CRPF की इस महिला अधिकारी ने नक्सली इलाके में खुद मांगी पोस्टिंग, इनका मकसद जानकर चौंक जाएंगे आप
ये हैं ऊषा किरण
छत्तीसगढ़ में माओवादियों के क्षेत्र में तैनात किया गया है यहां सीआरपीएफ की पहली महिला अधिकारी ऊषा किरण को। ऊषा यहां वर्दी के साथ देश की सेवा करने के अलावा आदिवासी लड़कियों को पढ़ाने और उनको अपने पैरों पर खड़ा करने का भी काम करती हैं। 27 वर्षीय ऊषा का ऐसा मानना है कि बटालियन की सेवा करने के साथ उनकी और भी कई जिम्मेदारियां हैं।
आदिवासी लड़कियों की ली जिम्मेदारी
इनमें से पहली जिम्मेदारी है वहां स्थानीय आदिवासी लड़कियों को पढ़ने के लिए प्रेरित करना। अपने इस काम से ऊषा इन लड़कियों के लिए रोल मॉडल बनकर सामने आई हैं। वह कहती हैं कि वह यहां की लड़कियों को पढ़ाने के साथ ही साथ उनके इरादों को भी मजबूत करने का काम करती हैं। इसके लिए वह उन्हें ए के 47 राइफल को अपने पास रखने के बजाए शिक्षित होने को ज्यादा अहम बताती हैं।
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तोड़ना चाहती हैं लड़कियों का संकोच
वह बताती हैं कि छत्तीसगढ़ की लड़कियां और महिलाएं सुरक्षा बलों तक से बात करने में कतराती हैं। सुरक्षा बलों से अगर उनको कुछ बात कहनी भी होती है तो इसके लिए वह अपने परिवार के पुरुषों की मदद लेती हैं। बाहरी लोगों से मिलना तो दूर, वह वर्दीधारियों से भी मिलने में संकोच करती हैं। इन बातों को सुलझाने की जिम्मेदारी लेकर ऊषा ने बस्तर के पहाड़ी क्षेत्रों में जमकर काम किया।
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दरभा घाटी में हैं तैनात
लड़कियों को पढ़ाने के लिए ऊषा अपने कैम्प में एकस्ट्रा समय देती हैं। इसके लिए अपने काम को वह जरा भी बाधित नहीं होने देतीं। ऊषा के बारे में बता दें कि वह सीआरपीएफ की 80 बटालियन में असिस्टेंट कमांडर हैं। माओवादी प्रभावित दरभा घाटी में इनको तैनात किया गया है। ये वही इलाका है जहां पर 2012 में एक बड़े कांग्रेसी नेता समेत 34 लोगों को नक्सलियों ने मार दिया था। इससे पहले वह एक साल तक 232 महिला बटालियन में भी शामिल रहीं। यहीं पर इनको प्रशिक्षित भी किया गया। यहीं पर इन्होंने अपने अधिकारियों से इस बात की इजाजत ली थी कि उन्हें पुरुष बटालियन में शामिल किया जाए।
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खुद चाहती थीं नक्सली इलाके की पोस्टिंग
ऊषा किरण के बारे में और गहराई से जानें तो वह मूल रूप से गुड़गांव की रहने वाली हैं। पोस्टिंग के लिए नक्सली इलाका खुद ऊषा की पहली पसंद थी। उन्होंने कहा कि वो खुद बस्तर आना चाहती थी, क्योंकि उन्होंने सुना है कि यहां लोग काफी सीधे सादे हैं। ऊषा के मिशन के मुताबिक वो 2017 में बस्तर को नक्सलवादियों से पूरी तरह मुक्त करने के इरादे से आई हैं।