हामिद मीर के हमले के बाद पाकिस्तानी मीडिया का भविष्य
इस हमले के बाद पत्रकारों में इसे लेकर काफ़ी ग़ुस्सा था लेकिन कुछ टिप्पणीकारों ने जियो न्यूज़ के प्रसारण की कुछ गंभीर खामियों की ओर भी इशारा किया है. हामिद मीर जियो न्यूज़ में ही काम करते थे.हमले के बाद हुए हंगामे से मीडिया के बीच एकता का अभाव भी जाहिर हुआ और यही जंग/जियो मीडिया समूह के लिए सबसे बड़ी बाधा है.हामिद मीर जियो टीवी के सबसे लोकप्रिय प्राइम टाइम शो 'कैपिटल टॉक' के एंकर थे. वो कराची एयरपोर्ट से अपनी कार में निकले ही थे कि उन पर जानलेवा हमला हुआ और वो गंभीर रूप से घायल हो गए.उनके भाई और जंग/जियो मीडिया समूह के ही पत्रकार आमिर मीर ने आरोप लगाया कि इस हमले की योजना पाकिस्तान की इंटर-सर्विस इंटेलीजेंस (आईएसआई) ने बनाई थी.प्रतिबंध
ये प्रतिबंध ही सब कुछ नहीं हैं. सेना केबल ऑपरेटरों में अपने प्रभाव का प्रयोग अन्य तरीक़ों से जियो न्यूज़ प्रबंधन को परेशान करने के लिए करती रही है.हामिद मीर पर हुए हमले के बाद कई प्रमुख शहरों में जियो न्यूज़ को केबल टेलीविज़न सेट में उसके परंपरागत स्लॉट से हटा दिया गया था.
वरिष्ठ पाकिस्तानी पत्रकार उमर क़ुरैशी ने 25 अप्रैल को ट्वीट किया, "कराची के सबसे बड़े केबल ऑपरेटरों में से एक वर्ल्ड कॉल ने जियो न्यूज़ को नंबर 11 से 67 पर धकेल दिया है."इसके ठीक बाद मध्य इस्लामाबाद में आईएसआई की तारीफ़ वाले पोस्टर नज़र आए जिन पर एजेंसी के प्रमुख जनरल इस्लाम की तस्वीर लगी थी. कुछ धार्मिक संगठनों ने आईएसआई के समर्थन में रैलियाँ आयोजित करनी शुरू कर दीं जबकि इन रैलियों में शामिल कुछ संगठनों पर देश में प्रतिबंध लगा हुआ है.पेशेवर रुख
एक्सप्रेस की यह आलोचना उम्मीद के अनुरूप ही है. जंग समूह के मालिक शकील-उर-रहमान और जंग से छोटे समूह दी एक्सप्रेस मीडिया समूह के मालिक सुल्तान लखानी के बीच संबंध अच्छे नहीं रहे हैं. एक्सप्रेस समूह भी एक टीवी चैनल चलाता है जो पहले पायदान के लिए जियो न्यूज़ को कड़ी टक्कर देता है.एआरवाई के मालिक सोने का कारोबार करते हैं. वो भी रहमान को ज़्यादा पसंद नहीं करते.चेतावनी
चाहे जो भी हो जियो को सरकार का समर्थन प्राप्त है और इसी कारण यह अभी प्रसारित हो रहा है. मीडिया के जानकार मानते हैं जियो आईएसआई के ख़िलाफ़ जो कैंपेन चला रहा है वो एक बहुत ही ख़तरनाक क़दम है.शायद यही वजह है कि जियो टीवी का प्रबंधन एक तुष्टिकरण कैंपेन चला रहा है जिसमें चरमपंथ के ख़िलाफ़ युद्ध में सेना की भूमिका को प्रमुखता से दिखाया जा रहा है. दूसरी तरफ़ चैनल पीईएमआरए की कार्रवाई से बचने के लिए न्यायपालिका के हस्तक्षेप की भी कोशिश में है.