चीन की 90 फ़ीसदी जनता अपनी जीवनशैली को अपने माता-पिता की जीवनशैली की तुलना में काफ़ी बेहतर मानती है. लेकिन इसके बावजूद भ्रष्टाचार सामाजिक असमानता और खाद्य सुरक्षा जैसी समस्याओं को लेकर लोगों में चिंता बढ़ती जा रही है.


‘प्यू ग्लोबल एटिट्यूड’ की तरफ़ से किए गए सर्वेक्षण में इस तरह के कई महत्वपूर्ण बिंदुओं को सामने लाया गया है. दुनिया के ज़्यादातर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में चीन की तरह वृद्धि चाहते होंगे जो चीन के भावी नेता शी जिनपिंग को विरासत स्वरूप मिलने वाला है. वैसे तो ये आशंका जताई गई है कि आने वाले समय में चीन की विकास दर आठ फ़ीसदी से भी नीचे खिसक सकती है. कम होती विकास दर के मुद्दे पर आर्थिक संकट से जूझ रहे स्पेन और ग्रीस जैसे देशों के नेताओं को जिनपिंग से कोई ख़ास सहानुभूति नहीं होगी. लेकिन चीन के लिए ये आँकड़ें निराश करने वाले हैं.भ्रष्टाचार से त्रस्त लोग


चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी हर 10 साल में अपना नया नेता चुनती है. लेकिन इस बार नए नेता जिनपिंग के लिए ये ताज कांटो भरा हो सकता है. प्यू के सर्वे में चीन की आम जनता को घरेलू समस्याओं को लेकर परेशान दिखाया गया है. आम लोग भ्रष्टाचार, ग़रीबों और अमीरों के बीच बढ़ते अंतर और उपभोक्ता सुरक्षा को लेकर त्रस्त दिखाई देते हैं. चीन में बड़ी संख्या में लोगों के जीवनस्तर में सुधार आया है और मध्यमवर्ग का विस्तार हुआ है लेकिन बतौर ग्राहक बहुत से चीनियों को लगता है कि वे एक ऐसी प्रणाली में रह रहे हैं जहाँ जीवन की मूलभूत ज़रूरतें पूरी होती रहेंगी इसकी कोई गारंटी नहीं. हालांकि बाक़ी देशों के मुक़ाबले चीनी नागरिक अपने देश में स्थितियों से कहीं ज़्यादा संतुष्ट हैं. प्यू ग्लोबल एटिट्यूड सर्वे में चीन के 70 फ़ीसदी लोगों का कहना था कि उनकी आर्थिक स्थिति पिछले पाँच सालों में काफ़ी सुधरी है जबकि 92 फ़ीसदी लोग ये मानते हैं कि उनका जीवन स्तर अपने माता-पिता के मुक़ाबले काफ़ी स्तरीय हुआ है. पर इसी सर्वे में ये बात भी सामने आई कि बहुत से लोग आर्थिक विकास के परिणामों से भी जूझ रहे हैं. दस में से छह लोग मुद्रास्फीति को देश की सबसे बड़ी समस्या बताते हैं जबकि दस में से तीन लोग प्रदूषित वायू और पानी को बड़ी समस्या मानते हैं. वहीं, तक़रीबन 70 फ़ीसदी लोग अपनी जीवन शैली को पाश्चात्य संस्कृति के प्रभावों से बचाना चाहते हैं. कुल मिलाकर कहें तो तीन मुद्दों को लेकर सबसे ज़्यादा चिंता है. पहला है राजनीतिक भ्रष्टाचार को लेकर चिंता. 50 फ़ीसदी लोगों का मानना है कि भ्रष्ट अधिकारी गंभीर समस्या है. 2008 में 39 फ़ीसदी लोग ऐसा सोचते थे.विकास में पीछे छूटते लोग

दूसरी चिंता ये है कि चीन के विकास में कुछ लोग पीछे छूटते जा रहे हैं. सर्वे में 81 फ़ीसदी लोगों ने माना कि अमीर जहां और अमीर हुए हैं वहीं ग़रीब और ग़रीब हो गए हैं. 48 फ़ीसदी लोग इस अंतर को बड़ी समस्या मानते हैं. समान अवसर न मिलने का एक और संकेत है कि सर्वे में 45 फ़ीसदी लोग ही मानते हैं कि अगर वे मेहनत करेंगे तो सफलता मिलेगी. चीनी लोगों में तीसरी बड़ी चिंता है ग्राहकों के अधिकारों को लेकर. चीन में हर 10 में से चार (41 फीसदी) लोग खाद्य सुरक्षा को बड़ी समस्या के तौर पर गिनाते हैं, जबकि 2008 में केवल 12 फ़ीसदी लोग ही इसे बड़ी समस्या मानते थे. दवाओं के सुरक्षित होने को लेकर भी लोग काफ़ी चिंतित दिखे. 2008 में सिर्फ़ नौ फ़ीसदी लोग इस समस्या को लेकर परेशान थे, जबकि अब इनका प्रतिशत बढ़कर 28 हो गया है. चीनी लेखक यू हुआ चीन के वर्तमान हालात पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं, “आज चीन भयानक असमानताओं वाला देश बन गया है, सड़क के एक तरफ़ जहां स्वर्ग जैसा महसूस होता है, वहीं सड़क के दूसरी तरफ़ उदासी का अथाह समंदर दिखता है” अगर राजनीतिक और आर्थिक स्थितियों को लेकर असंतोष यूँ ही बढ़ता रहा तो सी जिंनपिंग के लिए अगले दशक में चीन को आगे ले जाना मुश्किल हो जाएगा.

Posted By: Satyendra Kumar Singh