'नफीस बताएगा क्रिमिनल्स के क्राइम
आगरा। जनपद में पायलेट प्रोजेक्ट के तहत नफीस यानी नेशनल ऑटोमैटिक फिंगर आइडेंटिटी सिस्टम लागू किया जा रहा है। अपना शहर छोड़कर देश में कहीं भी अपराध करने के बाद अपनी पहचान नहीं छिपा पाएंगे। नेशनल क्राइम रिपोर्ट ब्यूरो द्वारा नेशनल ऑटोमेटिक फिंगरप्रिंट आईडेंटिफिकेशन सिस्टम यानी नफीस सॉफ्टवेयर तैयार किया है। इसे हालही मेें जीआरपी और एसटीएफ में इंस्टॉल किया गया है। हर पकड़े जाने वाले अपराधियों के फिंगरप्रिंट के साथ उनका पूरा डाटा इस साफ्टवेयर मेें अपडेट किया जाएगा। इस सिस्टम को पुलिस ऑफिस, पुलिस ट्रेनिंग सेंटर में इंस्टॉल करा दिया है।
पकडऩे पर पिछले मुकदमों बच जाता था
आगरा के जीआरपी एसपी मोहम्मद मुश्ताक ने बताया कि कई बार ऐसे केस सामने आते हैं कि क्रिमिनल्स नाम बदल कर दूसरे जिले या प्रदेश में रह रहा होता है। दूसरे राज्य में पकडऩे पर अपना पुराना क्रिमिनल्स इतिहास वह छिपा लेता था। कई बार वांटेड होते हुए पकड़े जाने के बाद भी पिछले मुकदमों से क्रिमिनल्स बच जाता था। सरकार की इस नई पहल के बाद अब ऐसा नहीं हो पाएगा।
फिंगरप्रिंट से क्रिमिनल की कुंडली खुलेगी
मोहम्मद मुश्ताक ने बताया कि जीआरी थानों और पुलिस ऑफिस में लगाए गए। वहीं पुलिस ट्रेनिंग में भी इसको शामिल किया गया है। इस सिस्टम में पकड़े गए अपराधी और सजा पाने वाले अपराधियों के फिंगर प्रिंट स्कैन कर उनका आपराधिक डाटा सेव किया जा रहा है। अपराधी अगर पकड़े जाने पर अपनी पहचान छिपा रहा है और पुलिस उसे आइडेंटिफाई नहीं कर पा रही है तो इस सिस्टम पर उसके फिंगरप्रिंट स्कैन कर पूरी जानकारी ली जा सकती है।
मोहम्मद मुश्ताक ने बताया कि यह एक इलेक्ट्रॉनिक डोजर है। इसका उपयोग करने के लिए हमें फिंगरप्रिंट स्कैन कर दिल्ली या लखनऊ फिंगरप्रिंट ब्यूरो को रिक्वेस्ट भेजनी पड़ती है। वहां से थोड़ी ही देर में रिक्वेस्ट एक्सेप्ट होते ही क्रिमिनल्स का पूरा क्राइम रिकॉर्ड देख सकते हैं। इसके बाद क्रिमिनल्स को गिरफ्तार कर जेल की सलाखों के पीछे भेजा जाएगा।
क्या है नफीस प्रोजेक्ट
यह नफीज, नेशनल ऑटोमैटिक फिंगर आइडेंटिटी सिस्टम के जरिए दूसरे राज्यों की पुलिस टीम को एक दूसरे के राज्यों के क्रिमिनल्स के रिकॉर्ड दिए जाते हैं। राज्यों में कितने क्रिमिनल्स एक्टिव हैं, उनके नाम, पते के अलावा उनके फिंगर प्रिंट नफीस में अपलोड किए हैं। इसका फायदा यह होता है कि क्रिमिनल्स देश के किसी भी राज्य में क्राइम करता है, तो क्राइम नफीस में दर्ज किए जाते हैं। इस तरह क्रिमिनल्स का ब्यौरा सिस्टम में दर्ज हो जाता है। इससे नफीस के जरिए उसकी पहचान हो जाती है कि क्रिमिनल्स कौन है।
अभी तक यह होता था कि ऐसे मामलों में स्पॉट के फिंगर प्रिंट लखनऊ में फिंगरप्रिंट ब्यूरो भेजे जाते थे। वहां से मैच के लिए अन्य जगह भेजे जाते थे। यदि मिलान हुआ तो ठीक है, नहीं तो आरोपी का पता चलने में कॉफी समय लग जाता था। हृ्रस्नढ्ढस् में थंब या फिंगर का इंप्रेशन अपलोड करते ही देश में जहां भी यह सिस्टम लागू है, वहां उसे रीड कर पल भर में क्रिमिनल की डिटेल मिल जाएगी। सिस्टम को किया गया एप्लाई
इस सिस्टम को पुलिस के सभी विभागों में एप्लाई किया जाएगा। आगरा मेें जीआरपी, एसटीएफ और पुलिस लाइन में इसको लागू किया गया है। इसके जरिए क्रिमिनल्स के बारे में पुलिस को पूरी डिटेल मिल सकेगी।
यह एक इलेक्ट्रॉनिक डोजर है। इसका उपयोग करने के लिए हमें फिंगरप्रिंट स्कैन कर लखनऊ फिंगरप्रिंट ब्यूरो को रिक्वेस्ट भेजनी पड़ती है। वहां से थोड़ी ही देर में रिक्वेस्ट एक्सेप्ट होते ही क्रिमिनल्स का पूरा क्राइम रिकॉर्ड देख सकते हैं। इसके बाद क्रिमिनल्स का पिछला रिकॉर्ड भी सामने आ जाता है। इस तरह उसको गिरफ्तार किया जा सकेगा।
- मो। मुश्ताक, एसपी जीआरपी