ईपीएफ़ पर कर लगाने के क्या हैं मायने?
अब सरकार ने इसके लिए कंपनियों को जवाबदेह बना दिया है और ये कंपनियां ही कर्मचारियों के खाते से पैसे काटकर सरकार के खाते में जमा करती हैं।सरकार के लिए करोड़ों लोगों के पीछे जाने से बेहतर यह होता है कि वह कुछ हज़ार कंपनियों को इस काम के लिए जवाबदेह बना दे।ईपीएफ़ यानी कर्मचारी भविष्य निधि आपके लिए लंबी अवधि की बचत होती है।अक्सर लोग पूरी ज़िंदगी इसे जमा करते हैं और रिटायरमेंट के वक़्त यह उनकी जमा पूंजी होती है।वे इसे निकालकर फ़िक्स्ड डिपॉज़िट में डाल देते हैं या फिर उसे निकालकर बाक़ी जीवन के ख़र्चे निकालते हैं।यह इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि हम इसे अपनी ओल्ड एज सिक्योरिटी के तौर पर देखते हैं।हमारे देश में संगठित या असंगठित क्षेत्र में सामाजिक सुरक्षा का सिद्धांत नहीं है।
अब सरकार ने कहा कि वह इस पर कर लगाएगी। अप्रैल 2016 के बाद इस कोष में जो भी रकम जमा होगी, उसके 60 प्रतिशत हिस्से पर मिलने वाले ब्याज़ पर कर लगेगा लेकिन पहले जमा की गई रकम पर कोई कर नहीं होगा।
पूरे देश में क़रीब 40 करोड़ से ज़्यादा कामगार हैं और इसका महज़ 9-10 फ़ीसदी हिस्सा संगठित क्षेत्र से जुड़ा है जहां ईपीएफ़ कवर होता है।ज़्यादातर कामगारों के पास ईपीएफ़ की सुविधा नहीं है। सरकार अब इन्हीं 9-10 फ़ीसदी हिस्से पर इस कर का बोझ डाल रही है।यह सब ऐसे वक्त में हो रहा है जब पिछले कुछ महीने में दो बार सेवा कर को बढ़ाया गया है, नौकरियों की कमी चल रही है और माहौल बेहतर नहीं है।मेरे ख़्याल से सरकार के लिए यह चुनौतीपूर्ण होगा क्योंकि लोग भी इसके लिए तैयार नहीं हैं। मेरे ख़्याल से यह क़दम ग़लत है और सरकार पर इस फ़ैसले को वापस लेने का दबाव बढ़ रहा है या बढ़ेगा।1 अप्रैल से यह योजना लागू हो रही है और इसमें इस तारीख़ से जमा होने वाली राशि को निकालने पर कर लगेगा।
दुनिया भर में यह कर होता है लेकिन हम जिन देशों से हम यह उदाहरण ले रहे हैं वहां सामाजिक सुरक्षा की स्थिति बेहतर है और उन देशों में केवल तीन फ़ीसदी नहीं बल्कि 50 फ़ीसदी लोग कर देते हैं।(बीबीसी संवाददाता पंकज प्रियदर्शी से बातचीत पर आधारित)