-14 करोड़ की लागत से बनाया जाएगा मंकी रेस्क्यू सेंटर. -80000 करीब बंदर हैं शहर में. -800 से अधिक बंदर हैं ताजमहल परिसर व् क्षेत्र में. -24 घंटे के अंदर लगवानी होती है पहली वेक्सीन. आगरा. ब्यूरो एक दशक पहले संतोष आनंद ने एक गीत लिखा था ये गलियां न चोबारा यहां आना ना दोबारा. इस गीत के असल मायने शहर वासियों को अब समझ आ रहे हैं कि शायद ये गाना उन्ही के लिए लिखा गया हो. दरसल शहर के कई इलाकों की गलियों में बंदरों का आतंक इतना बढ़ गया है कि कोई अनजान युवक एक बार यहां से निकल गया तो फिर से उस गली में जाने की हिमाकत नहीं करेगा. हर दिन शहर में बंदरों के काटने से कोई न कोई नई घटना सामने आ रही है शहर में लगभग 80 हज़ार से अधिक बंदर हैं. इनकी वजह से आए दिन कोई न कोई हादसा हो रहा है इनको पकडऩे के नगर निगम के उपाय नाकाफी हैं.

हिंसक हो रहे बंदर

-भीषण गर्मी में भूख-प्यास के कारण बंदर और अधिक हिंसक हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में जऱा सा मौका मिलते ही बंदर हमलावर हो जाते हैं। पुराने शहर के इलाकों रावतपाड़ा पीपल मंडी मोती कटरा आदि से बंदर काटने के मरीज ज्यादा आ रहे हैं डिस्ट्रिक हॉस्पिटल में रेबीज के इंजेक्शन लगवाने को जो मरीज आ रहे हैं उनमें बंदर काटने के लगभग 10 से 15 प्रतिशत मरीज होते हैं एक महीने पहले इंजेक्शन रेबीज का इंजेक्शन लगवाने लगभग 250 से 300 मरीज आते थे। अब 500 मरीज हर रोज आ रहे हैं ऐसा इसलिए क्युकी गर्मी में पानी और खाने की कमी से बंदर हिंसक हो जाते हैं।

हाईकोर्ट तक पहुंच चुका है बंदरों के आतंक का मामला

-शहर में बंदरों की समस्या के समाधान को आगरा डवलपमेंट फाउंडेशन के सचिव अधिवक्ता केसी जैन और प्रशांत जैन ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। इसका समाधान नहीं होने पर हाईकोर्ट ने नाराजग़ी भी जाहिर की थी हालांकि यूपी का पहला मंकी रेस्क्यू सेंटर आगरा में बनाया जाएगा। नगर निगम के अधिकारियों ने प्रदेश के पहले मंकी रेस्क्यू सेंटर की डीपीआर तैयार कर ली है। प्रदेश के पहले मंकी रेस्क्यू सेंटर का निर्माण सिकंदरा क्षेत्र के स्वामी मुस्तकिल में 5 एकड़ भूमि पर होना है। इस पर अनुमानित लागत 14 करोड़ आएगी।

सोशल मीडिया पर लगाई गुहार

पुराने शहर के बेलनगंज निवासी सुधी बुधवार को अपने किसी काम से जा रही थी। दिन में बंदरों के झुण्ड ने घेर लिया पड़ोसी ने उनको बंदरों से बचाया। बुधवार को उन्होंने ट्वीट कर बंदरों से निजात दिलाने को गुहार लगाते हुए लिखा है कि पिछले आठ दिनों में बंदरों ने कई लोगों को काट लिया है। इसके बाद भी जिला प्रशासन के द्वारा कोई ठोस उपाय नहीं किया गया है। अब तो गली में जाने में ही डर लगता है।

शहर में बंदरों के हमले की प्रमुख घटनाएं

-2018 में रुनकता में मां की गोद से बंदर बच्चा छीनकर भाग गया था। घटना में बच्चे की मौत हो गई थी इसी साल ही इसके अलावा चार और मौतें बंदरों के हमले से हुई थी।
-2019 में माईथान निवासी हरीशंकर गोयल की मृत्यु भी बंदर के हमले से हुई थी।
-2020 में चार लोगों की मौत की मौत बंदर के हमले में गिरने से हुई थी।
-2022 में चार लोगों की मौतें बंदरों के हमले से हुई थीं।
-2022 में ही जिला अस्पताल में बंदरों ने उत्पात मचाया था। फॉल सीलिंग तोड़ दी थी एक नेता की एस्कॉर्ट जीप में बंदर घुस गया था।
-2023 में रशियन पर्यटक पर बंदर ने हमला कर दिया हाथ पर काट लिया था।
-इस साल बंदरों ने जिला अस्पताल के दवा काउंटर में घुसकर जमकर उत्पात मचाया था और तोडफ़ोड़ की थी।

इन कार्यालयों में है बंदरों का आतंक

-कलेक्ट्रेट जिला मुख्यालय
-एसएन हॉस्पिटल
-जिला अस्पताल
-नगर निगम
-तहसील सदर

-कलेक्ट्रेट में दिन भर बंदरों का आतंक रहता है कई बार काम से उधर जाना होता है तो मुश्किल होती है इसका समाधान निकालना चाहिए।
हेमंत दीक्षित एडवोकेट

-शहर में ही नहीं अब तो एएसआई संरक्षित स्मारकों पर भी बंदरों का जमावड़ा रहता है इससे शहर की छवि भी धूमिल हो रही है।
शिव पराशर

-सरकारी कार्यालयों में जाने में ही डर लगता है पता नहीं क्यों अब तक नगर निगम ने कोई उपाय नहीं किया
डॉ मनीष

-अब तो घर से बाहर निकलने तक में डर लगता है बंदर अब आफत बन चुके हैं पता नहीं कब इनसे निजात मिलेगी।
भूपेंद्र वर्मा


शहर में बंदरों को पकडऩे के लिए लगातार अभियान चलाया जा रहा है। पिछले आठ महीने में 15 हजार बंदरों को शहर से बाहर वन क्षेत्र में छोड़ा जा चुका है।
डॉ.अजय कुमार सिंह चीफ वेटेनरी ऑफिसर नगर निगम

Posted By: Inextlive