ELECTION SPECIAL : मौजूद हैं राजनाथ, लेकिन याद आते हैं त्रिपाठी!
हॉलनुमा कमरे में नेहरू, इंदिरा, राजीव और सोनिया गांधी के अलावा कमलापति त्रिपाठी की भी तस्वीर टंगी है।
देवेंद्र प्रताप सिंह बताते हैं कि आज चंदौली में जो कुछ भी है वो कमलापति त्रिपाठी की ही वजह से है।सिंह कहते हैं, "यहां के लोग कहते हैं कि पंडित जी के नेता बनने से पहले चंदौली की ज़मीन पर सिर्फ़ मोतंजा (घास) हुआ करता था। लेकिन उन्होंने यहां 22 किलोमीटर लंबा नहरों का जाल बिछवाया जिसकी वजह से चंदौली जनपद अब धान का कटोरा कहा जाता है।"उधर से गुज़र रहे कुछ स्कूली बच्चों से जब हमने जानना चाहा कि क्या वो कमलापति त्रिपाठी को जानते हैं तो कोई भी बच्चा उनके नाम के अलावा और किसी तरह से उनसे परिचित नहीं था। हालांकि ये बच्चे आठवीं से दसवीं कक्षा तक के थे।
चंदौली कमलापति त्रिपाठी की कर्मभूमि भले रही हो। लेकिन यहां न तो उनका कोई मकान है और न ही उनके परिवार का कोई व्यक्ति उनकी राजनीतिक विरासत संभाल रहा है।केंद्रीय गृहमंत्री और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह का गृह ज़िला भी चंदौली है। हालांकि राजनाथ सिंह यहां से कभी चुनाव नहीं लड़े।
स्थानीय पत्रकार संतोष कुमार कहते हैं, "यहां से तो छोड़िए, राजनाथ सिंह ने तो कभी विधानसभा का चुनाव लड़ा ही नहीं। सिर्फ़ मुख्यमंत्री बनने के बाद लड़े थे। वो भी हैदरगढ़ से। वो चंदौली ज़िले की ही चकिया तहसील के निवासी हैं ज़रूर लेकिन उनकी कर्मभूमि भी मिर्ज़ापुर रही है।"बिहार की सीमा से लगा ये इलाक़ा नक्सल प्रभावित भी है। आए दिन नक्सली वारदातें होती रहती हैं। राजनाथ सिंह के अलावा केंद्रीय मंत्री महेंद्र नाथ पांडेय चंदौली से सांसद हैं। बावजूद इसके इलाक़े के लोग विकास से वंचित हैं।संदीप दुबे नाम के एक युवा कहते हैं, "केंद्रीय नेता कहेंगे कि राज्य में सरकार बनवाओ, राज्य सरकार कहती है कि केंद्र सरकार भेदभाव कर रही है। जब दोनों जगह सरकार रहेगी तो हो सकता है कि यहां का एमपी-एमएलए उस पार्टी का न हो। ऐसे में विकास भगवान भरोसे ही है। चुनाव है तो आदमी वोट डाल आता है। बाक़ी किसी से उम्मीद कुछ नहीं रहती।"