दिल्ली विश्वविद्यालय या डीयू के 77 कॉलेजों में क़रीब 4000 शिक्षक एड हॉक यानी तदर्थ शिक्षक के रूप में पढ़ाते हैं. पिछले कई सालों से विश्वविद्यालय में बड़े पैमाने पर शिक्षकों की स्थायी नियुक्ति नहीं हुई है. इसलिए शैक्षणिक विश्वविद्यालय ने बड़े पैमाने पर एड हॉक शिक्षकों की बहाली कर रखी है ताकि कॉलेजों में शिक्षण का कार्य सुचारू रूप से चल सके.


लेकिन अस्थायी शिक्षकों की की स्थायी बन चुकी व्यवस्था ने ऐसे शिक्षकों के जीवन को बहुत प्रभावित किया है.इन्हें हमेशा नौकरी जाने का डर सताता रहता है. इनके भीतर की इसी असुरक्षा का फायदा उठाकर उनसे तरह-तरह के ऐसे ग़ैर शैक्षणिक काम भी कराए पड़ते हैं जो इनके कार्यक्षेत्र में नहीं आता.एक सर्वेक्षण से पता लगा है कि डीयू की शैक्षणिक व्यवस्था में अहम भूमिका निभाने वाले ये शिक्षक हर दिन शोषण, मानसिक यंत्रणा, ज़्यादा काम और असुरक्षा के ऐसे वातावरण में नौकरी करते हैं जिसे किसी भी आधार पर मानवीय नहीं कहा जा सकता.सर्वेक्षणसर्वे के मुताबिक एड हॉक शिक्षकों की हालतसर्वे में 223 शामिल, 133 महिला, 90 पुरुष223 में से 9 के साथ यौन दुर्व्यवहारएफ़वाईयूपी के बाद 62 की नौकरी खत्म32 फ़ीसदी को 3 महीने का कॉन्ट्रैक्ट64 फ़ीसदी को समर सैलरी नहीं


48 फ़ीसदी को 18 से ज्यादा लेक्चर

69 फ़ीसदी विषय नहीं चुन सकते64 फ़ीसदी को नौकरी जाने का डर44 फ़ीसदी के साथ दुर्व्यवहार

दिल्ली विश्वविद्यालय के भारती कॉलेज में एड हॉक शिक्षक के रूप में कार्य करने वाली अल्बीना शक़ील ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर यह सर्वेक्षण किया, जिसमें एड हॉक शिक्षकों ने अपनी पहचान ज़ाहिर किए बिना बताया कि उन्हें किस तरह के माहौल में कार्य करना पड़ता है और किन-किन परेशानियों का सामना करना पड़ता है.इस सर्वेक्षण में विश्वविद्यालय के 4000 में से केवल 223 एड हॉक शिक्षकों ने हिस्सा लिया.बीबीसी ने भी कई एड हॉक शिक्षकों से बात की. एड हॉक शिक्षकों की पहले से असुरक्षित नौकरी के खतरों को देखते हुए हमने उनकी पहचान गुप्त रखी है.दीपाली कुमारी (साउथ कैंपस) – हमें ये डर हमेशा सताता रहता है कि चार महीने बाद क्या होगा. कहीं हमें निकाल न दिया जाए. बीच में वर्कलोड कम हो जाता है तो बीच में भी हटाया जा सकता है. हमें कुछ भी पढ़ाने को दे दिया जाता है. जिस विषय में हमारी विशेषज्ञता नहीं है वो भी हमें पढ़ाने को कहा जा सकता है.हमें चार महीने में केवल तीन छुट्टी मिलती है. नौकरी की अनिश्चितता की वजह से कई शिक्षक शादी के कई साल बाद भी बच्चे नहीं पैदा कर पा रहे.
11-12 साल से पढ़ा रहे कुछ लोगों को हाल ही में एक कॉलेज से यह कहकर निकाल दिया गया कि आप योग्य नहीं हैं. अगर ऐसा था तो सवाल व्यवस्था पर उठता है कि क्या 11-12 साल से वह शिक्षक अपने विद्यार्थियों के साथ अन्याय कर रहा था.हद तो तब हो जाती है जब विद्यार्थी भी आपको एहसास दिलाने लगते हैं कि आप एड हॉक टीचर हैं और चाय वाला भैया भी आपकी अवहेलना करने लगता है.रजत कुमार (दक्षिणी परिसर) – कुछ कॉलेजों में एड हॉक टीचरों के लिए स्टूडेंट फ़ीडबैक का सिस्टम चल रहा है. अगर छात्र टीचर के बारे में ख़राब फ़ीडबैक देते हैं तो उन्हें लगने लगता है कि उनकी नौकरी पर ख़तरा है. इस व्यवस्था की वजह से एड हॉक टीचर को अतिरिक्त सतर्क रहना पड़ता है कि कहीं छात्र ख़राब फ़ीडबैक न दे दें. फ़ीडबैक का ऐसा प्रावधान स्थायी शिक्षकों के लिए नहीं होता. चाहे वो जैसा पढ़ाएं.यौन उत्पीड़नइस तस्वीर का दूसरा रुख भी है. बीबीसी को जानकारी मिली है कि एड हॉक टीचर्स की नियुक्ति पूरी तरह से कॉलेज प्रशासन के स्तर पर होती है जिसमें कुछ ही लोग निर्णायक भूमिका में होते हैं.
ऐसी नियुक्तियों में कॉलेज के बाहर के किसी निर्णायक मंडल के न होने की वजह से खूब धांधलियां होती हैं और कई ऐसे उम्मीदवारों को पहचान और पहुंच के आधार पर नियुक्ति मिल जाती है जो कतई पद के क़ाबिल नहीं होते.दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति दिनेश सिंह ने इस स्थिति की मौजूदगी को आधिकारिक रूप से स्वीकार तो नहीं किया, लेकिन ये आश्वासन ज़रूर दिया कि अगर ऐसा है तो इस नेटवर्क और रैकेट को तोड़ा जाएगा.उम्मीद यही है कि आने वाले समय में जल्दी ही योग्य एड हॉक शिक्षक स्थायी नियुक्ति पाएंगे और उनमें से जो कुछ एड हॉक ही रह जाएंगे उनके काम करने की हालत में सुधार आएगा.

Posted By: Subhesh Sharma