Agra News खतरे में कारोबार, नहीं हैं फायर सेफ्टी के इंतजाम
यहां बेसमेंट से लेकर मल्टीस्टोरी बिल्डिंग हैं जहां हज़ारों की संख्या में कंपनियों के दफ्तर हैं लेकिन अधिकांश दफ्तरों में फायर सेफ्टी उपकरण फायर अलार्म नहीं हैं। अधिकांश दुकानों में ऐसे प्रोडक्ट केमिकल भरे पड़े हैं। जो आग के संपर्क में आते ही तबाही मचा सकते हैं। यहां कहने को तो फायर बिग्रेड का ऑफिस है। जहां दो गाडिय़ां रहती हैं, लेकिन अगर कभी आगजनी की घटनाएं हुई तो यहां बेसमेंट में चल रही दुकानों तक पानी पहुंचाना मुश्किल हो जाएगा और आग बुझ ही नहीं पाएगी.ऐसे में कारोबार को बड़ा नुकसान होने का खतरा हर समय मडऱाता रहता है।
ये है मार्केट की स्थिति-संजय प्लेस आगरा का वित्तीय केंद्र है। यहां जिले के कई सरकारी कार्यालय भी हैं। इसके अलावा यहां इलेक्ट्रॉनिक कम्प्यूटर ग्राफिक्स प्रिंटिंग जैसा काम भी बड़े पैमाने पर होता है। संजय प्लेस में कपड़े का व्यवसाय भी प्रमुख है। यहां शहर भर के लोग प्रतिदिन आते हैं। इसके अलावा शहर के कई नामी होटल और रेस्टोरेंट यहां मौजूद हैं। यही वजह है कि यहां लोगों का हुजूम रहता है। इस बाजार में दिन भर फुटफॉल रहता है। यहां जूते का काम भी बड़े लेवल पर होता है। जूता मंडी और कपड़ा मंडी की गलियां भी इतनी संकरी हैं कि यहां फायर ब्रिगेड का पहुंचना तक मुश्किल होगा।
ज्वलनशील केमिकल के रहते हैं भंडार संजय प्लेस में जूते का काम मुख्य रूप से किया जाता है। जूते को तैयार करने के लिए जो केमिकल आता है। वो भारी मात्रा में आता है। संजय प्लेस में बेसमेंट व दुकानों में बड़े पैमाने पर इस ज्वलनशील केमिकल का स्टॉक रहता है। ये केमिकल इतना अधिक ज्वलनशील होता है कि अन्य चीज़ों की अपेक्षाकृत कई गुना अधिक तेजी से आग पकड़ लेता है। कई बार यहां छापेमारी भी हो चुकी है लेकिन वावजूद इसके यहां जूता मंडी में हर एक दुकान में हज़ारों लीटर ज्वलनशील केमिकल रखा रहता है। अगर ये गलती से भी आग के सम्पर्क में आया तो फिर इस पर काबू पाना मुश्किल हो जाएगा। यहां फायर सेफ्टी के इक्विपमेंट व फायर एक्सटिंग्विशर भी खराब पड़े हुए हैं। बेसमेंट में केमिकल से होता है कामसंजय प्लेस में घनी दुकानों के बीच बड़ी संख्या में बेसमेंट में प्रिंटिंग का भी काम होता है। यहां बेसमेंट में बड़ी बड़ी मशीनें लगी हुई हैं। इन मशीनों में फ्लेक्स विनाइल और स्टीकर्स प्रिंट होते हैं। इसके लिए भारी मात्रा में ज्वलनशील केमिकल कागज और प्लास्टिक का उपयोग किया जाता है। अगर ये गलती से भी आग के सम्पर्क में आ जाएं तो तुरंत ही आग पकड़ लेते हैं। बेसमेंट में इन दुकानों से निकलने के के लिए छोटी छोटी सीढिय़ां हैं जिनसे बाहर निकलना मुश्किल है। अगर इन बेसमेंट में आग लगने की घटना हो जाए। यहां न तो पानी जाने का इंतजाम है। न ही यहां से निकलने का। सीढिय़ां भी इतनी संकीर्ण हैं। इनसे दो लोग एक साथ नहीं जा सकते हैं।
मानकों के विपरीत चल रहे कोचिंग सेंटर -संजय प्लेस में व्यवसायिक गतिविधियों के अलावा कई एजुकेशन एक्टिविटी भी होती हैं। यहां लगभग एक दर्जन कोचिंग सेंटर हैं, जिनमें हज़ारों की संख्या में बच्चे पडऩे आते हैं। अधिकांश कोचिंग सेंटर बेसमेंट में बने हुए हैं। जो रास्ता बेसमेंट की तरफ जाता है। वही रास्ता सीढिय़ों की तरफ जाता है। यहां फायर सेफ्टी उपकरण तो छोडि़ए यहां तो फायर अलार्म भी नहीं हैं। अगर इन कोचिंग में कोई भी ऐसी घटना हुई तो यहां से निकलना मुश्किल हो जाएगा।ये है संजय प्लेस का इतिहास
-शहर का संजय प्लेस बाजार कभी मुगलकालीन कचहरी हुआ करता था बाद में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने इस जगह को सेंट्रल जेल में परिवर्तित कर दिया था। 1971 में भारत पकिस्तान युद्ध के बाद जिन सैनिकों ने समर्पण कर दिया था। उनको इसी जगह रखा गया था। 1976 में संजय गाँधी ने यहां कमर्शियल मार्केट की नींव रखी। आज ये जगह शहर का कमर्शियल हब बन चुकी है। जहां शहर के अधिकांश प्राइवेट और सरकारी कार्यालय खुल गए हैं।
संजय प्लेस शहर का बिजनेस हब है, यहां इस तरह की लापरवाही नहीं रखनी चाहिए, शू मार्केट के साथ कपड़ा मार्केट भी बना है। इस पर ध्यान देने की जरूरत है। फायर सेफ्टी के इंतजाम तो हर समय अप-टूडेट रहने चाहिए।
चतुर्भुज तिवारी