माई नेम इज़ ख़ान एंड आई एम नॉट ए टेरोरिस्ट. शाहरुख़ ख़ान को 'माई नेम इज़ ख़ान' फ़िल्म में बार बार ये कहना पड़ता था कि वो एक 'आतंकवादी' नहीं हैं.


लेकिन हैदराबाद के 30 वर्षीय सैयद इमरान ख़ान को असल ज़िन्दगी में बार बार ये दोहराना पड़ता है कि वो एक 'आतंकवादी' नहीं है.हैदराबाद में 2007 के मक्का मस्जिद बम धमाकों में गिरफ़्तारी के बाद उन्होंने डेढ़ साल जेल में गुज़ारा और जब अदालत ने कहा, 'आप बेगुनाह हैं' तो वो अपने घर को वापस लौट गए.लेकिन वापसी के बाद उन्हें एहसास हुआ कि उनकी दुनिया बदल चुकी है. अदालत में बेगुनाही साबित होने के बाद भी वो समाज के लिए 'एक आतंकवादी' ही थे.और वो भी छोटी हैसियत वाले 'आतंकवादी' नहीं बल्कि 'एक ख़तरनाक आतंकवादी' जिसने पुलिस के झूठे बयान के अनुसार "दस साल पाकिस्तान में गुज़ारे और ट्रेनिंग हासिल की".'टेरर टैग'
इमरान कहते हैं कि उनकी गिरफ़्तारी के समय वो 22 साल के थे और हैदराबाद के बाहर कहीं नहीं गए थे. पुलिस के अनुसार वो 12 साल के थे जब वो पाकिस्तान ट्रेनिंग लेने गए थे. अदालत में पुलिस की जग हंसाई हुई और इमरान की दुहाई.लेकिन बाहर की दुनिया भी उनके लिए बेरहम साबित हो रही थी. जेल से रिहाई के इतने साल पूरे होने के बाद आज भी उन्हें अपनी बेगुनाही की सफ़ाई दोस्तों, दूर के रिश्तेदारों और समाज को देनी पड़ती है.


"आज भी कहीं पार्टी में जाता हूँ या दोस्तों के साथ बैठता हूँ तो ऐसा लगता है कि अब पुलिस कहीं से आएगी और हमें उठा कर ले जाएगी."-इमरान ख़ान"हाल ही में हुए लोक सभा चुनाव के बाद सर्वेक्षणों में दावा किया गया है कि इस बार भारतीय जनता पार्टी को मुसलमानों के बढ़े हुए वोट मिले हैं. चुनाव परिणाम के बाद मुसलमान किस तरह नई सरकार को देख रहे हैं, इसका जायज़ा लेने के लिए बीबीसी टीम ने देश के कुछ हिस्सों का दौरा किया. बीबीसी संवाददाता पहुंचे आज़मगढ़, हैदराबाद, असम, पश्चिम बंगाल और मुज़फ़फरनगर और ये जानने की कोशिश की क्या सोच रहा है मुसलमान नरेंद्र मोदी की सरकार के बारे में."-बीबीसी विशेषमैं उनसे मिलने उनके दफ़्तर गया. उन्होंने ने शानदार अंदाज़ में दिल खोल कर सलाम कर मेरा स्वागत किया. मैंने दिल में सोचा, क्या ये मक्का मस्जिद का मास्टरमाइंड हो सकता है?मैंने यही सुर्ख़ियां पढ़ी थीं 2007 में उनकी गिरफ़्तारी के समय. 'हिन्दू' अख़बार ने तो उन्हें 'हुजी' संगठन का सबसे ख़तरनाक 'आतंकवादी' कह डाला था.वो कहते हैं कि पुलिस और मीडिया के 'घिनौने' रोल के कारण आज भी 'टेरर टैग' उनके नाम से हट नहीं सका है.

मैंने पूछा दिल में कोई मलाल है? उन्होंने सीधे तौर पर इसका जवाब न देते हुए कुछ ऐसी बातें कहीं जिससे समझ में आया कि वो सब कुछ भूल कर आगे की तरफ़ देखना पसंद करते हैं.आगे बढ़ेंगे मुसलमान? कई मायने में सैयद इमरान ख़ान आगे बढ़ चुके हैं. एक-डेढ़ साल में उनके प्रति लोगों का रवैया भी बदला है. वो बताते हैं, "अब लोगों को यक़ीन हो चला है कि मैं आतंकवादी नहीं हूँ. इसलिए अब ज़िन्दगी थोड़ी बेहतर है."इमरान अपने एक दोस्त के साथ एक बीपीओ कंपनी चला रहे हैं. वो कहते हैं, "कोई नौकरी देने को तैयार नहीं था इसलिए हम ने ख़ुद का बिज़नेस शुरू किया है और ये अच्छा चल रहा है."अब दहशत मेंमानसिक तौर पर आज भी वो 18 महीने की उस तकलीफ़ को भूल नहीं सके हैं. वो बताते हैं, "आज भी कहीं पार्टी में जाता हूँ या दोस्तों के साथ बैठता हूँ तो ऐसा लगता है कि अब पुलिस कहीं से आएगी और हमें उठा कर ले जाएगी."काफ़ी हद तक सामाजिक और निजी तौर पर भी वो पूरी तरह से टेरर टैग की छवि से उभर नहीं सके हैं.
बी टेक की डिग्री, देखने में भले और स्वस्थ, बोलने में तेज़, उर्दू जितनी अच्छी बोलते हैं उतनी अंग्रेजी भी और एक बीपीओ ऑफ़िस के मालिक."रिश्ते आते हैं लेकिन जब उन्हें मेरा बैकग्राउंड पता चलता है तो वो पीछे हो जाते हैं."-इमरान ख़ानइमरान जैसा युवा शादी के मार्किट में काफ़ी योग्य वर माने जाएंगे. लेकिन वो अब तक कुंवारे हैं क्योंकि उन्हें कोई लड़की देने को तैयार नहीं. वो हंस कर लेकिन थोड़ा शर्माकर बोले, "मैं तीस साल का हो गया हूँ लेकिन कोई लड़की देने को तैयार नहीं."आगे वो कहते हैं, "रिश्ते आते हैं लेकिन जब उन्हें मेरा बैकग्राउंड पता चलता है तो वो पीछे हो जाते हैं."मैंने कहा आप ख़ुद से लव मैरिज क्यों नहीं कर लेते. वो फिर थोड़ा शर्माए और संकोच करते हुए बोले, "शुरुआत होती है लेकिन जब उन्हें मेरे बारे में पता चलता है तो वो फ़ोन भी नहीं उठातीं और कुछ थैंक यू कहकर चली जाती हैं."कई बार तो उन्हें रिश्तेदारों और दोस्तों की शादियों में भी दावत नहीं मिलतीं.लेकिन वो इस बात से ख़ुश हैं कि उनकी बहन की शादी किसी तरह से हो गई क्योंकि उन पर लगा 'टेरर टैग' उनके परिवार पर भी लग गया था.

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari