भारत के पूर्वोत्तर और ख़ास कर भारत-म्यांमार सीमा से सटे इलाक़ों में छापामारों के हमले फिर से होने लगे हैं.
नेशनल सोशलिस्ट कौंसिल ऑफ़ नागालैंड (इसाक-मुइवा गुट) के साथ भारत सरकार की बातचीत और युद्धविराम के 17 साल बाद ऐसा होने कुछ हैरान करने वाला है.गृह मंत्रालय और खुफ़िया एजेंसियों के अफ़सर नागाओं के साथ बीतचीत चला रहे थे और उन्हें अनुमान था कि खापलांग गुट धीरे धीरे कमज़ोर हो जाएगा और म्यांमार से सटे सगाइंग प्रांत में वे बेअसर हो जाएंगे.लेकिन खापलांग समूह ने इस मौके पर बहुत सोच समझ कर रणनीति बनाई. खापलांग की यह शिकायत थी कि भारत सरकार उसके गुट को तवज्जो इस आधार पर नहीं दे रही है कि वह म्यांमार के हैं और सरकार विदेशियों के साथ बातचीत नही करेगी.वैसे भी म्यांमार की सेना को भारत के ख़िलाफ़ बग़ावत करने वालों को अपने यहां से खदेड़ने में कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं थी.
भारत सरकार का रुख यह था कि यदि खापलांग गुट असम के अल्फ़ा और बोडो विद्रोहियों और मणिपुर के विद्रोहियों को म्यांमार में अपने यहां पनाह देना बंद नहीं करता है तो उसके साथ आगे की बातचीत न की जाए.
मेइती विद्रोहियों के दो समूह यूएनएलएफ़ और पीएलए नेतृत्व के मुद्दे पर मतभेद की वजह से इसमें शामिल नहीं हुए, पर वे भारत के सुरक्षा बलों के ख़िलाफ़ हमले करने में सहयोग करने पर सहमत हो गए.इसके बाद यूएनएलएफडब्लूएसईए के छापामार भारतीय सुरक्षा बलों पर दो महीने तक हमले करते रहे.अंतिम छह हमले अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मणिपुर में हुए, जिनमें 35 सैनिक मारे गए और बड़ी तादाद में ज़ख्मी हुए.
जब भूटान और बांग्लादेश ने अपने यहां सक्रिय भारत विरोधी समूहों के ख़िलाफ़ कार्रवाई तेज़ कर दी तो म्यांमार अकेला ठिकाना रहा जहां से भारत पर हमले किए जा सकते थे. नतीजतन, वे भारत विरोधी समूहों के नेता बन कर उभरे.भारत की ख़ुफ़िया एंजेंसियों का मानना है कि खापलांग और अल्फ़ा के परेश बरुआ गुट ने म्यांमार मे सक्रिय चीन समर्थक यूनाइटेड वा स्टेट आर्मी (यूडब्लूएसए) और कोकांग एमएनडीएए गुटों के ज़रिए चीनी हथियार हासिल करने का समझौता कर लिया है.
भारत और म्यांमार के ख़िलाफ़ विद्रोहियों को इस्तेमाल करने का चीन का पुराना इतिहास रहा है. दरअसल माओ त्से तुंग और चाओ एनलाई के ज़माने से ही नागा और मिज़ो विद्रोही चीन के युन्नान प्रांत जाकर प्रशिक्षण लिया करते थे.
भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसियां मानती हैं कि चाहे चीन अब ‘क्रांति का निर्यात’ करने में यक़ीन नहीं करता, पर वह भारत और म्यांमार की अमरीका परस्ती नीति को ‘ठीक’ करने के लिए इन विद्रोहियों का इस्तेमाल करना चाहता है.
यदि खापलांग गुट भारत के सुरक्षा बलों पर हमले जारी रखता है तो सरकार लंबे समय तक इसकी अनदेखी नहीं कर सकेगी.ज़ाहिर है, म्यांमार के पास भारत के ‘पूर्वी दरवाज़े’ की चाबी है. यदि भारत पूरब की ओर देखो की नीति पर चलता है तो उसे इस चाबी का इस्तेमाल करना होगा.उसके पास पूर्वोत्तर में धधक रही आग को समय रहते बुझाने के अलावा कोई चारा नहीं होगा.
Posted By: Satyendra Kumar Singh