एक मां जिसने जंग में अपने पांच बेटे गंवा दिए
जंग के सौ साल बाद बाद अब इन पांचों भाइयों की याद में दुनिया भर में क्रॉस बनाए जा रहे हैं जिससे प्रतीक के तौर पर ही सही, एक बार फिर उनको मिलाया जा सके।
जंग शुरू होने से पहले तक एमी का भरा-पूरा परिवार था। आठ बेटे और छह बेटियों वाली एमी के सभी बेटों ने जंग में हिस्सा लिया। पांच की मौत हो गई और एक से कभी मुलाक़ात नहीं हो सकी। एमी इतने बड़े नुक़सान के लिए तैयार नहीं थीं।साल 1918 के अप्रैल में किंग जॉर्ज पंचम और क्वीन मेरी ने एमी को उनके बलिदान के लिए शुक्रिया कहा तो एमी का जवाब था ''ये कोई त्याग नहीं था मैडम, मैंने उन्हें अपनी इच्छा से नहीं भेजा।''एमी के सातवें बेटे हैरोल्ड अपने भाई क्रिस के साथ रोज़ी की तलाश में ऑस्ट्रेलिया गए थे। सूखे में फ़सल बर्बाद हो गई तो हैरोल्ड ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड की आर्मी (ANZAC) में भर्ती हो गए।
उन्होंने 1915 में गलीपोली में लड़ाई भी लड़ी। जंग के दौरान पेचिश हो जाने पर 1916 में उन्हें मिस्र और वहां से फ़्रांस भेज दिया गया।उसी साल अगस्त में उन्होंने वेस्टर्न फ़्रंट से परिवार को एक ख़त लिखा-''क़िस्मत अच्छी थी कि गोली पसलियों में नहीं घुसी और बांह और छाती से निकल गई।''
कुछ ही दिन में 39 साल के चार्ल्स की मौत हो गई। उनका क्रॉस तंज़ानिया के दार-ए-सलाम में लगाया गया है।
एमी के सबसे छोटे बेटे सैम जंग के आख़िरी महीनों में लड़ने गए। उन्हें भी फ़्रांस भेजा गया। पहले ही पांच बेटे गंवा चुकी एमी के लिए यह बेहद चिंता की बात थी। लेकिन क़िस्मत से सैम सही सलामत वापस आ गया।
हैरोल्ड के साथ ऑस्ट्रेलिया गए क्रिस ने भी जंग में स्ट्रेचर लाने-ले जाने की ड्यूटी की थी। एक पहाड़ी से गिरकर घायल हुए क्रिस को इलाज के लिए ऑस्ट्रेलिया भेजा गया जहां वो 85 साल की उम्र तक रहे।एमी कभी क्रिस से नहीं मिल सकीं।एमी के छठे बेटे एरिक जंग में शामिल तो रहे लेकिन कभी मोर्चे पर लड़ने नहीं गए। जुलाई 1917 में भेजे गए एक ख़त में एरिक ने लिखा,''मुझे पता है कि इतने बेटों को खोकर तुम कैसा महसूस कर रही होंगी। मुझे ये भी पता है कि तुम्हें लगातार चिंता रहती है कि कहीं हमारे साथ भी ऐसा न हो जाए।लेकिन उनकी मौत सम्मानजनक है और तुम्हारा नाम हमेशा उन बहादुर मांओं की फ़ेहरिस्त में शामिल होगा जिन्होंने देश पर अपने बेटे न्योछावर कर दिए।''