Thappad Movie Review: ठोस स्क्रिप्ट, ठोस बात, नो बकवास
Thappad Movie Review: इस थप्पड़ से इतना डर लगेगा पुरुषों को कि घरेलू हिंसा करना भूल जाओगे। पुरुष एक थप्पड़ भी नहीं मार सकता, हर्ज है, दिक्कत है। क्यों एक पति हरगिज़ गलती से भी पत्नी पर एक बार भी हाथ नहीं उठा सकता, किसी भी हाल में। दर्शकों के बीच क्यों इस थप्पड़ की गूंज होना जरूरी है। यह उन तमाम महिलाओं को देखना क्यों जरूरी है, जो पति की हर गलती को सम्मान बना कर ताउम्र एक मुखौटा पहन कर जिंदगी गुजार देती हैं। यह उन मांओं और सास के लिए आई ओपनर है, जो बेटे की गलती पर बच्चा है, जाने दो, सह लो का कंठस्थ पाठ पढ़ाती रहती हैं। इस फिल्म के जरिए अनुभव सिन्हा ने उनके सामने कुछ नहीं किया है, बस धीरे से आइने के सामने खड़ा कर दिया है।
फिल्म : थप्पड़कलाकार: तापसी पन्नू, कुमुद मिश्रा, रत्ना पाठक शाह, पवेल गुलाटी, दीया मिर्जा, माया सराव, गीतिका विद्या, तन्वी आजमी
निर्देशक : अनुभव सिन्हालेखक: अनुभव और मृणमईरेटिंग: चार स्टारकहानीकहानी एक खुशमिजाज अपनी चॉइस से हाउस वाइफ बनना स्वीकार करने वाली अमृता ( तापसी पन्नू) के इर्द गिर्द घूमती है। उसको अपने पति विक्रम( पवेल) की प्रोफेशनल तरक्की से खुशी मिलती है। अपनी सास( तन्वी आजमी) का ध्यान रख कर भी वह खुश है। उसकी छोटी सी दुनिया है। उसे किसी बात से शिकायत नहीं है। उसे डांस करना अच्छा लगता है, तो वह मोहल्ले की एक बच्ची को भी डांस सिखा कर खुश है। उसे जिन्दगी में दो ही चीज चाहिए थी, ख़ुशी और सम्मान। एक दिन अचानक उसकी दुनिया में भूचाल आता है, जब उसका पति विक्रम भरी पार्टी में सबके सामने उसे थप्पड़ लगाता है। अमृता का सम्मान टूटता है। वह साफ कहती है कि वह एक बार भी थप्पड़ नहीं लगा सकता और इसके बाद वह स्पष्ट हो जाती है कि प्यार नहीं बचा तो साथ क्यों रहना।
सहज तरीके कहती है बातफिल्म की सबसे खूबसूरत बात यह है कि जब मामला कानूनी तरीके से सुलझाया जाने लगता है, तब फिल्म में बिना कोर्ट रूम ड्रामा हुए निर्देशक सारी दलीलें कि क्यों पुरुष एक थप्पड़ भी नहीं मार सकता। अपने विजन को स्पष्ट कर देता है। इस एक वन लाइनर पर अनुभव ने समझदारी से अपनी बात रखी है, लेखिका मृणमई के सहयोग से और दमदार संवाद के माध्यम से महिला के उस कोने में झांकते हैं, जिन्हें प्राय: बहुत मामूली बात कह कर नजरअंदाज कर दिया जाता है। फिल्म में अमृता मीडिल क्लास वीमेन, हाई फाई वकील माया जिसका पति उसे नाम और शोहरत के नाम पर हैरेस करता है , और नौकरानी के रूप में सुनीता जिसका पति उसे हर रात ही पिटता है, तीनों के माध्यम से पुरुष के उस घिनौने रूप को दर्शाने की कोशिश की है। वहीं तन्वी आजमी और उनके पति के रिश्ते के अलगाव को दिखा कर भी एक महत्वपूर्ण बात रखने की कोशिश की है।
अच्छा डायरेक्शनऐसे बारीक विषय पर इतनी बारीक फिल्म बनाने के लिए निर्देशक की तारीफ होनी चाहिए। ऐसे दौर में जहां प्रोमिसिंग निर्देशक इम्तियाज, अनुराग, विशाल भारद्वाज जैसे दिग्गज दर्शकों को समझने में और कनेक्ट करने में विफल हो रहे हैं। अनुभव सिन्हा का यह 2.0 वर्जन है, जब वह मुल्क, आर्टिकल 15 और अब थप्पड़ जैसी दमदार फिल्में परोस रहे हैं।क्या है अच्छा:फिल्म का संवाद और फिल्म का सादगीपन, कोई भाषण, कोई कोर्ट रूम ड्रामा नहीं, एकदम मुद्दे की बात, मेलोड्रामा के लिए कोई जगह नहीं। ठोस स्क्रिप्ट, ठोस बात, नो बकवास, शानदार कलाकारों का सपोर्ट। एक साथ तीन चार कहानियां चलती हुई भी उलझती नहीं हैं। यह भी फिल्म की खूबसूरती है।क्या है बुरा:
कुछ किरदार व्यर्थ लगे, दिया मिर्जा के किरदार के साथ थोड़ी नाइंसाफी हुई।
अदाकारी:सभी ने धमाकेदार अभिनय किया है। फिल्म में जितनी दमदार स्क्रिप्ट है, उतनी ही शानदार अदाकारी कलाकारों की। तापसी लगातार अपनी फिल्मों से अलग लीग की अभिनेत्री साबित होती जा रही हैं। इस बार भी धांसू अभिनय, लेकिन फिल्म के असली हीरे फिल्म के बाकी कलाकार हैं। वकील की भूमिका में माया ने शानदार साथ दिया है, गीतिका विद्या ने एक नौकरानी की भूमिका में भी जान डाल दी है। फिल्म में उनका किरदार काफी प्रभावशाली और महत्वपूर्ण है। पवेल ने विक्रम की भूमिका में जीवंत अभिनय किया है। तन्वी आजमी, रत्ना पाठक और कुमुद मिश्रा ने भी सहजता से अपने अपने जटिल किरदार निभाए हैं।बॉक्स ऑफिसमाउथ पब्लिसिटी से फिल्म जबरदस्त कामयाब होने वाली है।वर्डिक्ट: 50-70 करोड़ के बीचReviewed by Anu Verma