नेपाल के शहर की चकाचौंध भरी ये गलियां किसी न किसी डांस बार पर जाकर ख़त्म होती हैं। यहां सूरज ढलते ही महफ़िल सजती है और सज-धजकर नाच रही लड़कियों के बीच फ़िल्मी धुनों पर लोग थिरकने लगते हैं। रात परवान चढ़ने लगती है और इस बीच एक अन्य समूह इन डांस बारों पर पहुँचता है।
ये लोग ख़रीदार हैं जो बार में मौजूद लड़कियों की बोली लगाते हैं। सौदा तय हो जाता है और ये महफ़िल सुबह तक ऐसे ही चलती रहती है।
इसके बाद ये लड़कियां बड़े-बड़े शहरों में मौजूद डांस बार में ले जाई जाती हैं।
तस्करी रोकना नामुमकिनएक अमरीकी संस्थान के शोध के अनुसार हर साल 12,000 नेपाली लड़कियां तस्करी का शिकार हो रही हैं।भारत और नेपाल की 1,751 किलोमीटर लंबी सीमा पर तस्करी को रोकना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। ऐसा मानना है नेपाल-भारत की सीमा की चौकसी करने वाले सशस्त्र सीमा बल के अधिकारियों का।
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नेपाल के अधिकारियों और भारत के सीमा प्रहरियों का कहना है कि मानव तस्करी का सबसे बड़ा कारण है ग़रीबी।
नेपाल के दूर-दराज़ के इलाकों में रोज़गार के संसाधन नहीं होने की वजह से बड़े पैमाने पर पलायन हो रहा है।सुनीता दानुवर कम उम्र में ही तस्करी का शिकार हो गई थीं। उन्हें मुंबई ले जाया गया जहां उनका बलात्कार हुआ। फिर उन्हें जबरन जिस्मफरोशी के काम में धकेला गया।
मगर एक दिन उस जगह पुलिस का छापा पड़ा जहां सुनीता को रखा गया था। पुलिस ने उन्हें वहां से निकाला और वापस नेपाल भेज दिया।
शाहरुख-सलमान से भी ज्यादा बड़े ब्रांड बन गए हैं टीवी ऐड में मॉडलिंग करने वाले कंपनी के ये CEO! छलावे का शिकारनाम नहीं बताने की शर्त पर बात करने को तैयार हुई तस्करी की शिकार एक अन्य नेपाली युवती ने कहा कि वो शादी के झांसे में आ गई और होश संभाला तो खुद को जिस्मफ़रोशी की मंडी में पाया।वो कहती हैं, "मैं जिस लड़के से प्यार करती थी उसने मुझे मुंबई में बेहतर ज़िन्दगी का भरोसा दिलाया। मैं उसके साथ दिल्ली चली गई। मगर वो मुझे उम्रदराज़ आदमी के पास छोड़कर भाग गया। उस व्यक्ति ने मेरा बलात्कार किया। फिर मैं जिस्मफ़रोशी की मंडी में फँस गई।" सुनीता दानुवर कैमरे के सामने आकर अपनी आपबीती सुनाने में हिचकिचाती नहीं हैं। बल्कि अब उन्होंने एक सामजिक संगठन बनाकर पीड़ित लड़कियों के पुनर्वास के लिए काम करना शुरू किया है। वो कहती हैं कि ये काम भी इतना आसान नहीं है।
वो बताती हैं, "शुरू में हमने पीड़ितों को प्रशिक्षण देना शुरू किया ताकि वो बाहर जाकर नौकरी कर सकें और अपनी आजीविका चला सकें। ऐसा हुआ भी। लेकिन जब लोगों को पता चला कि ये लड़कियां तस्करी का शिकार हुई थीं तो वो फायदा उठाने की कोशिश करने लगे।"
"अब हम यहीं पर इनके लिए रोज़गार के मौके बढ़ाने की कोशिश पर काम कर रहे हैं।"
मगर नेपाल में संसाधनों की कमी है। इसलिए इन पीड़ितों को और भी ज़्यादा संघर्ष करना पड़ रहा है।हालांकि, कुछ एक सामाजिक संगठन इन पीड़ितों को सामान्य ज़िन्दगी में वापस लाने का प्रयास कर रहे हैं।मगर जिस्मफ़रोशी की मंडियों में बेची गईं इन नेपाली लड़कियों की आत्मा पर लगे घाव उन्हें हमेशा तकलीफ़ देते रहेंगे।
Posted By: Chandramohan Mishra