इराक में आजकल एक टीवी शो काफी चर्चित हो रहा है. इस शो की खासियत ये है कि इसमें हाल के दिनों में हुए आईएस हमलों के दोषी और हमले में मारे गए लोगों के परिजनों का आमना सामना करवाया जाता है.
बगदाद के करादा इलाके की एक सड़क. टीवी शो का एक दल, सुरक्षाकर्मी और दो दोषी दिखाई दे रहे हैं.ये वही करादा है जो हाल के दिनों में सिलसिलेवार हमलों का शिकार रहा है.जैसे ही ये लोग हमले से प्रभावित जगह पर रुकते हैं आस पास की बालकनी में खड़े लोग उन्हें गालियां देने लगते हैं. दोषियों को करादा टीवी स्टूडियो वापस लाया जाता है.ये जिस खास टीवी शो का दृश्य उसका नाम है, 'द ग्रिप ऑफ द लॉ'.सरकारी टीवी चैनल का शोहमले में अपनी भूमिका के बारे में जब अबू विस्तार से बताते हैं तो बेहद घबड़ाए हुए दिखते हैं.शो के आखिर में जब उनसे पूछा जाता है कि क्या उन्हें अपने किए पर पछतावा है तो अबू जसेम बुझे हुए स्वर में कहते हैं, "हां."एक करोड़ दर्शक
अहमद हसन 'द ग्रिप ऑफ द लॉ' शो के प्रेजेंटर हैं.अहमद शो में लाए जाने वाले हमलावरों के बारे में बताते हुए कहते हैं, "हमले में सबसे आगे रहने वाले लड़ाके सरल स्वभाव के होते हैं, वे पूरी तरह जागरुक नहीं होते हैं."
हसन बताते हैं, "जेल में रहने के बाद हमलावरों को अहसास होता है कि उन्होंने मासूमों का खून बहाया है. फिर वे इस्लामिक स्टेट से खुद को अलग-थलग महसूस करने लगते हैं."उनके अनुसार 'द ग्रिप ऑफ द लॉ' शो को अब तक लगभग एक करोड़ लोग देख चुके हैं.
शो कहां हिट है?वहीं दूसरी ओर सुन्नी इलाके में इस 'द ग्रिप ऑफ द लॉ' टीवी शो में दिखाई जा रही बातों पर लोगों को भरोसा नहीं है.बगदाद के अधमिया इलाके के एक व्यक्ति ने नाम जाहिर नहीं किए जाने की शर्त पर बताया, "मुझे तो ये सब मनगढ़ंत लगता है."वे कहते हैं, "बड़े अधिकारी से जब किसी युवक की किसी बात पर अनबन हो जाती है तो चरमपंथी बताकर उससे हत्या की बात कबूल करवाई जाती है. हमारे कई रिश्तेदारों के साथ ऐसा हो चुका है."वे शो पर आरोप लगाते हुए कहते हैं कि शो में जिन्हें भी लाया जाता है वे न तो आईएस के लड़ाके होते हैं और न ही उनका किसी हमले से कोई लेना देना होता है.
मासूमों के लिए अदालतेंइसमें कोई अचरज नहीं लेकिन इस खास टीवी शो को लेकर लोगों में मिली जुली प्रतिक्रियाएं हैं.
साल 2003 में अमरीका की अगुआई में हमले के बाद हुए नरसंहार को लेकर इराक के लोगों का अनुभव कुछ और ही है.अधिकांश लोग मानते हैं कि ज्यादातर सुन्नी सरकार के दमन का शिकार रहे जबकि नागरिक इलाकों पर हुए हमलों का खामियाजा शिया को उठाना पड़ा.
टीवी शो पर आरोप है कि इसका झुकाव सरकार के युद्ध उद्देश्यों के प्रति ज्यादा है. लोगों का कहना है कि ये टीवी शो सोच के अंतर की पड़ताल नहीं करता बल्कि इसका झुकाव सरकार के युद्ध उद्देश्यों के प्रति ज्यादा दिखाई देता है.इराकी अधिकारियों पर बड़े पैमाने पर गिरफ्तारी और लोगों की गैरकानूनी तरीके से हिरासत में लेने के आरोप लगते रहे हैं.कार्यक्रम में कई बार तो स्पष्ट रूप से और कई बार संकेत के रूप में ताकत और आईएस पर विजय का प्रदर्शन दिखाई देता है.
Posted By: Satyendra Kumar Singh