ड्रैगन की हर चाल पर है 'क्वाड' की नजर, चीन के विस्तारवादी मनसूबों पर नकेल
एनके सोमानी (फ्रीलांसर)। नवंबर 2017 में अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत ने हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते हस्तक्षेप पर अंकुश लगाने के लिए क्वाड की स्थापना की थी। बैठक में उपस्थित सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों ने इस क्षेत्र में शांति, स्थिरता और समृद्धि को बढ़ावा देने के लक्ष्य के साथ संपर्क, ढांचागत सुविधाओं और सुरक्षा को लेकर आपसी सहयोग बढाने पर जोर दिया। क्वाड देशों की यह बैठक इसलिए भी अहम हो जाती है कि इस समय भारत और चीन की सेना डिसइंगेजमेंट की प्रक्रिया के तहत पीछे हट रही है। सेना के इस कदम से पूर्वी लद्दाख सेक्टर में एलएसी पर बना तनाव कम हो गया है।सामरिक महत्व वाले इलाकों पर अचानक कब्जा कर एलएसी पर तनाव
अब उम्मीद इस बात की भी की जा रही है कि भारत और चीन के बीच उत्पन्न सीमा विवाद भी किसी अंतिम नतीजे पर पहुंच जाएगा। पूर्वी लद्दाख में पिछले नौ महीनों से भारत और चीन की सेनाएं एक दूसरे के सामने डटी हुई थीं। इस दौरान कई बार ऐसे मौके भी आए जब सेना युद्ध के कगार पर पहुंच गई थी। निसंदेह क्वाड समूह की बढ़ती सक्रियता को चीन अपने लिए बड़े खतरे के तौर पर देखने लगा है। ऐसे में उसने भारत को रणनीतिक मोर्चे पर काउंटर करने के लिए पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी, हॉट स्प्रिंग, गोगरा-कोंग्का ला क्षेत्र और पैंगोंग त्सो के उत्तर में रणनीतिक प्रभाव और सामरिक महत्व वाले इलाकों पर अचानक कब्जा कर एलएसी पर तनाव पैदा कर दिया।आर्थिक मोर्चे पर घेरने के लिए चीनी मोबाइल ऐप्स को किया बैन
भारत और चीन के बीच टकराव पिछले साल मई में तब शुरू हुआ, जब चीनी सेना ने इस क्षेत्र में भारत के कब्जे वाले इलाके में पैर जमा लिए थे। इसके बाद जून में चीनी सैनिकों ने गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों पर हमला किया जिसमें बीस जवान शहीद हो गए थे। इसके बाद दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया था। दरअसल, इस बार जब चीन ने लद्दाख क्षेत्र में घुसपैठ की कोशिश की तो भारत उसके सामने डटकर खड़ा हो गया। भारत ने हर रणनीतिक व कूटनीतिक मोर्चे पर उसको सख्ती से जवाब दिया। सैन्य मोर्चेे पर घेरने के लिए उसने एलएसी पर जवानों की संख्या बढ़ाई। आर्थिक मोर्चे पर घेरने के लिए चीनी मोबाइल ऐप्स को बैन किया। सैन्य स्तर पर बातचीत के साथ-साथ भारत ने अपने सैनिकों की हौसला अफजाई कर चीन के इस भ्रम को भी तोड़ा कि भारत की सैन्य क्षमता कड़ाके की ठंड में पस्त हो जाएगी।चीन को अपने कदम पीछे खींचने लेने के लिए मजबूर होना पड़ाकुल मिलाकर कहा जाए तो भारत ने युद्ध क्षेत्र के मैदान से लेकर समझौते की टेबल तक अपनी कूटनीतिक कुशलता का ऐसा खाका तैयार किया कि चीन को अपने कदम पीछे खींचने लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। पूरे मामले में भारत शुरू से ही चीन पर दबाव बनाने की नीति पर चलता हुआ दिखाई दिया। वैश्विक मंचों पर भारत चीन को विस्तारवादी मानसिकता वाला राष्ट्र साबित करने की दिशा में आगे बढ़ा। भारत के इन प्रयासों का परिणाम यह हुआ कि चीन को बाइडेन प्रशासन ने साफ तौर पर चेता दिया कि पड़ोसी देशों के साथ उसके जो विवाद चल रहे हैं, उस पर अमेरिका की निगाहें हैं। बाइडेन प्रशासन की यह चेतावनी सीधे-सीधे भारत व ताइवान के संदर्भ में थी। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के एजेंडे पर सहयोग को लेकर भी चीन भारत के दबाव में था। बीते दिनों ही दोनों देशों के बीच इस मुद्दे पर बात हुई थी।पैगोंग झील के उत्तर और दक्षिण तट पर सेना के पीछे हटने का समझौता
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने पिछले दिनों संसद में पूर्वी-लद्दाख की मौजूदा स्थिति पर कहा था कि चीन के साथ पैगोंग झील के उत्तर और दक्षिण तट पर सेना के पीछे हटने का समझौता हो गया है। समझौते के अनुसार दोनों देश टकराव वाले क्षेत्रों में डिसएंगेजमेंट के लिए अप्रैल 2020 की फॉरवर्ड डेपलॉयमेंट्स (सैन्य तैनाती) जो एक दूसरे के नजदीक है, से पीछे हटकर वापस अपनी-अपनी स्थायी और मान्य चौकियों पर लौटेंगे। हालांकि, चीन की सेना ने अपने बयान में केवल पैंगोंग झील से पीछे हटने की बात कही है, जबकि यह भी कहा जा रहा है कि चीन ने डेपसांग समेत कुछ अन्य सेक्टर्स पर भी कब्जा किया हुआ है। पीछे हटने को लेकर फिलहाल चीनी सेना का जो बयान आया है, उसमें अप्रैल 2020 से पहले की स्थिति में लौटने की बात कहीं नहीं है। चीन पर नजर रखने के लिए अब भारत ने क्वाड देशों के जरिए चीन को उलझाने की जिस नीति पर काम शुरू किया है, देखना है कि चीन इस चक्रव्यूह को भेद पाता है या नहीं।