहीं करती है।
डर दिखाकर वसूलते हैं रकम
साइबर कानून एक्सपर्ट वकील हेमंत भारद्वाज का कहना है कि किसी भी शख्स को किसी भी गलतफहमी का शिकार बनाकर डर और दहशत में डाल देने और उस डर की मदद से रकम वसूलने, यानी साइबर क्राइम का शिकार बनाने को डिजिटल अरेस्ट कहते हैं। एक दिन पहले बेसिक स्कूल की टीचर को इसका शिकार बनाया गया। सदमे मेें आकर उसकी मौत हो गई। दहशत में आई महिला के परिजनों ने स्थिति स्पष्ट की थी, लेकिन इसके बाद भी हार्ट अटैक से उनकी मौत हो गई।
नहीं मानने पर बुरा होने की धमकी
वकील हेमंत भारद्वाज ने बताया कि डिजिटल अरेस्ट के दौरान ठग अपने संभावित शिकार के मन में डर पैदा कर देते हैं। उन्हें भरोसा दिला दिया जाता है कि जो भी उन्हें बताया जा रहा है, वही असलियत है। उनके या उनके किसी परिजन के साथ कुछ बुरा हो चुका है या होने वाला है। वह पुलिस की जांच के घेरे में फंस चुके हैं। बस इसके बाद शिकार, डरकर मान लेता है कि अगर कॉलर का कहना नहीं माना तो बहुत बुरा होगा या वह सचमुच गिरफ्तार हो जाएगा।
टारगेट को हर समय अपना मोबाइल कैमरा और माइक्रोफोन चालू रखने के लिए कहा जाता है। बुरे नतीजे की धमकी दे-देकर उनके भीतर डर बिठा दिया जाता है। उन्हें यह भी कहा जाता है कि जो कुछ भी हो रहा है, उसके बारे में किसी से बात न करें। किसी को भी कुछ न बताएं। जब शिकार के भीतर पर्याप्त डर बैठ जाता है, वह ठग की हर बात मानने लगता है। फिर उसके बाद ठग बेहद तसल्ली से उनके पास मौजूद पाई-पाई लूट लेते हैं, जो लाखों में भी हो सकते हैं, और करोड़ों में भी।