जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट: ये सच्ची घटना बदल देगी सोचने का नजरिया
एक व्यक्ति सुबह उठकर अखबार पढ़ रहा था। अचानक उसकी नजर एक शोक संदेश पर गई। वह उसे पढ़ कर दंग रह गया, क्योंकि वहां मरने वाले की जगह पर उसी का नाम लिखा हुआ था। खुद का नाम पढ़कर वह आश्चर्यचकित तथा भयभीत हो गया। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि अखबार ने उसके भाई लुडविग के मरने की खबर देने की जगह उसके मरने की खबर प्रकाशित कर दी थी। खैर, उसने किसी तरह खुद को संभाला और स्वयं से कहा-चलो देखते हैं, लोगों ने मेरी मौत पर क्या-क्या प्रतिक्रियाएं दी हैं? उसने पढ़ना प्रारंभ किया। वहां फ्रेंच भाषा में कुछ लिखा था, जिसका अर्थ यह था कि मौत का सौदागर मर गया। यह उसके लिए बड़ा आघात था। उसने मन ही मन सोचा।
आपको लोग कैसे याद करेंगे
'क्या उसके मरने के बाद लोग उसे इसी तरह याद करेंगे?' यह दिन उसकी जिंदगी का टर्निग प्वाइंट बन गया। उसी दिन से वह डायनामाइट अविष्कारक विश्वशांति और समाज कल्याण के लिए काम करने लगा। मृत्यु पूर्व उसने अपनी अकूत संपत्ति उन लोगों को पुरस्कार देने के लिए दान दे दी, जो विज्ञान और समाज कल्याण के क्षेत्र में उत्कृष्ट काम करते हैं। उस महान व्यक्ति का नाम था- एल्फ्रेड बर्नार्ड नोबेल। आज उन्हीं के नाम पर हर वर्ष अलग-अलग क्षेत्र में नोबेल प्राइज दिए जाते हैं। आज उन्हें मौत के सौदागर के रूप में नहीं, बल्कि उन्हें एक महान वैज्ञानिक और समाज सेवी के रूप में याद किया जाता है।
जीवन का एक क्षण बदल सकती है जिंदगी
जीवन का एक क्षण भी हमारे मूल्यों और जीवन की दिशा को बदल सकता है। यह हमें सोचना है कि हम यहां क्या करना चाहते हैं? हम किस तरह याद किए जाना चाहते हैं? हम आज क्या करते हैं, यही निश्चित करेगा कि कल हमें लोग किस तरह याद करेंगे। इसलिए हम जो भी करें सोच-समझ कर करें। कहीं अनजाने में हम 'मौत के सौदागर' जैसी यादें न छोड़ जाएं। जिस तरह से नोबेल ने अपने जीवन को बदला, ठीक उसी तरह हमें भी अपना जीवन बदलने की कोशिश करनी चाहिए और सकारात्मक कार्य करने का प्रयास करना चाहिए, जिससे देश-समाज का भला हो।
-डॉ. पूर्णिमा अग्रवाल (लेखिका आध्यात्मिक विचारक हैं।)तो इस कारण लक्ष्य से भटक जाते हैं हम, नहीं मिलती मनचाही सफलताजीवन मंत्र: ऐसे पा सकते हैं नकारात्मक सोच और कुंठा से मुक्ति