आगरा. ब्यूरो अमृता हॉस्पिटल फरीदाबाद माता अमृतानंदमयी मार्ग में सोमवार को एक सेमिनार का आयोजन किया गया है. जिसमेें एक्सपर्ट ने बच्चों में स्पिरिचुअलिटी डिजीटली डिटॉक्स और स्किल डेवलेपमेंट को लेकर एक्सपर्ट ने अपने विचार टीचर्स के साथ शेयर किए. इस बीच टीचर्स ने उन्हें क्लास में स्टूडेंट्स की वास्तविक स्थिति की जानकारी दी वहीं एक्पर्ट ने सुझाव देकर उनके सवालों का जबाव दिया. कार्यक्रम के अंत में सभी टीचर्स को सर्टीफिकेट दिए गए.

एक्सपर्ट का बुके देकर किया शुभारंभ
अमृता हॉस्पिटल फरीदाबाद, माता अमृतानंदमयी मार्ग पर आयोजित सेमिनार का शुभारंभ माताअमृता के चित्र पर माल्यार्पण कर किया गया। इसके बाद एक्पर्ट शालिनी सिन्हा, डॉ। क्षमा स्वर्णकार और ललिता प्रदीप का शुभम तोमर, असिस्टेंट मैनेजर और डिप्टी असिस्टेंट मैनेजर साक्षी चडडा ने बुके देकर स्वागत किया।


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पंच तत्व से पीस ऑफ माइंड
एक्सपर्ट शालिनी सिन्हा, एकेडमिक कंसल्टेशन एंड लीडरशिप ट्रेनर, अंडरस्टेंडिंग स्पिरिचुअल कान्टेंट एजुकेशन ने सेमिनार में उपस्थित टीचर्स को स्टूडेंट्स का ओवरऑल डेवलेपमेंट को लेकर टिप्स शेयर किए। जिसमें पीस ऑफ माइंड को लेकर उनकी राय ली। एक्पर्ट ने बताया कि स्पिरिचुअलिटी और पंचतत्व और वैदिक परंपरा को लेकर बच्चों के ओवरऑल विकास को समझाया। रीवर्थ की कुछ घटनाएं बताती हैं कि आत्मा हैं, वहीं, पंचतत्व शरीर के भीतर विद्यमान हैं। अक्सर देखा गया है कि टीचर्स बच्चे भीतर से बिना समझे सब्जेक्ट पर फोकस करते हैं, इससे समाज को कैसे बदला जा सकेगा। क्योंकि हम चेंज मेकर हैं।

बच्चों को 5 सोल से करें कनेक्ट
बच्चों को जॉब लेने के बारे में समझाया जाता है, क्योंकि खाना कहां से आएगा.मानव ब्रेन को पंचतत्व डेवलेप करते हैं, ये बीएड में भी नहीं पढ़ाया जाता, सीधे तौर पर कोई बच्चा नहीं पढ़ता है। ये स्टूडेंट्स के भीतर टच नहीं करता है। अगर बच्चों को गीता के बारे में पढ़ाया जाए कि कर्म करो गोल पर फोकस रखो। इससे ओवरऑल व्यक्तिव का विकास होता है। लेकिन ये सब रिटायर्ड होने के बाद भी पढ़ा जाता है। बच्चों को पंचतत्व के बारे में पढ़ाने से वे सोल से कनेक्ट हो सकेंगे, इससे उनमें सोचने की क्षमता डेवलप होगी।


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एआई के ट्रैप में फंस रहे लोग, देख रहे वीडियो
डॉ। क्षमा स्वर्णकार, एजुकेशन कंसल्टेशन एंड गूगल सर्टिफाइड ट्रेनर एंड माइक्रोसॉफ्ट सर्टिफाइड एडूकेटर ने आर्टीफिशियल इंटेलीजेंट एंड इंसटेक्टर , चैट जीपीटी के बारे में जानकारी दी। साथ ही टीचर्स के सुझाव भी सुने। उन्होंने बताया कि अक्सर टीचर्स कहते हैं कि एआई ने उनका काम खराब कर दिया, लेकिन ऐसा नहीं है। लोग मोबाइल पर घंटों वीडियो देखते हैं। कोई अच्छा विचार आपने देखा तो एआई का काम है। इसको कैच करना और उसी टाइप के वीडियो आपकी स्क्रीन पर डिसप्ले होगा। यह एक ट्रैप है, इसको लेकर सेमिनार हॉल में मौजूद टीचर्स ने अपने एक्पीरियंस एक्पर्ट के साथ शेयर किए।


