बैंक खातों के बारे में गोपनीयता को लेकर स्विट्जरलैंड इस समय भयानक दबाव झेल रहा है. अमरीका स्विट्जरलैंड की सरकार से पहले ही कह चुका है कि वो उन अमरीकी नागरिकों के बारे में प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध कराए जिनके खाते स्विस बैंकों में हैं.


अब यूरोपीय संघ भी इस बारे में स्विट्जरलैड सरकार से जानकारी साझा करने की मांग कर रहा है. स्विटजरलैंड के लिए यूरोपीय संघ की इस मांग को खारिज करना आसान नहीं होगा. अगर उसे यूरोप के वित्तीय बाजार में पहुंच बनानी है तो उसे ये करना होगा.जहां तक स्विट्जरलैंड की बात है उसके लिए बैंक गोपनीयता को खत्म करना आसान बात नहीं होगी.ज्यादातर देशों का ये मानना है कि गोपनीयता के बहाने अवैध पैसे, टैक्स चोरी और भ्रष्टाचार से जुड़े पैसों की हिफाजत की जाती है वहीं स्विट्जरलैंड में इसे सम्मानजनक नीति माना जाता है क्योंकि इससे सरकार और नागरिकों के बीच का भरोसा जाहिर होता है.


एसोसिएशन ऑफ स्विस प्राइवेट बैंकर्स के प्रमुख माइकल डी रॉबर्ट का कहना है,“ स्विस बैंको की गोपनीयता बिल्कुल पेशेवर है...ये ठीक वैसे ही है जैसे डॉक्टर या वकीलों का पेशा. बैंक अपने ग्राहकों के बारे में दूसरों को जानकारी नहीं दे सकते.”सम्मानजनक इतिहासजो लोग बैंक गोपनीयता को जारी रखना चाहते हैं उनका कहना है कि इस नीति को पहले पहल 1930 में लागू किया गया था. इसका मकसद नाजियों से उन जर्मन यहूदियों के पैसों को जब्त होने से बचाना था जो अपना पैसा वहां जमा कर रहे थे.

स्विस बैंक ऐक्ट 1934 में लाया गया था. इसके कुछ समय पहले ही एक घोटाले का पर्दाफाश हुआ था जिसमें फ्रांसीसी राजनेताओं और व्यापारियों के स्विट्जरलैंड में गोपनीय खाते होने की बात उजागर हुई थी. इस एक्ट को इसीलिए बनाया गया था ताकि भविष्य में बैंक ग्राहकों की जानकारी को गोपनीय रखा जा सके.भारत में योगगुरू रामदेव स्विस बैंको में जमा काले धन का मुद्दा उठाते रहे हैंअगर हाल ही में हुई घटना को देखें तो साबित होता है कि स्विस बैंकों की गोपनीयता नीति से यूरोपीय नेताओं को फायदा ही होता है. फ्रांसीसी वित्त मंत्री जेरोम काउजक पर फ्रांस में कर चोरी के आरोप लगे थे. हाल ही में पता चला है कि उन्होंने स्विस बैंकों में सैकड़ों हजार यूरो जमा किया था.आर्थिक समस्या से जूझ रहे यूरोप में इस तरह की घटनाएं लोगों में गुस्सा पैदा कर रही हैं.ग्रीस का भी बहुत सारा पैसा कर चोरी के रूप में स्विस बैंकों में जमा है. उसने भी उस पैसे को वापस पाने के लिए दबाव बनाया है. ये भी एक बड़ा कारण है जिसकी वजह से स्विट्जरलैंड पर भारी दबाव है.स्विट्जरलैंड: क्या करें, क्या न करें

