कामकाजी माता पिता के लिए अपने बच्चों से इमोशनल बांडिंग बनाना अक्सर मुश्किल हो जाता है उनका टाइट शेड्यूल उन्हें इतनी मोहलत नहीं देता कि वो अपने बच्चों के साथ क्वांटिटी टाइम स्पेंड कर सकें। ऐसे में दोनों के बीच दूरिया आ जाती हैं। आइए जाने कुछ खास बातें जिनसे बन सकता है उनका रिश्ता बेहतर।
By: Molly Seth
Updated Date: Tue, 23 Jun 2015 10:55 AM (IST) आप अगर वर्किंग पेरेंटस हैं तो जाहिर है कि आपके बच्चों के लिए समय निकालना कठिन होता होगा। आज के दौर में पति पत्नी दोनों की कमाई के बिना बेशक एक अच्छा लाइफ स्टाइल बनाना कठिन हो जाता है। अपनी और बच्चों की जरूरतें पूरा करना और उन्हें बेहतर सुविधायें देना भी माता पिता की ही जिम्मेदारी है। पर ऐसा ना हो कि भविष्य और वर्तमान के लिए निवेश और धन अर्जित करते हुए आप अपनी लाइफ के सबसे महत्वपूर्ण एसेट और उसमें निवेश करना भूल जायें। जीहां हम बात कर रहे हैं आपके बच्चों की, जिनमें संस्कारों और जीवन मूल्यों का निवेश करना और उनके लिए सुरक्षा के साथ साथ खुशियां अर्जित करना भी आपकी जिम्मेदारी है।
जाहिर है कि अपने टाइट शेड्यूल में से आपके लिए इतना समय निकालना मुश्किल है कि आप पूरा वक्त बच्चों के साथ रहे। लेकिन आपको प्रतिदिन क्वालिटी टाइम मैनेज करना होगा जो आपको बच्चों के साथ बिताना ही है और उन्हें जीवन के सच से रूबरू कराना है। बाकी हम बता रहे हैं कुछ टिप्स जिनकी मदद से अपनी जिंदगी के सबसे कीमती रिश्ते को सही सार संभाल दे सकते हैं।
जितना संभव हो बच्चों को ग्रैड पेरेंटस के साथ रखें। इससे वो प्यार की और संस्कारों की कमी का शिकार नहीं होंगे। साथ ही यदि बच्चे घर में नौकर के साथ हैं तो ग्रैंड पेरेंट उन पर भी नजर रखेंगे। घर में नौकर रखें पर उसे भी बुजुर्गों के आदेशों का पालन करने को कहें। घर में स्थायी नौकर रखने के पहले उसकी पूरी बैकग्राउंड की जांच कर लें। नौकर को अपमानजनक तरीके से नहीं बल्कि परिवार के सदस्य की तरह ट्रीट करें ताकि वो आपकी गैर मौजूदगी में आपके बच्चों के साथ दुर्व्यवहार ना करे। घर के कीमती सामान को लाकर में ही रखें बच्चों या नौकरों के भरोसे नहीं। ऐसे नौकर की तनख्वाह ना काटें ना डिले करें। बीच बीच में आप दोनों में से जिसे समय मिले सरप्राइज चैक के लिए घर आते रहें। ताकि बच्चों और नौकर दोनों के मन में आपकी गैर मौजूदगी में कुछ भी गलत ना करने का भय बना रहे। पढ़ाई का दवाब बना कर बच्चों पर अपने फैसले ना थोपें बल्कि उनकी पसंद के विषयों को जाने और उसके हिसाब से ही पढ़ाई करने के लिए स्वतंत्रता दें। बच्चों के साथ हर दिन बातचीत करने का समय निकालें और बिना बोर हुए या उनकी बातों को रिजेक्ट किए धैर्य से सुनें। इससे बच्चे अपनी हिर बात आप से बिना हिचकिचाए शेयर करेंगे। टीन एज बच्चों की बात को एकदम रिजेक्ट ना करें, या उन्हें सख्ती से किसी खास दोस्त और चीज से दूरी बरतने का आदेश ना दें। इससे वो आपसे छुप कर वही काम करेंगे क्योंकि ये उम्र विद्रोही होती है। धीरे धीरे मनोवैज्ञानिक तरीके से उन्हें उस चीज से दूर करें। बच्चों के पीआर ग्रुप पर नजर रखें और उसे चुनने में उनकी अपरोक्ष मदद भी करें। बच्चों को सिर्फ पढ़ाई नहीं एक्स्ट्रा कैरीकुलर एक्टिविटीज और र्स्पोटस के लिए भी मोटीवेट करें। सिर्फ उनके कहने पर या अपनी टाइम ना देने पाने की गिल्ट के चलते बिना वजह बहुत पैसा ना बच्चों को दें ना उन पर खर्च करें। बच्चों को पैसे की और रिश्ते की वैल्यू सिखायें ताकि वो आपको एटीएम और संस्कारों को फालतू की बात ना समझें।
Posted By: Molly Seth