खिलजी की राजपूत रानी की कहानी जो भुला दी गई
1316 तक दिल्ली के सुल्तान रहे अलाउद्दीन ख़िलजी ने कई छोटी राजपूत रियासतों पर हमले कर या तो उन्हें सल्तनत में शामिल कर लिया था या अपने अधीन कर लिया था।
कमला देवी, गुजरात के राजपूत राजा की पत्नी1299 में ख़िलजी की सेनाओं ने गुजरात पर बड़ा हमला किया था। इस हमले में गुजरात के वाघेला राजपूत राजा कर्ण वाघेला (जिन्हें कर्णदेव और राय कर्ण भी कहा गया है) की बुरी हार हुई थी।इस हार में कर्ण ने अपने साम्राज्य और संपत्तियों के अलावा अपनी पत्नी को भी गंवा दिया था। तुर्कों की गुजरात विजय से वाघेला राजवंश का अंत हो गया था और गुजरात के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ा था।कर्ण की पत्नी कमला देवी से अलाउद्दीन ख़िलजी ने विवाह कर लिया था। गुजरात के प्रसिद्ध इतिहासकार मकरंद मेहता कहते हैं, "ख़िलजी के कमला देवी से विवाह करने के साक्ष्य मिलते हैं।"मकरंद मेहता कहते हैं, "पद्मनाभ ने 1455-1456 में कान्हणदे प्रबंध लिखी थी जो ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित थी। इसमें भी राजपूत राजा कर्ण की कहानी का वर्णन है।"
मेहता कहते हैं, "पद्मनाभ ने राजस्थान के सूत्रों का संदर्भ लिया है और उनके लेखों की ऐतिहासिक मान्यता है। इस किताब में गुजरात पर अलाउद्दीन ख़िलजी के हमले का विस्तार से वर्णन है।"मेहता कहते हैं, ''ख़िलजी की सेना ने गुजरात के बंदरगाहों को लूटा था, कई शहरों को नेस्तानाबूद कर दिया था।''
फिल्म 'पद्मावती' से जुड़े एक, दो नहीं बल्िक कुल 8 विवाद हैं, आप भी जानें प्रोफ़ेसर हैदर कहते हैं, "एक और दिलचस्प बात ये पता चलती है कि अलाउद्दीन ख़िलजी के हरम में रह रहीं कमला देवी ने उनसे अपनी बिछड़ी हुई बेटी देवल देवी को लाने का आग्रह किया था। खिलजी की सेनाओं ने बाद में जब दक्कन में देवगिरी पर मलिक काफ़ूर के नेतृत्व में हमला किया तो वो देवल देवी को लेकर दिल्ली लौटीं।"हैदर बताते हैं, "देवल देवी से बाद में ख़िलजी के बेटे ख़िज़्र ख़ान का विवाह हुआ था। अमीर ख़ुसरो ने देवल देवी नाम की एक लंबी कविता लिखी है जिसमें देवल और ख़िज़्र ख़ान के प्रेम का विस्तार से वर्णन है। ख़ुसरो की इस मसनवी को आशिक़ा भी कहा गया है।"देवल देवी की कहानी पर ही नंदकिशोर मेहता ने 1866 में कर्ण घेलो नाम का उपन्यास लिखा था जिसमें देवल देवी की कहानी का वर्णन है। इस बेहद चर्चित उपन्यास को गुजराती का पहला उपन्यास भी माना जाता है।
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झत्यपली देवी, यादव राजा रामदेव की बेटीख़िलजी ने कड़ा का गवर्नर रहते हुए साल 1296 में दक्कन के देवगिरी (अब महाराष्ट्र का दौलताबाद) में यादव राजा रामदेव पर आक्रमण किया था। ख़िलजी के आक्रमण के समय रामदेव की सेना उनके बेटे के साथ अभियान पर थी इसलिए मुक़ाबले के लिए उनके पास सेना नहीं थी।रामदेव ने अलाउद्दीन के सामने समर्पण कर दिया। रामदेव से ख़िलजी को बेतहाशा दौलत और हाथी घोड़े मिले थे। रामदेव ने अपनी बेटी झत्यपलीदेवी का विवाह भी ख़िलजी के साथ किया था।प्रोफ़ेसर हैदर बताते हैं, "इस वाक़ये का ज़िक्र उस दौर के इतिहासकार ज़ियाउद्दीन बरनी की किताब तारीख़-ए- फ़िरोज़शाही में मिलता है।"हैदर बताते हैं, "बरनी ने रामदेव से मिले माल और उनकी बेटी से ख़िलजी के विवाह का ज़िक्र किया है लेकिन बेटी के नाम का ज़िक्र नहीं है।"
हैदर बताते हैं, "चौदहवीं शताब्दी के दक्कन क्षेत्र के इतिहासकार अब्दुल्लाह मलिक इसामी की फ़ुतुह-उस-सलातीन में ख़िलजी के रामदेव की बेटी झत्यपली देवी से शादी का ज़िक्र है।"
प्रोफ़ेसर हैदर कहते हैं, "बरनी और इसामी दोनों के ही विवरण ऐतिहासिक और विश्वसनीय हैं।"बरनी ने ये भी लिखा है कि मलिक काफ़ूर ने खिलजी की मौत के बाद शिहाबुद्दीन उमर को सुल्तान बनाया जो झत्यपली देवी के ही बेटे थे। बरनी ने लिखा था कि शिहाबुद्दीन उमर मलिक काफ़ूर की कठपुतली थे और शासन वही चला रहे थे।प्रोफ़ेसर हैदर के मुताबिक़ रामदेव ख़िलजी के अधीन रहे और दक्कन में उनके अभियानों में सहयोग देते रहे। ख़िलजी की मौत के बाद देवगिरी ने सल्तनत के ख़िलाफ़ विद्रोह कर दिया था। शादियां सिर्फ़ कूटनीतिक नहीं थींप्रोफ़ेसर हैदर मानते हैं कि ख़िलजी की राजपूत रानी कमला देवी और यादव राजकुमारी झत्यपली देवी से शादियां सिर्फ़ कूटनीतिक नहीं थी बल्कि ये व्यक्तिगत तौर पर उनके लिए फ़ायदेमंद थी।दरअसल ख़िलजी अपने ससुर जलालउद्दीन ख़िलजी की हत्या कर दिल्ली के सुल्तान बने थे जिसका असर उनकी पहली पत्नी मलिका-ए-जहां (जलालउद्दीन ख़िलजी की बेटी) से रिश्तों पर पड़ा होगा। मलिका-ए-जहां सत्ता में दख़ल देती थीं जबकि दूसरी बेगमों के साथ ऐसा नहीं था।आज कोई कमला देवी या झत्यपली देवी की बात क्यों नहीं करता? इस सवाल के जवाब में प्रोफ़ेसर हैदर कहते हैं, "क्योंकि उनके किरदार आज जो माहौल है उसमें फिट नहीं बैठते।"
प्रोफ़ेसर हैदर कहते हैं, "हमें मध्यकाल के भारत को आज के चश्मे से नहीं देखना चाहिए। उस दौर की संवेदनशीलता अलग थी, आज की संवेदनशीलता अलग है। आज जो बातें बिलकुल अस्वीकार्य हैं, वो उस दौर में आम थीं।"