क्रिकेट जैसे खेल में टेक्नोलॉजी का सबसे ज्यादा यूज होता है। एलबीडब्ल्यू से लेकर रनआउट और यहां तक कि चौके और छक्कों में भी जब कोई डाउट होता है तो थर्ड अंपायर की हेल्प ली जाती है।

(दैनिक जागरण संपादकीय)। इन टेक्नोलॉजीस की वजह से गलतियों की गुंजाइश बेहद कम हो गई है। हालांकि, इसके बावजूद खामियां अब भी मौजूद हैं। नया विवाद अंपायर्स कॉल को लेकर शुरू हुआ है, जिस पर हाल ही में भारतीय कप्तान विराट कोहली ने भी ऐतराज जताया है। अंपायर्स कॉल के तहत फील्ड अंपायर थर्ड अंपायर के पास जाने से पहले 'सॉफ्ट सिग्नल' इस्तेमाल करते हैं और अपना फैसला सुनाते हैं। मतलब वे खिलाड़ी को आउट या नॉट आउट का सिग्नल देते हैं। इसके बाद थर्ड अंपायर जांच करता है। अगर उसे पुख्ता सबूत नहीं मिलते हैं तो वह मैदानी अंपायर के फैसले को ही सही मान लेता है। भारत और इंग्लैंड के बीच समाप्त हुई सीरीज के दौरान कई बार भारत को इस सॉफ्ट सिग्नल का खामियाजा भुगतना पड़ा।

क्या है साॅफ्ट सिग्नल विवाद
चौथे टी-20 मैच के दौरान सूर्यकुमार यादव का कैच सैम कुरन की गेंद पर डेविड मलान ने फाइन लेग पर पकड़ा। मैदानी अंपायर ने थर्ड अंपायर के पास मामला भेजने से पहले सॉफ्ट सिग्नल में सूर्य को आउट करार दिया। टीवी रिप्ले में साफ दिख रहा कि गेंद जमीन को छू रही थी लेकिन थर्ड अंपायर ने इसे नाॅट आउट दिया। इसक वजह पुख्ता सबूूत न मिलना है। भारत को सॉफ्ट सिग्नल का लाभ नहीं मिला और उसने मैदानी अंपायर की गलती का खामियाजा भुगतना पड़ा। अंपायर के फैसले को ही बरकरार रखा। इसके बाद अंपायर्स के इस सॉफ्ट सिग्नल की काफी आलोचना होने लगी। क्योंकि ऐसे निर्णय मैच का रुख बदल सकते हैं।

बदलना चाहिए नियम
यहां अहम बात यह है कि जब हमारे पास टेक्नोलॉजी मौजूद है तो हम क्यों सॉफ्ट सिग्नल का सहारा ले रहे हैं। साउथ एशिया में क्रिकेट अब सिर्फ एक खेल नहीं है, बल्कि लोग इसे जुनून की तरह लेते हैं। ऐसे में अपांयर का एक गलत फैसला करोड़ों लोगों की भावनाओं को आहत कर सकता है। इस विषय पर निश्चित तौर पर क्रिकेट की सबसे बड़ी संस्था को जरूर गौर करना चाहिए। एक्सपट्र्स का भी मानना है कि सॉफ्ट सिग्नल का नियम ही हटा देना चाहिए और थर्ड अंपायर पूरी जांच-पड़ताल के बाद खुद का फैसला सुनाएं।

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari