सुनीता विलियम का बेसिक गोताखोर अधिकारी से अंतरिक्ष यात्री तक का सफर
कानपुर। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के जरिये स्पेस में यात्रा करने वाली भारतवंशी अमेरिकी एस्ट्रोनॉट सुनीता विलियम आज यानी कि 19 सितंबर को 53 साल की हो गईं हैं। नासा के आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, सुनीता विलियम का जन्म 19 सितंबर, 1965 को अमेरिका के ओहियो के युक्लिड में हुआ था। उनके पिता डॉ. दीपक पंड्या 1964 में भारत से अमेरिका चले गए थे। उनकी माता बोनी पंड्या स्लोवेन अमेरिकी मूल की हैं। सुनीता की फैमिली मूल रूप से गुजरात के मेहसाना जिले के झुलासन से ताल्लुक रखती है। सुनीता ने माइकल नाम के एक अमेरिकी व्यक्ति से शादी की है। बता दें कि सुनीता ने दो मिशन के दौरान अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (आइएसएस) में 322 दिन बिताया है। उनका दूसरा मिशन 2012 में खत्म हुआ था। सबसे ज्यादा समय तक स्पेस वाक का कीर्तिमान सुनीता के नाम पर है।
सुनीता की पढाई
सुनीता ने अपनी शुरुआती पढाई मैसाचुसेट्स के नीधम हाई स्कूल से 1983 में पढ़ाई पूरी की। इसके बाद 1987 में उन्होंने यूनाइटेड स्टेट्स नेवल अकैडमी से फिजिकल साइंस में ग्रेजुएशन किया। फिर उन्होंने फ्लोरिडा इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से 1995 में मास्टर्स ऑफ इंजीनीरिंग मैनेजमेंट की पढाई की। पढाई के दौरान सुनीता ब्रिलियंट स्टूडेंटस में से एक थीं।
सुनीता का टर्निंग पॉइंट
सुनीता विलियम्स स्पेस यात्री होने के साथ अमेरिकी नौसेना की एक अधिकारी भी रह चुकी हैं। 1987 में उन्हें अमेरिकी नौसेना में कमीशन हासिल हुआ, करीब 6 महीने की अस्थायी नियुक्ति के बाद उन्हें बेसिक डाइविंग ऑफिसर बना दिया गया। इसके बाद 1989 में उन्हें नेवल एयर ट्रेनिंग कमांड के लिए भेज दिया गया, जिसके बाद वे ‘नेवल एविएटर' पद पर नियुक्त हुईं। इसके बाद जनवरी 1993 में सुनीता ने ‘यू.एस. नेवल टेस्ट पायलट स्कूल’ में प्रक्टिस शुरू की और दिसंबर तक पूरा कोर्स खत्म कर दिया। 1995 में उन्हें यू.एस. नेवल टेस्ट पायलट स्कूल में काम करने का मौका मिला। वहां उन्होंने कई हेलिकॉपटर्स उड़ाए, जिसके बाद 1998 में सुनीता का नासा में सेलेक्शन हो गया। यही उनके जीवन का सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट साबित हुआ।
शुरू हुआ ट्रेनिंग
इसके बाद अगस्त 1998 में सुनीता विलियम का एस्ट्रोनॉट कैंडिडेट के रूप में 'जॉनसन स्पेस सेंटर' में ट्रेनिंग शुरू हुई। चूंकि सुनीता पढाई में ब्रिलियंट थीं, इसलिए उन्हें इन सब के बारे में समझने में ज्यादा समय नहीं लगा। 9 दिसंबर, 2006 को सुनीता को स्पेसक्राफ्ट ‘डिस्कवरी’से ‘इंटरनेशनल स्पेस सेंटर’ भेजा गया। वहां उन्हें एक्सपीडिशन-14 दल में शामिल किया गया। अप्रैल 2007 में रूस के अंतरिक्ष यात्री चेंज किये गए, जिसके बाद ये एक्सपीडिशन-15 हो गया। कहा जाता है कि एक्सपीडिशन-14 और 15 के दौरान उन्होंने स्पेस में लगभग तीन स्पेस वाक किये। 6 अप्रैल, 2007 को उन्होंने अंतरिक्ष में ‘बोस्टन मैराथन’ में हिस्सा लिया और 4 घंटे 24 मिनट तक अंतरिक्ष में मैराथन के दौरान दौड़ने वाली सुनीता दुनिया की पहली व्यक्ति बन गयीं। इसके बाद 22 जून, 2007 को वे फिर धरती पर वापस आ गईं।
सुनीता को मिले पुरस्कार
इसके बाद 2012 में सुनीता एक्सपीडिशन 32 और 33 में शामिल हुईं। उन्हें 15 जुलाई, 2012 को बैकोनुर कोस्मोड्रोम से स्पेस में भेजा गया। वे 17 सितंबर, 2012 को एक्सपीडिशन 33 की कमांडर पद पर नियुक्त की गईं। इसके बाद 19 नवंबर को सुनीता धरती पर वापस लौट आयीं। उन्हें अब तक नेवी कमेंडेशन मेडल, नेवी एंड मैरीन कॉर्प एचीवमेंट मेडल, ह्यूमैनिटेरियन सर्विस मेडल, मैडल फॉर मेरिट इन स्पेस एक्स्पलोरेशन द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा 2008 में सुनीता को भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया, गुजरात विश्वविद्यालय ने 2013 में उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की और 2013 में स्लोवेनिया द्वारा ‘गोल्डन आर्डर फॉर मेरिट्स’सम्मानित किया गया।
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