'मोदी की नहीं, देश में थी कांग्रेस विरोधी लहर'
लहर जिस पर सवार होकर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी धमाकेदार तरीक़े से चुनावी मैदान में उतरी और उसने अबतक की सबसे बड़ी जीत दर्ज की.कांग्रेस विरोधी लहर से एकजुट मुख्य विपक्ष को हर तरह से फ़ायदा हुआ. हिंदी पट्टी और पश्चिम भारत के कई हिस्सों में भाजपा छा गई जबकि ओडिशा में बीजू जनता दल, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और तमिलनाडु में एआईएडीएमके के सामने कोई नहीं टिक सका.वहीं आंध्र प्रदेश में तेलुगु देशम पार्टी और तेलंगाना राष्ट्र समिति ने चुनावों में झंडे गाड़े. अगर राष्ट्रीय स्तर पर कोई लहर दिखती है तो वो है कांग्रेस विरोधी लहर.2014 का चुनाव कई बातों के लिए याद किया जाएगा.ढह गई कांग्रेस
मुख्य धारा के मीडिया में मोदी लहर की धूम इसलिए मची हुई है कि उन्होंने हिंदी पट्टी और पश्चिमी भारत में ज़बरदस्त कामयाबी हासिल की है. राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और गुजरात में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर थी. विशाल उत्तर प्रदेश और बिहार में भी कई चीज़ों ने भाजपा की मदद की.लेकिन ये लहर दक्षिणी राज्यों में एकदम सिमट गई.
केरल में भारतीय जनता पार्टी का खाता भी नहीं खुला. तमिलनाडु में इसके पांच पार्टियों वाले गठबंधन को सिर्फ़ दो सीटें मिलीं. तेलंगाना में इसे सिर्फ़ एक सीट मिली वो भी टीडीपी के साथ गठबंधन करने की वजह से. वहां मोदी और भाजपा का विरोध करने वाली टीआरएस को बड़ी कामयाबी मिली.सीमांध्र में उसे कुछ सीटें मिली हैं, जिसकी वजह फिर टीडीपी है. क्या मोदी का लहर का फ़ायदा टीडीपी को मिला? टीडीपी ने महीने भर पहले हुए निकाय चुनावों में भी जीत दर्ज की थी. तब भाजपा और टीडीपी में कोई गठबंधन नहीं था और उन्होंने एक दूसरे के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ा था.कर्नाटक में भी भाजपा को जो जीत मिली, तो उसकी वजह पार्टी में बीएस येदियुरप्पा की वापसी है. कर्नाटक विधानसभा चुनाव में (मोदी के चुनाव प्रचार के बावजूद) उसे हार का सामना करना पड़ा. तब येदियुरप्पा अपनी ख़ुद की पार्टी बना कर चुनावों में उतरे थे.ओडिशा में नवीन पटनायक की बीजेडी ने 2009 के पिछले चुनावों के मुक़ाबले अपने प्रदर्शऩ को बेहतर किया है. वहां कांग्रेस को भाजपा से ज़्यादा वोट मिले हैं.अपनी पार्टी की जीत में मोदी का योगदान बस यही है कि उन्होंने कांग्रेस विरोधी आक्रोश को आवाज़ दी. उन्होंने ये काम बड़ी शानदार तरीके़ से किया, लेकिन उन्हीं इलाक़ों में जहां पार्टी पहले से ही मज़बूत थी.
वो मध्य वर्ग के युवाओं को ख़ुद से जोड़ने में भी कामयाब रहे, बल्कि महाराष्ट्र जैसे राज्यों में वो निचले तबके के युवाओं को भी लुभा पाए. लेकिन जिन राज्यों में कांग्रेस विरोधी अन्य ताकतें मौजूद थीं, वहां मोदी का असर सीमित ही रहा है.चुनावी गणित
मीडिया ने मोदी के ‘विकास पर फोकस’ को खूब उछाला. मोदी ने चुनाव प्रचार में न तो सांप्रदायिक मुद्दे को उठाया और न ही जातिवाद के मुद्दे को. उन्होंने ये काम अमित शाह, गिरिराज सिंह, योगगुरु रामदेव और अन्य लोगों को सौंप दिया.इस तरह के चुनाव प्रचार के कारण एक डर और अस्थितरता का भाव पैदा हुआ है. वैसे इस तरह की आउटसोर्सिंग संघ परिवार की पुरानी परंपरा है. आखिरकार भाजपा राजनीति में आरएसएस का चेहरा ही तो है.