स्विट्जरलैड में भी बैंक खातों की गोपनीयता नीति को लेकर सोच विचार चल रहा है. घरेलू मोर्चे पर ये नीति बेहतर ढंग से काम कर रही है लेकिन विदेशी ग्राहकों को लेकर भी क्या ये उतनी ही उपयुक्त है.स्विट्जरलैंड ट्रांसपेरेंसी के प्रमुख ज्यां पॉल मीन कहते हैं, “जब तक ऐसी जगहें कायम हैं जहां लोग अपना पैसा छिपा सकते हैं तब तक भ्रष्टाचार को काबू करना बेहद कठिन होगा.”वो ये भी कहते हैं, “स्विट्जरलैंड को निश्चित रूप से इससे फायदा हुआ है. देश में बहुत सारा पैसा आया है जो कि इसके बिना संभव नहीं था.”अमरीकी प्रशासन ने भी स्विट्जरलैंड से उन अमरीकियों के बारे में जानकारी मांगी है जिनके खाते स्विट्जरलैंड में हैंकानून विशेषज्ञ फिलिप मास्त्रोनार्डी इस तर्क से सहमति जताते हैं. स्विटजरलैंड के दूसरे जाने माने अकादमिक लोगों ने मिलकर एक मेनिफेस्टो जारी किया है जिसमें मांग की गई है कि बैंकों की गोपनीयता नीति को समाप्त किया जाए.वो सवाल पूछते हैं, “क्या ये नैतिक है? मेरे हिसाब से कानून का राज, पारदर्शिता का सिद्धांत और ईमानदारी सबसे अहम हैं. और स्विट्जरलैंड की बैंक नीतियां इन्हीं का पालन नहीं करतीं”‘आर्थिक युद्ध’
स्विट्जरलैंड की सरकार के लिए ये मसला बेहद कठिन हो चुका है. सरकार के मंत्री दो स्थितियों के बीच फंसे हैं. एक तरफ यूरोप से अच्छे संबंधों की जरूरत है तो दूसरी ओर अमरीका है और तीसरी ओर है वहां की जनता का दबाव जो कहता है कि विदेशी दबाव के आगे झुकना नहीं है.दक्षिणपंथी स्विस पीपल पार्टी से संसद सदस्य येव्स निडगर कहते है कि मसला दरअसल ये है कि स्विट्जरलैंड अपना खुद का नियम बना सकता है या नहीं. वो कहते हैं, “क्या हम आजाद देश हैं जहां हमारी संसद का कानून चलता है या फिर हम कोई उपनिवेश हैं जहां ताकतवर पड़ोसियों की सत्ता चलती है?”निडगर यूरोप और अमरीका से पड़ने वाले दबाव को आर्थिक युद्ध के रूप में देखते हैं. उनका मानना है कि इस दबाव की मुख्य वजह ईर्ष्या है क्योंकि स्विट्जरलैंड पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा निजी पैसे की देखभाल करता है.स्विट्जरलैंड की बैंक गोपनीयता को बनाए रखने के लिए वो काफी कुछ करने को तैयार हैं.फ्रांसीसी वित्त मंत्री जेरोम काउजक पर स्विस बैंको में पैसा जमा करने का आरोप था
वो झुकना नहीं चाहते. वो कहते हैं, “मेरा मानना है कि स्विट्जरलैंड के पास अभी भी कुछ उपाय बाकी है. जैसे कि क्लिक करें ग्रीस के कर्ज की हम गारंटी ले लें. हम कर्ज चुकाएंगे नहीं लेकिन उसकी गारंटी ले लेंगे. और ये तब तक रहेगी जब तक हमारे बैंको की गोपनीयता नीति कायम रहेगी.”हालांकि समग्र रूप से कहें तो ऐसा ही नहीं है लेकिन इससे ये जरूर जाहिर होता है कि अमरीका और यूरोपीय संघ जिस तरह से स्विट्जरलैंड पर दबाव बना रहे हैं उसको लेकर नाराजगी है.बातचीत से निकलेगा हलनिडगर जैसे लोग भले ही इस मसले पर दो-दो हाथ करने को तैयार हैं लेकिन कई लोग ऐसे भी हैं जो इसे बातचीत के जरिए हल करना चाहते हैं. इनमें खुद बैंकर शामिल हैं.माइकल डी रॉबर्ट कहते हैं, “हम अपने पड़ोंसियों के साथ इस तरह के मसलों को लेकर युद्ध नहीं कर सकते. ये एकदम स्पष्ट है. हम देख रहे हैं कि पूरी दुनिया एक ही रास्ते जा रही है. उस स्थति में हमें निश्चित रूप से उनके साथ तालमेल बिठाना होगा.”स्विट्जरलैंड के जाने माने बैंकरों में से एक रॉबर्ट जैसे लोग अगर इस मसले पर समझौते की बात कर रहे हैं तो इसका मतलब साफ है स्विट्जरलैंड अब वो स्वीकार कर चुका है जिसके बारे में एक समय सोचा भी नहीं जा सकता था.

Posted By: Garima Shukla