Agra News दंरिंदे को फांसी की सजा
आगरा (ब्यूरो) सात वर्ष की बच्ची से दुष्कर्म के बाद हत्या के मामले में कोर्ट ने त्वरित न्याय का उदाहरण पेश किया.विशेष न्यायाधीश पाक्सो एक्ट सोनिका चौधरी ने दोषी राजवीर को फांसी की सजा सुनाई। कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि अभियुक्त ने अबोध असहाय बालिका के साथ जघन्य कृ़त्य के बाद हत्या कर पाशविकता एवं बर्बरता की सभी सीमाओं को लांघ दिया। नन्हीं बच्ची ने स्वयं का जीवन बचाने के लिए कितना संघर्ष किया होगा, लेकिन अभियुक्त की पाशविकता एवं हैवानियत के सामने अबोध असहाय बालिका जीवन हार गई। कोर्ट ने कहा कि समाज में इस प्रकार के अपराधों पर अंकुश नहीं लगाया गया तो ईश्वर भी देश एवं समाज में बेटी देने से घबराएगा। आरोपित के कृत्य को देखते हुए वह कठोरतम दंड का अधिकारी है। सजा सुनाने के दौरान दोषी भी कोर्ट में मौजूद था।
दिसम्बर 2023 की घटना
घटना 30 दिसंबर 2023 की है। एत्मादपुर क्षेत्र की सात वर्ष की बच्ची दोपहर एक बजे घर से खेलने गई थी। वह ट््यूशन जाने के लिए जब घर नहीं लौटी तो स्वजन ने तलाश शुरू की। शाम 5:30 बजे बच्ची का शव एआरटीओ प्रदीप कुमार के निजी आवास के अहाते के पीछे कूड़े के ढ़ेर में मिला। बच्ची के सिर को पत्थर से कुचला गया था। उसकी बाएं हाथ की उंगली कटी हुई थी। पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज और बच्ची की दादी से मिली जानकारी के आधार पर एआरटीओ के आवास की चौकीदारी करने वाले राजवीर को हिरासत में लेकर पूछताछ की। वह बच्ची को अपने साथ अहाते में लेकर गया था। वहां दुष्कर्म किया, पकड़े जाने के डर से उसे अहाते के परिसर में बने गड्ढे में भरे पानी में डुबोने के बाद पत्थर से सिर कुचल दिया। शव को कूड़े में फेंक दिया था। राजीवर को जेल भेजने के बाद तत्कालीन विवेचक विजय विक्रम ङ्क्षसह ने 30 जनवरी 2024 को राजवीर ङ्क्षसह के विरुद्ध दुष्कर्म, हत्या, साक्ष्य नष्ट करने और पाक्सो एक्ट की धारा में आरोप पत्र न्यायालय में प्रेषित किया था। बच्ची की पोस्टमार्टम रिपोर्ट, घटनास्थल से मिले साक्ष्यों की डीएनए जांच और गवाह अहम साबित हुए।
अभियोजन की ओर से सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता सुभाष गिरी, विशेष लोक अभियोजक विजय किशन लवानियां ने पैरवी की। साक्ष्यों और गवाहों के बयान के आधार पर राजवीर को दोषी पाते हुए कोर्ट ने राजवीर को फांसी की सजा सुनाई। विशेष न्यायाधीश पाक्सो एक्ट सोनिका चौधरी ने आदेश में कहा कि राजवीर की गर्दन में फंदा लगा कर तब तक लटकाया जाए, जब तक उसकी मृत्यु न हो जाए। मृत्यु दंड की पुष्टि के लिए पत्रावली उच्च न्यायालय प्रेषित करने के आदेश दिए, साथ ही आदेश की प्रति डीएम और जिला कारगार अधीक्षक को प्रेषित करने के आदेश दिए।