श्रीलंका दुनिया में भले ही अपनी प्राकृतिक सुंदरता और प्रभाकरण के चरमपंथ के लिए मशहूर रहा हो लेकिन इसकी एक और दिलचस्प ख़ासियत भी है।


यहां नेत्रदान को लेकर ग़जब की जागरूकता है। यहां औसतन हर पांचवां व्यक्ति नेत्रदान करता है और इससे दूसरों की दुनिया रोशन हो रही है।पारामोन मालिंगम के दायीं आंख पर पट्टी बंधी हुई है। जबकि बांई आंखों से आंसू निकल रहे हैं। लेकिन वे राहत की सांस ले रहे हैं। वे कहते हैं, “मैं तो सोचता था कि मुझे जिंदगी भर एक ही आंख से देखना होगा।”मध्य श्रीलंका स्थित एक दुकान के मालिक मालिंगम की दायीं आंख 13 साल पहले स्टील के तार से जख्मी हो गई थी, बीते साल उसमें लकड़ी से चोट लग गई, इन दोनों हादसों के बाद एक नेत्रदान करने वाले व्यक्ति की कार्निया उनकी आंख में लगाई गई है और उनकी आंखों की रोशनी लौट आई है।
कार्निया आंखों के सामने का हिस्सा होता है, जो रोशनी में किसी चीज़ की फोकस को रेटिना पर बनाता है। जब ये क्षतिग्रस्त होता है, चोट से या फिर बीमारी से तो आदमी की आंखों की रोशनी प्रभावित होती है, कई बार तो चली भी जाती है।


पासादी आम सिंहलियों की तरह ही बौद्ध हैं। श्रीलंका की 75 फीसदी आबादी बौद्ध धर्म को मानती है। वह जीवन के चक्र, मौत, पुर्नजन्म को मानती हैं और नेत्रदान को भविष्य के लिए निवेश मानती हैं।वह कहती हैं, “अगर मैंने इस जीवन में नेत्रदान कर दिया तो अगले जीवन में मेरी आंखों की रोशनी बेहतर होगी।”उनके बाद बारी में प्रीति कालेवाटे हैं, जो कहती हैं, “इस जन्म में हम जो भी अच्छा काम करेंगे, वही हमारे साथ अगले जन्म में जाएगा। अगर किसी आदमी को जरूरत है तो हमें दान करना चाहिए। बिना हाथ के हम काम कर सकते हैं। बिना पांव के भी काम कर सकता है। लेकिन बिना आंखों के हम क्या कर सकते हैं?श्रीलंका की गैर सरकारी संगठन आई डोनेशन सोसायटी के मुताबिक श्रीलंका में हर पांच में से एक आदमी नेत्रदान की प्रतिज्ञा लेता है। इस संगठन की स्थापना एक युवा डॉक्टर हडसन सिल्वा ने 1961 में की थी।लेकिन पासादी जैसी छात्राएं भी हैं जो नेशनल आई बैंक में नेत्रदान कर रही हैं और यह आई डोनेशन सोसायटी की गिनती में शामिल नहीं है। नेशनल आई बैंक का गठन महज पांच साल पहले ही हुआ है।

श्रीलंका में आए इस बदलाव के पीछे सिल्वा का अहम योगदान रहा है। उन्होंने एक छात्र के तौर पर 1958 में नेत्रदान की अपील की थी। उनकी पत्नी और उनकी मां भी इस मुहिम में शामिल थी। 1960 में उनकी मां का निधन हुआ और सिल्वा ने उनकी आंखों से एक गरीब किसान को रोशनी दी।बौद्ध धर्म गुरु भी नेत्रदान के लिए लोगों को प्रोत्साहित करते हैं। बौद्ध धर्म की मान्यता के मुताबिक दान करने से पुनर्जन्म में बेहतर जीवन मिलता है।माहामेवनावा बौद्ध मठ के संस्थापक किरिबाथगोडा गनानानडा थेरो जातक की कहानी सुनाते हैं। वे कहते हैं, “बौद्ध अपने पूर्व जीवन में राजा थे। एक अंधे भिखारी ने उनसे उनकी आंखे मांगी। राजा ने उसे नेत्र देने का फैसला लिया। राजा के चिकित्सक ने उनकी आंख गरीब भिखारी को लगा दी।”थेरो के मुताबिक श्रीलंका के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी ये कहानियां सुनते आए हैं और उन्हें अपने शरीर के अंगो के दान करने में हिचक नहीं होती। थेरो एक औरत की मदद के लिए अपनी एक किडनी भी दान दे चुके हैं।कॉर्निया का ट्रांसप्लांट सबसे सहज ऑपरेशन होता है, इसमें देने वाले और जरूरतमंद के बीच किसी मैचिंग की जरूरत नहीं होती। यह रक्त विहीन कोशिका है जो सीधे हवा से ऑक्सीजन ले सकता है। यह भी संभव है कि 80 साल के बूढ़े का कार्निया एक युवा को दिया जाए।

Posted By: Satyendra Kumar Singh