इस तरह बच्चे बन रहे डिजिटली एक्टिव
अक्सर देखा गया है कि पेरेंट्स बच्चों को अच्छे स्कूल में एडमिशन दिलाने और उनकी फीस समय पर भरने को ही जिम्मेदारी समझते हैं। इसके साथ मार्केट में कौन से कोर्स का बूम हैं। उस कोर्स को कराने पर फोकस करते हैं, लेकिन बच्चा क्या चाहता है नहीं जानते। वहीं, टीचर्स दिया होमवर्क को पूरा करनेे के लिए पेरेंटस का मोबाइल बच्चे लेते हैं। 15 मिनट के वर्क में वे तीन घंटे लगाते हैं। लगातार फोन के इस्तेमाल से बच्चा डिजिटली एक्टिव बन जाता है। इससे बच्चा समस्या सॉल्वर नहीें बनता। वहीं एग्जाम में नंबरों को लेकर भी बच्चों पर प्रेशर दिया जाता।

जनरेशन गेप से पेरेंटिंग बिग टॉस्क
जनरेशन गेप से वर्तमान में पेरेंटिंग एक बड़ा टॉस्क बन गया है। अक्सर पेेरेंट्स बच्चों को पार्टियों में नहीं ले जाते हैं, इससे वे समाज से अलग हो रहे हैं, पेरेंट्स की गैर मौजूदगी में मोबाइल पर बिजी रहते हैं। स्कूल में पेरेंट््स मीटिंग में बच्चों को प्रोजेक्ट थमा दिए जाते हैं, इस तरह बच्चे एआई, चैट जीपीटी के जरिए समस्या सॉल्व करते हैं, लेकिन नकल के लिए अकल होनी चाहिए। एआई में मैथ टाइप ऑफ पाइथन का जबाव स्नैक से दिया जाता है, कॉपी पेस्ट करने से पहले एक बाद पढऩा चाहिए।

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एक्स्पर्ट ने दिए उदाहरण
सेमिनार में एक्पर्ट ललिता प्रदीप, एडिशनल डायरेक्टर बेसिक, प्रयागराज, एडिशनल डायरेक्टर कैप लखनऊ डायरेक्टर ऑफ बेसिक एजुकेशन ने स्टूडेंट्स की स्किल डेवलेपमेंट को लेकर अपने विचार शेयर किए। उन्होंने उदहारण दिया कि सियाचिन में सैकड़ों मीटर गिरने के बाद भी सांसेे चलती हैं, तो ये स्किल है। उन्होंने एक लड़की खुशबू और प्रिया का भी उदाहरण टीचर्स के साथ शेयर कर उनकी स्किल के बारे में बताया।


क्लास में लीडर बनना भी स्केल
टीचर क्लास में एक लीडर की तरह है, बच्चों में भी इसी तरह लीडर की क्षमता का विकास आनंद भाव के साथ करना स्किल है। एक समय था जब बच्चों को पंचतंत्र और बाबा भारती के घोड़े और खड़क सिंह की कहानी को सुनाया जाता था, जिससे बच्चों को क्षलकपट के बारे में जानकारी मिल सके, वहीं अकबर और बीरबल के किस्से पढऩे से बच्चे प्रोब्लम सॉल्वर बनते हैं। बच्चों किसी भी परिस्थिति से निपटने को तैयार करना चाहिए, इसके साथ ही कम्युनिकेशन लिसनिंग, ग्रुप डिस्कशन से बच्चों का ओवरऑल डेवलेपमेंट संभव है।

Posted By: Inextlive