सनातन धर्म से जुड़े लगभग सभी त्योहारों को मनाने के पीछे कुछ न कुछ साइंटिफिक रीजंस जरूर छिपे होते हैं। ठीक वैसे ही दिवाली के कुछ दिनों बाद पडऩेे वाले छठ पर्व को मनाने के पीछे भी पूरा का पूरा विज्ञान छिपा है। क्या हैं इसे मनाने के पीछे के वो वैज्ञानिक और औषधीय कारण जानें...


कानपुर (इंटरनेट डेस्क)। शरद ऋतु के शुरुआत में पडऩे वाले पर्व छठ से जुड़ी लगभग सभी मान्यताएं कुछ ऐसी हैं, जो कहीं न कहीं वैज्ञानिक व औषधीय कारणों से ताल्लुक रखती हैं। न यकीन हो, तो देखें कि क्या कहते हैं इसे लेकर हमारे एक्सपर्ट्स...1 - छठ पूजा के दौरान इस्तेमाल की जाने वाली सारी चीजें शरद ऋतु यानी कि ठंड के मौसम के अकॉर्डिंग होती हैं।2 - मेडिकल एक्सपर्ट्स की मानें तो कार्तिक महीने में ब्रीडिंग पॉवर यानी कि प्रजनन शक्ति बढ़ती है और प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए विटामिन-डी बहुत जरूरी होता है, इसलिए सूर्य पूजा की परंपरा बनाई गई है।


3 - वैज्ञानिक और औषधीय इंपॉर्टेंस की बात करें तो सूर्य को जल देने के पीछे रंगों का विज्ञान छिपा है। प्रिज्म के सिद्धांत के मुताबिक सुबह सूर्यदेव को जल चढ़ाते समय शरीर पर पढऩे वाले प्रकाश से हमारी बॉडी के तमाम रंग बैलेंस्ड होते हैं, इससे इम्युनिटी पावर बढ़ जाती है। स्किन डिजीज भी कम होते हैं।

4 - वैज्ञानिक नजरिये से देखें तो षष्ठी के दिन विशेष खगोलीय बदलाव होता है। सूर्य की परा बैगनी किरणें असामान्य रूप से कलेक्ट होती हैं और इनके साइडइफैक्ट्स से बचने के लिए सूर्य की ऊषा और प्रत्यूषा के रहते जल में खड़े रहकर छठ व्रत किया जाता है।5 - इस पर्व की चतुर्थी को लौकी और भात खाना शरीर को व्रत के अनुकूल तैयार करने का प्रॉसेस होता है। पंचमी को निर्जला व्रत के बाद गन्ने के रस व गुड़ से बनी खीर पर्याप्त ग्लूकोज की मात्रा तैयार करती है।

Posted By: Ruchi D Sharma