सीरिया पर मंडराते हमले के बादल
सैन्य कार्रवाई की बात अब क्यों की जा रही है?कई लोग यह प्रश्न उठा रहे हैं कि आख़िर क्यों अमरीका और उसके सहयोगी तब हस्तक्षेप कर रहे हैं जब सीरिया में लगभग एक लाख लोग मारे जा चुके हैं और लगभग 17 लाख से ज़्यादा लोग पलायन कर चुके हैं. इसके अलावा सीरिया के पड़ोसी देशों के साथ भी तनाव बढ़ गया है.जबकि पिछले साल अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा था कि यदि सीरिया में बशर अल-असद के नेतृत्व वाली सत्ता रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल करती है तो यह उनके लिए अंतिम चेतावनी होगी.इस साल कथित तौर पर रासायनिक हमलों के बाद अमरीका ने कहा था कि उसकी ख़ुफ़िया एजेंसी की उच्च स्तरीय जानकारी के मुताबिक़ सीरिया में रासायनिक हमले का प्रयोग हुआ है, और इसके परिणामस्वरूप अमरीका सीरिया में सहायता के लिए सेना भेजेगा.
लेकिन हाल ही में 21 अगस्त को दमिश्क़ के बाहरी इलाक़े में हुए रासायनिक हमले में सैंकड़ों लोगों के मारे जाने के बाद सीरिया में कार्रवाई के लिए पश्चिमी शक्तियाँ आश्वस्त हो गईं हैं.
मीडिया में आई रिपोर्टों के मुताबिक़ सीरिया में चल रहे संकट के दौरान यह रासायनिक हमला अब तक सबसे घातक रहा है. कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने बच्चों और शवों के भीषण दृश्य वाले फ़ुटेज भी इंटरनेट पर अपलोड किए हैं.अमरीकी विदेश मंत्री जॉन केरी ने हमले के बाद कहा था कि "रासायनिक हथियारों से नागरिकों, महिलाओं, बच्चों और निर्दोष लोगों की अंधाधुंध हत्या, एक नैतिक अश्लीलता है."
सीरिया के उप विदेश मंत्री फ़ैसल मिक़दाद ने 27 अगस्त को कहा था कि ''सीरिया किसी भी अंतरराष्ट्रीय हमले के ख़िलाफ़ अपना बचाव करेगा और चेतावनी दी थी कि इससे 'पूरी दुनिया में अराजकता' फैलेगी.''सीरिया के प्रमुख सहयोगी रूस और ईरान ने भी किसी भी हस्तक्षेप की कड़ी आलोचना की है.
अटकलें लगाई जा रही हैं कि सीरिया में सरकारी सैनिकों के साथ खड़े लेबनान के उग्रवादी शिया आंदोलन हिजबुल्लाह सीरिया में किसी भी पश्चिमी हमले के जवाब में इसराइल में रॉकेट का प्रयोग भी कर सकता है.