आज ही पैदा हुआ था वो भारतीय क्रिकेटर जो एक ही मैच में करता था बैटिंग, बॉलिंग और विकेटकीपिंग
कानपुर। 2 अक्टूबर 1939 का कर्नाटक में जन्में कृष्णप्पा कुंदरन भारतीय क्रिकेटर रहे हैं। 60-70 के दशक में कुंदरन टीम इंडिया के मल्टीटैलेंटेड खिलाड़ी माने जाते थे। वह बैटिंग तो कर ही लेते थे साथ ही गेंदबाजी की कला में भी माहिर थे। यही नहीं उस वक्त विकेटकीपिंग में उनकी जैसी फुर्ती शायद ही दूसरे किसी विकेटकीपर में होती थी। कुंदरन की यह खासियत उन्हें अनोखा क्रिकेटर बनाती थी।
कुंदरन ने टीम इंडिया में बतौर ओपनर इंट्री मारी थी। वह न सिर्फ बल्लेबाजी बल्कि गेंदबाजी में भी ओपनिंग किया करते थे, वो भी एक ही मैच में। क्रिकइन्फो के डेटा के मुताबिक, कुंदरन ने अपने सात साल के टेस्ट करियर में कुल 18 मैचों में 34 पारियां खेली जिसमें कि 21 पारियों में वह बतौर ओपनर मैदान में उतरे। इस दौरान उनका एवरेज 41 का रहता था हालांकि ओवरऑल देखा जाए तो कुंदरन ने टेस्ट क्रिकेट में 32.70 की औसत से कुल 981 रन बनाए। इसमें दो शतक और तीन अर्धशतक भी शामिल हैं। टेस्ट में उनका हाईएस्ट स्कोर 192 रन है।
कुंदरन के क्रिकेट करियर की एक और खासियत है कि उन्होंने फर्स्ट क्लॉस से पहले इंटरनेशनल क्रिकेट खेल लिया था। दरअसल शुरुआत में कुंदरत मुंबई की ओर से खेला करते थे। मगर उस टीम में नरेन तम्हाने बतौर विकेटकीपर अपनी पहचान बना चुके थे। ऐसे में कुंदरन ने रेलवे की टीम से खेलने का मन बनाया और उनकी किस्मत अच्छी थी कि रेलवे की तरफ से खेलते-खेलते वह टीम इंडिया में आ गए। 20 साल की उम्र में कुंदरन ने पहला टेस्ट मैच खेला। इंजीनियर से बेहतर माना जाता था उनकोकृष्णप्पा कुंदरन को उनके जमाने के सबसे बेहतरीन विकेटकीपर बल्लेबाज माना जाता था। कुंदरन की कर्नाटक टीम के कप्तान रहे वी. सुब्रमण्या की मानें तो कुंदरन उस वक्त फारुख इंजीनियर से बेहतर विकेटकीपिंग और बल्लेबाजी कर लेते थे। मगर उन्हें उतना मौका नहीं मिल पाया। आपको बताते चलें, कुंदरन विश्व के पहले ऐसे विकेटकीपर थे जिन्होंने एक टेस्ट सीरीज में 500 या उससे ज्यादा रन बनाए। यह कारनामा उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ 1963-64 में किया था। इसके तीन साल बाद एक टेस्ट मैच में गेंदबाजी करते हुए कुंदरन चोटिल हो गए थे और फिर कभी इंटरनेशनल मैच नहीं खेल पाए।11 घंटे बैटिंग कर इस भारतीय बल्लेबाज ने बनाया था सबसे धीमा दोहरा शतक
3000 रन बनाने वाले इस भारतीय क्रिकेटर ने नहीं मारा एक भी छक्का