भारत शायद दुनिया का अकेला ऐसा देश है जहां एक मुसलमान मर्द अपनी बीवी को कुछ ही सेकेंडों में सिर्फ़ तीन बार तलाक़ कहकर तलाक़ दे सकता है।
लेकिन तलाक़ देने के इस तरीक़े को अब कड़ी चुनौती मिल रही है। सुप्रीम कोर्ट इसे ग़ैर-संवैधानिक क़रार देने पर विचार कर रही है।भारत में लगभग पंद्रह करोड़ मुसलमान रहते हैं। उनके शादी और तलाक़ के मामले मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक़ तय होते हैं, जो ज़ाहिर तौर पर शरिया क़ानून पर आधारित होते हैं।पिछले साल अक्तूबर में 35 साल की एक मुस्लिम महिला सायरा बानो की दुनिया उजड़ गई।उस वक़्त वो उत्तराखंड में अपने मां-बाप के घर इलाज के लिए गईं थीं, जब उन्हें पति का तलाक़नामा मिला था। उसमें उन्होंने लिखा था कि वे उनसे तलाक़ ले रहे हैं।15 साल तक अपने पति से मिलने की उनकी कोशिशें नाकाम रही थीं। उनके पति इलाहाबाद में रहते हैं।
अधिकतर कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस्लामिक देशों, जिसमें पाकिस्तान और बांग्लादेश भी शामिल हैं, अपने यहां तीन बार तलाक़ लेने की इस प्रक्रिया पर प्रतिबंध लगा चुके हैं। लेकिन भारत में अभी भी ये चल रहा है।सालों से मुसलमान औरतें भारत में इसपर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रही हैं। 2004 में भी मैंने तीन बार तलाक़ लेने के ऊपर सवाल खड़े करने वाले अभियान के बारे में लिखा था।
क़रीब एक दशक के बाद यह स्थिति और ख़राब ही हुई है।आधुनिक तकनीक ने इसे और भी आसान बना दिया है। अब कई सारे मर्द ख़त, टेलिफ़ोन और एसएमएस तक का इस्तेमाल तलाक़ लेने के लिए कर रहे हैं।ऐसे कई मामले देखने को मिले हैं जिसमें पुरुष स्काईप, व्हाट्सएप या फेसबुक जैसे सोशल मीडिया का इस्तेमाल इसके लिए कर रहे हैं।नवंबर में मुंबई में सक्रिय संगठन भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन (बीएमएमए) ने तीन बार तलाक़ बोल कर तलाक़ देने के 100 मामलों पर एक रिपोर्ट जारी की।
ज़ाकिया सोमन कहती हैं कि औरतों के लिए सबसे ख़राब बात यह है कि "तीन बार तलाक़ बोलकर तलाक़ लेने का यह ग़ैर-इस्लामी तरीक़ा अक्सर मुस्लिम धर्मगुरुओं और मौलवियों के द्वारा स्वीकृत होता है।"शायद इसीलिए सायरा बानो की याचिका के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का मुस्लिम संगठनों ने विरोध किया। इसमें ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) भी शामिल है।इसकी वर्किंग कमिटी की सदस्य आसमा ज़हरा इस प्रचलन का विरोध तो करती हैं, लेकिन वे इसपर ज़ोर देती है कि भारत में इस मामले को इस्लाम विरोधी ताक़तें जितना तूल दे रही हैं, उसके मुक़ाबले यहां के मुसलमानों में तलाक़ दर बहुत कम है।
वो कहती है, "क्यों हर कोई हमारे और हमारे मज़हब के पीछे पड़ा हुआ है?"
ज़हरा का कहना है कि मौजूदा मोदी सरकार के दौर में मुसलमानों को अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। ऐसे समय में तलाक़ के मसले पर ज़ोर देने का मतलब समान नागरिक संहिता के मक़सद का साथ देना है।वो कहती हैं, "दरअसल मामला यह है कि वे हमारे मज़हब में दख़लअंदाज़ी करना चाहते हैं।"उनका कहना है कि हालांकि तीन बार तलाक़ देने का क़ुरान में कोई उल्लेख नहीं है। लेकिन चूंकी एआईएमपीएलबी केवल एक नैतिक संस्था है, हम सिर्फ़ लोगों को शिक्षित कर सकते हैं, इसलिए उन्हें इसपर प्रतिबंध लगाने का अधिकार नहीं हो जाता है।ज़हरा का कहना है कि वे लोगों को संवेदनशील और शिक्षित बनाने का भरपूर प्रयास कर रही हैं। लेकिन कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह नाकाफ़ी है।सोमन का कहना है, "इसकी निंदा करना काफ़ी नहीं है। इसे ग़ैर-क़ानूनी घोषित करने की ज़रूरत है।"वहीं सायरा बानो सुप्रीम कोर्ट से न्याय की उम्मीद लगाए बैठी हैं। वो कहती हैं, "मैं अपने शौहर को वापस पाना चाहती हूं। मुझे सुप्रीम कोर्ट से न्याय मिलने की उम्मीद है।"
Posted By: Satyendra Kumar Singh