पटना में एक बहुचर्चित प्रेस कॉन्फ़्रेंस। मीडिया के सामने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राष्ट्रीय जनता दल आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव और कांग्रेस के सीपी जोशी। ऐसा कम ही होता है जब तीन अलग-अलग धुरी की राजनीति करने वाले एक साथ मंच पर नज़र आए।


लेकिन बिहार में चुनाव है और चुनाव में इस महागठबंधन का मक़सद भाजपा का रथ रोकना है। इस प्रेस कॉन्फ़्रेंस से ये बात निकलकर आई कि इस गठबंधन के तीन दलों आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस को कितनी-कितनी सीटें मिलेंगी।इस घोषणा से यही लगता है कि लालू यादव की चली है। घोषणा के मुताबिक़ आरजेडी 100 सीटों, जेडीयू 100 सीटों और कांग्रेस 40 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। बिहार विधानसभा में कुल 243 सीटें हैं।सीटों के बँटवारे पर हुई घोषणा यही बताती है कि नीतीश कुमार कितने बैकफ़ुट पर हैं। 10 साल सत्ता में रहने और सुशासन बाबू का तमग़ा हासिल करने के बाद भी उन्हें भाजपा और ख़ासकर नरेंद्र मोदी के प्रभाव को रोकने के लिए किस हद तक समझौता करना पड़ रहा है।


लेकिन अगर इस गठबंधन की जीत हुई, तो सारे गिल-शिकवे पृष्ठभूमि में चले जाएँगे। लेकिन चुनावी नतीजे आने में काफ़ी समय है और बिहार की राजनीति आने वाले समय में और रोचक होगी। क्योंकि इस गठबंधन पर सीटों के बँटवारे पर सवाल उठाने वाला एनडीए भी कम मुश्किल में नहीं।

वहाँ भी सीटों का बँटवारा ऐसा गंभीर विषय है कि अभी तक कोई खुलकर बोल तक नहीं रहा। कम से कम आरजेडी-जेडीयू-कांग्रेस गठबंधन ने सीटों के बँटवारे का पहले ऐलान करके एक मनोवैज्ञानिक बढ़त तो ज़रूर बना ली है।घुटने टेकने समानलेकिन लालू यादव भी कोई कच्ची गोली खेलने वालों में से नहीं है। बिहार की राजनीति पर नज़र रखने वाले लोगों का मानना है कि बिहार की राजनीति का सबसे रोमांचक अध्याय चुनाव के बाद आना है। यानी चुनाव बाद अगर किसी गठबंधन को बहुमत नहीं मिलता और त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति बनती है, तो चौंकानेवाले समीकरण सामने आ सकते हैं।उन स्थितियों के लिए लालू प्रसाद यादव तैयार हैं। उनकी पार्टी के कुछ सदस्यों का उपेंद्र कुश्वाहा और जीतनराम मांझी के प्रति सहानुभूति के शब्द इसी का हिस्सा माने जा सकते हैं। यानी लालू प्रसाद यादव ने भी नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद का दावेदार मान कर भी दबाव की एक पूरी शृंखला तैयार रखी है।सीटों के बँटवारे में दो दलों की अहम की लड़ाई में किसी को बहुत बड़ा फ़ायदा हुआ है, वो है कांग्रेस पार्टी। पिछली बार कांग्रेस कम सीटें दिए जाने से नाराज़ होकर आरजेडी गठबंधन से अलग हो गई थी। पार्टी ने सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ा था. लेकिन उसे सीटें सिर्फ़ चार मिली थी।

लेकिन अब एक मज़बूत गठबंधन का हिस्सा होने के बाद उसकी 40 सीटें 243 से अधिक प्रतीत हो रही हैं। कुल मिलाकर इस गठबंधन के सीटों के बँटवारे ने बिहार की राजनीति को और उलझा दिया है।सौ-सौ सीटें लेकर दोनों दल विपक्षी गठबंधन के ख़िलाफ़ सेंचुरी लगा पाएँगे या नहीं, ये देखना काफ़ी रोचक होगा।

Posted By: Satyendra Kumar Singh