पिछले एक दशक के दौरान भारत के कई शहरों को संबोधित करने का आम नज़रिया बदल सा गया है. इन्हीं शहरों में से एक है आज़मगढ़ जो पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रमुख शहरों में शुमार है.


यह वही शहर है जहाँ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में 'ख़िलाफ़त आंदोलन' को बल मिला था और जहाँ के नामचीनों में शिबली नोमानी, राहुल सांकृत्यायन और कैफ़ी आज़मी जैसे लोग शामिल हैं.लेकिन पिछले कई वर्षों से  आज़मगढ़ का नाम कुछ दूसरी वजहों से सुर्ख़ियों में रहा है.मुंबई अंडरवर्ल्ड से कथित रिश्ते, हवाला का कथित गढ़, हरकत-उल-जेहाद-इस्लामी की कथित नर्सरी और इंडियन मुजाहिदीन नामक प्रतिबंधित चरमपंथी संगठन में काम करने वाले कथित युवाओं को भर्ती करने का इलाक़ा.इस तरह के कई और आरोपों से जूझ रहे आज़मगढ़ का ज़िक्र अख़बारों की सुर्ख़ियों में पहली बार 1993 के मुंबई बम धमाकों के बाद आया था.हालांकि भारत में कथित रूप से काम करने वाले कई धार्मिक चरमपंथी संगठनों और उन पर होने वाली कार्रवाई के लिहाज़ से एक प्रमुख वारदात 2001 की है.फ़हीम की कहानी
फ़हीम अहमद ख़ान आज़मगढ़ शहर के बीचों बीच बसे रसाद नगर मोहल्ले के रहने वाले हैं.


उन्होंने बताया, "एक-आध लोग ज़रूर गुमराह हो जाते हैं लेकिन मैं ये कह सकता हूँ कि 98-99 प्रतिशत लोगों का इन तमाम संगठनों से ताल्लुक ही नहीं है. ज़िले में क्राइम का रेट भी वैसा ही है जैसा पूर्वांचल के अन्य हिस्सों में है. और कभी  आज़मगढ़ में आतंक से जुड़ी कोई घटना भी नहीं घटी".बहरहाल गर्मी की एक शाम में बैठकर चाय और समोसों पर बात करते वक़्त फहीम को लगता है कि एक दशक के बाद नई सरकार आई है इसलिए हालात बेहतर हो सकते हैं.उन्होंने कहा, "आप गुनहगारों को बिल्कुल सज़ा दीजिए. लेकिन आज़मगढ़ के इतने सारे लड़के जो जेलों में बंद हैं और उन पर लगे आरोपों की पूरी तरह जांच भी नहीं हो सकी है, उनके घर वालों का क्या होगा. मैं तो छूट गया लेकिन अगर फंसा दिया गया होता तो मेरे परिवार का क्या होता."अपने साथ हुई घटना के 13 साल बीत जाने पर फ़हीम की ज़िन्दगी बिल्कुल बदल चुकी है.कुछ वर्षों तक दुबई में रहने के बाद वे भारत वापस लौट आए और इन दिनों उसी टेड़िया मस्जिद के पास एक दुकान चलाकर परिवार का पेट पाल रहे हैं जहां से उन्हें 13 वर्ष पहले उठाया गया था.

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari