अण्‍णादुरै के निधन के बाद जब डीएमके डांवाडोल हो रही थी करुणानिधि ने कमान संभाली। जिसे वे अंत तक संभाले रहे। समर्थक उन्हें 'कलैग्‍नर' कह कर बुलाते थे। कलैग्नर यानी 'काला मर्मज्ञ' जो अच्छी तरह जानता था कि तमिलों की तकदीर कैसे लिखनी है...


कानपुर। मई का महीना रहा होगा, तारीख ठीक से याद नहीं। साल 2006, तमिलनाडु विधानसभा चुनाव के परिणाम अभी आए ही थे। यह तय चुका था कि जयललिता की सरकार जा रही है। द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) सहयोगी दलों के साथ सत्ता में वापसी करने में कामयाब रही थी। इस जीत की पटकथा असल जिंदगी में स्क्रिप्ट राइटर व राजनेता एम करुणानिधि ने लिखी थी। 82 साल की उम्र में वह पार्टी को सत्ता में वापस लाने में सफल रहे थे। पांच साल पहले ही राज्य की जनता ने उन्हें टीवी स्क्रीन पर धकियाए व गिरफ्तार कर जेल ले जाए जाते देखा था। यह घटना 2001 में जयललिता की सत्ता में वापसी के ठीक बाद की है। जिसकी छवियां अभी धुंधली नहीं पड़ी थी। जिन लोगों ने तमिलनाडु की राजनीति को करीब से देखा है उनके लिए इस उक्ति पर यकीन करना मुश्किल हो सकता है कि राजनीति में कोई स्थाई शत्रु या मित्र नहीं होता। इंडिया टुडे तमिल की संपादक रही वासंती ने अपनी किताब 'कटआउट, कास्ट एंड पॉलिटिक्स' में 1989 में एम करुणानिधि के कार्यकाल में तमिलनाडु विधानसभा के भीतर जयललिता की साड़ी खींचे जाने की घटना का जिक्र किया है। जयललिता इसे शायद कभी भुला नहीं पाई। इसके बाद से ही करुणानिधि व जयललिता द्रविड़ राजनीति के दो ध्रुव में बदल गए। दो अलग छोर जो कभी नहीं मिले। अब जबकि दोनों में से कोई नहीं है तमिलनाडु की राजनीति हमेशा के लिए बदलने जा रही है। जयललिता ने जहां एमजीआर की जगह ले ली। वहीं अण्णादुरै की जगह ले चुके करुणानिधि व डीएमके एक दूसरे के पर्याय बन गए। वे तमिल राजनीति ही नहीं तमिल साहित्य के भी मर्मज्ञ थे


मई 2006, चेन्नई में अण्णा सालै स्थित डीएमके पार्टी के मुख्यालय अण्णा अरिवालयम का नजारा देखते बनता था। जयललिता के आवास व एआईएडीएमके ऑफिस के ठीक उलट। जहां हम कुछ देर पहले ही होकर आए थे। यहां जश्न मन रहा था। उस जीत का जिसका इंतजार डीएमके कार्यकर्ता 2011 के बाद से आज तक कर रहे हैं। उत्साह से सरोबार पार्टी कार्यकर्ता नाच-गा रहे थे। अंदर हॉल में पत्रकार पार्टी प्रमुख एम करुणानिधि के आने का इंतजार रहे थे। तब तक समय काटने के लिए साथी पत्रकार आपस में बातें कर रहे थे। डीएमके के घोषणा पत्र में चुनाव जीतने के बाद कलर टीवी बांटने के वादे पर बात हो रही थी। साथ ही हम कयास लगा रहे थे कि क्या पार्टी जिसका चुनाव निशान 'राइजिंग सन' (उगता हुआ सूरज) है में 'सनराइज' होगा। इशारा करुणानिधि के सत्ता की बागडोर अपने बेटे एमके स्टालिन को सौंपने की ओर था। जो तब 50 वर्ष की उम्र में पार्टी की युवा इकाई का नेतृत्व कर रहे थे। कुछ देर बाद हमेशा की तरह आंखों पर चश्मा चढ़ाए कंधे पर पीला अंगवस्त्र डाले एम करुणानिधि ने कमरे में प्रवेश किया। सामने पड़ी खाली कुर्सी पर 'कलैग्नर' बैठ गए, उनके समर्थक उन्हें यही कहकर बुलाते थे। यह शब्द 'कला मर्मज्ञ' उन पर सटीक बैठता था। वह तमिल राजनीति ही नहीं बल्कि तमिल साहित्य के भी मर्मज्ञ थे। जहां तक याद है उनके अगल-बगल कोई नहीं था। उम्र के इस पड़ाव तक आते-आते आंदोलन के दिनों के उनके संगी-साथियों में से अधिकतर कब के विदा या पीछे छूट चुके थे। उनमें अभिनेता व राजनेता एमजी रामचंद्रन भी शामिल हैं। जो उनके मित्र से राजनीतिक प्रतिद्वद्वी में बदल गए थे। कभी करुणानिधि की लिखी पटकथा पर बनी फिल्म ने एमजीआर के करियर को नई ऊंचाई दी थी। फिल्मों से बनी छवि बाद में एमजीआर के राजनीतिक जीवन की पूंजी साबित हुई। उनके हाथों सत्ता गंवान के बाद करुणानिधि को लंबा राजनीतिक वनवास झेलना पड़ा। अगले दिन की हेडलाइन तलाश रहे हम लोग उनसे किसी नाटकीय संवाद की अपेक्षा कर रहे थे। यह स्वाभाविक भी था। यह अपेक्षा उस व्यक्ति से थी जिसने अनेक पटकथाएं लिखी थीं। जिसकी कलम से निकले गीतों में कभी दमन व जातिवाद के खिलाफ आवाज मुखर हुई थी। जिसे अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत से ही सामाजिक बदलाव व राजनीतिक संदेशों को आम जन तक ले जाने की थिएटर व फिल्मों की ताकत का आभास था। उन्होंने अपनी बात की शुरुआत तमिल में कविता से की। जिसका मतलब समझने के लिए पास बैठे साथियों की मदद लेनी पड़ी। वह संगठन की शक्ति का जिक्र कर रहे थे। किस तरह तिनका-तिनका जुड़कर ताकतवर बन जाता है। इसके कुछ ही दिन बाद एम करुणानिधि ने पांचवीं व आखिरी बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इसके बाद अगले दो विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी में सत्ता में वापसी करने में नाकामयाब रही। हिंदी विरोधी अांदोलन के नायकों में से एक थे

2006 के तमिलनाडु विधानसभा चुनावों की रिपोर्टिंग के दौरान कुछ ही दिनों पहले करुणानिधि के पैतृक गांव होकर आया था। तंजावुर में बातचीत के दौरान डीएमके प्रत्याशी ने बताया कि उनके नेता करुणानिधि का पैतृक गांव यहीं पास में ही है। मन में दुविधा थी तय कार्यक्रम के मुताबिक मदुरै जाया जाए या फिर हिंदी विरोधी आंदोलन के नायकों में से एक के गांव जाने के लिए तमिलनाडु रोडवेज की बस में सवार हुआ जाए। डायरी में लिखे गांव के नाम का उच्चारण करना कठिन हो रहा था। फिर भी 75 किमी की उस यात्रा में कंडक्टर व सहयात्रियों को तो बताना ही था कि कहां उतरना है। एम करुणानिधि का जन्म जिस तिरुक्ककुवलै गांव में हुआ। वह तंजावुर से अलग होकर बने जिले नागपट्टिनम आता था। डेढ़ साल पहले आई सुनामी ने इस जिले पर कहर बरपाया था। असली कठिनाई गांव पहुंचने के बाद की थी। शाम ढल रही व हल्की बूंदाबांदी भी थी। यह बारिश का मौसम नहीं था। तमिलनाडु में बारिश अक्टूबर-नवंबर में होती है जब लौटता हुआ मानसून राज्य को भिगोता जाता है। करुणानिधि के पैतृक गांव पहुंचने के बाद उनके पैतृक घर पहुंचना था। बस ने जिस जगह उतारा वहां पास ही एसबीआई की ब्रांच थी। बातचीत के बाद मैनेजर ने अपने एक कर्मचारी को करुणानिधि के घर तक साथ भेजा इस वादे के साथ कि जब भी खबर छपेगी उन्हें अखबार की प्रति जरूर भेजूंगा। उस साधारण से घर जिसका ठीक तरह से रखरखाव किया गया था के अंदर ग्लास केस के भीतर करुणानिधि की मां अंजू की बड़ी सी मूर्ति लगी हुई थी। साथ वाली दीवार पर करुणानिधि के जीवन से जुड़ी तमाम तस्वीरों ने एक फ्रेम के भीतर जगह पाई हुई थी। तस्वीरें जिनमें वह पेरियार से लेकर अण्णादुरै व एमजीआर के साथ नजर आ रहे थे। यहां उनके राजनीतिक सफर की झलक थी। एक बड़ी से पोट्रेट में करुणानिधि की मां कुर्सी पर बैठी हुई व वे स्वयं हाथों में डिग्री लिए नजर आ रहे थे। ऊपर कोने में अण्णादुरै व संत तिरुवल्लुवर को भी जगह मिली हुई थी। यह वह जगह थी जहां से उस व्यक्ति का सफर शुरू हुआ था जिसने आने वाले दिनों में तमिलनाडु की राजनीति को दिशा दी। समाज सुधारक व 'सेल्फ रेस्पेक्ट मूवमेंट' के प्रणेता पेरियार ईवी रामासामी नायकर करुणानिधि के पहले गुरु बने। उस वक्त उनकी उम्र 18 वर्ष रही होगी। जब पेरियार व अण्णादुरै के बीच मतभेद हुआ व उन्होंने द्रविड़ कषगम से अलग होकर द्रविड़ मुनेत्र कषगम बनाई तो 25 वर्ष के हो चुके करुणानिधि उनके साथ हो लिए। दोनों ने मिलकर पार्टी को स्थापित किया। पार्टी के स्थापित नेताओं की जगह अण्णादुरै ने भी करुणानिधि पर भरोसा किया। अण्णादुरै के निधन के बाद जब डीएमके डांवाडोल हो रही थी करुणानिधि ने कमान संभाली। जिसे वे अंत तक संभाले रहे। द्रविड़ सिर्फ नाम का बचेगा, अवशेष भी रहेंगे लेकिन अब आत्मा नहीं रहीमुत्थुवेल करुणानिधि के निधन के साथ ही समाज सुधार के आंदोलन के बीच से निकली द्रविड़ राजनीति का अंतिम अध्याय पूरा हो गया लगता है। पार्टियों के नाम में जरूर द्रविड़ बचा व बना रहेगा। उसके अवशेष भी रहेंगे लेकिन उसकी आत्मा जिसका पहले ही पर्याप्त क्षरण हो चुका है का अंश नहीं रहेगा। मरीना बीच पर करुणानिधि अंतिम निद्रा में लीन हो चुके हैं। पास ही राजनीति में कभी मित्र व शत्रु रहे अण्णादुरै, एमजीआर व जयललिता भी चिर निद्रा में हैं। सभी अपनी पारी खेल चुके हैं। तमिलनाडु की राजनीति में नया अध्याय शुरू होने जा रहा है। कहानीकार और स्क्रिप्ट राइटर से तमिलनाडु के मुख्यमंत्री तक विवादों से भरा रहा करुणानिधि का सफरकरुणानिधि का इतना बड़ा कुनबा भी नहीं रोक पाया जयललिता की जीत!अंतिम संस्कार से पहले करुणानिधि को लेकर हाईकोर्ट में हुई सुनवाई, जानें क्यों मरीना बीच में समाधि पर फंसा पेंच

Posted By: Mayank Kumar Shukla