40 साल बाद भिंड के इस गांव में ब्याही गयी बेटी
जीवित नहीं रहीं बच्चियां
मध्य प्रदेश के भिंड जिले के गुमारा गांव में चालीस साल से बेटी की शादी नहीं हुई थी और ऐसा इसलिए था क्योंकि वहां बेटियां थी ही नहीं। जीहां गर्ल चाइल्ड को जीवित ना रखने की कुप्रथा के चलते गांव में लड़किया ही नहीं बची थीं। इस प्रथा के चलते या तो गर्भ में ही कन्या भ्रूंण की हत्या कर दी जाती थी या फिर उसे जन्म लेते ही मार डाला जाता था। सरकार के पास जब इस स्थिति की जानकारी पहुंची तो इस बारे में सख्त कार्यवाही की गयी। इलाके में बच्चे के लिंग की जरंच और अर्बाशन को बढ़ावा देने वाले क्लिनिकों और नर्सिंग होम्स पर शिकंजा कसा गया तब साल 2003 से स्थिति में कुछ परिवर्तन आना प्रारंभ हुआ।
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क्या कहते हैं आंकड़े
महिला एवम् बाल विकास विभाग के आंकड़ों के अनुसार कन्या शिशु का प्रतिशत 1995 में 10:0, 2001 में 10:2 और 2011 में 10:7 तक पहुंचा था। विभाग का कहना है ये सख्त नियमों और उनको कड़ाई से लागू करने से संभव हुआ और इसी लिए बीते साल दिसंबर में करीब 40 साल बाद गांव में एक बेटी का विवाह हुआ और इस साल भी एक और बेटी की शादी होने वाली है। हालाकि अब गांव में बेटियों की हत्या में कमी आई है, लेकिन इसके बावजूद आज भी बेटियों का जन्म खुशी की बात नहीं समझी जाती है। बेटियों को जन्म देने वाली मां को अशुभ और बेटियों को बोझ समझा जाता है। हालाकि पिछली जनगणना में 20 प्वाइंट की ग्रोथ दिखाने वाला भिंड, मध्यप्रदेश का इकलौता जिला है, फिर भी कन्या जन्म दर के मामले में वो अब भी राज्य का तीसरा सबसे खराब स्तर का जिला बना हुआ है।
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बदलाव से मिल रही है खुशी
इस सब के बावजूद गांव में आने वाले परिर्वतन से बेटियां और मायें खुश हैं। गांव के किशोर होते बच्चों में बेहद उत्साह है कि वे किसी लड़की के विवाह का हिस्सा बन रहे हैं। बीते साल शादी करने वाली आरती गुर्जर की शादी में पूरा गांव बड़े उत्साह से शामिल हुआ और इस साल शादी करने जा रहीं रचना गुर्जर का कहना है कि वे इस आजादी का आनंद ले रही हैं और शादी के बाद भी पढ़ाई जारी रख कर डॉक्टर बनना चाहती हैं। इन बेटियों का कहना है कि उनकी बहुत कम सहेलियां हैं क्योंकि उनके आसपास हमउम्र लड़कियां बेहद कम थीं।
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