जहां एक ओर नासा मंगल ग्रह पर मानव जीवन की अपनी आशा को मजबूत दिशा देने में लगा है। इसके साथ ही वह दुनिया के सबसे बड़े रॉकेट परीक्षण में व्‍यस्‍त है। वह दुनिया को एक नया आयाम देने की कोशिश में जुटा है। ऐसे में अब कनाडा के अंतरिक्ष फर्म थोठ ने भी एक बड़े अविष्‍कार का ऐलान किया है। जी हां इस फर्म ने अतंरिक्ष यात्रा का एक नया रास्‍ता खोजने का प्‍लान किया है। अब वह अंतरिक्ष से महज 20 किलोमीटर की दूरी पर एक टॉवर का निमार्ण करेगा।

बुर्ज खलीफा से 20 गुना बड़ा
जी हां नासा की ओर से अंतरिक्ष में बहुयामी रास्ते तलाशने की प्रक्रिया को देखते हुए कनाडा के अंतरिक्ष फर्म थोठ भी एक बड़ी पहल करने जा रही है। कनाडा के अंतरिक्ष फर्म थोठ अब एक सदी का इतिहास बनाने की तैयारी में हैं।  यह फर्म एक दुनिया का सबसे बड़ा स्पेस टॉवर बनाने की तैयारी में हैं। इतना ही नहीं इस टॉवर पर जाने के लिए एक एलिवेटर का निर्माण भी किया जाएगा। यह स्पेश टॉवर अंतरिक्ष से ज्यादा दूर नहीं होगा।  यह टॉवर महज ब्रह्मांड से 12 मील यानी की कुल 20 किलोमीटर की दूरी पर होगा। सबसे खास बात यह है कि आप इसकी ऊंचाई का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि यह टॉवर दुनिया की सबसे ऊंची इमारत बुर्ज खलीफा से करीब 20 गुना बड़ा होगा।

टॉवर पर ईंधन की व्यवस्था

बुर्ज खलीफा दुबई में स्थित 829.8 मीटर ऊंचाई वाली दुनिया की सबसे ऊंची गगनचुंबी इमारत है।इसके अलावा कनाडा के अंतरिक्ष फर्म थोठ का दावा है कि यह टॉवर के निमार्ण और इसके एलिवेटर का खर्च भी कुछ ज्यादा नहीं होगा। इसकी पूरी लागत एक रॉकेट निमार्ण से काफी कम होगी। इसके लिए यूके की एक कंपनी ने पूरी तैयारी भी कर ली है।  कनाडा के अंतरिक्ष फर्म थोठ के इस नए प्रशंसनीय प्रोजेक्ट के पीछे डॉक्टर ब्रेडेन की अहम भूमिका है। डॉक्टर ब्रेडेन का कहना है कि उनका कहना है कि उनका मकसद है कि लोग इस टॉवर के ऊपर से 20 किलोमीटर की दूरी एक एलिवेटर की मदद से आसानी से तय कर सके। इस टॉवर के ऊपर ही अंतरिक्ष में जाने वाले विमानों के लिए पूरी ईंधन की व्यवस्था होगी।

नैनोट्यूब का प्रयोग होगा

इसके अलावा वहां पर विमानों के लौटने व उनकी अन्य गतिविधियों के लिए पूरा एकल चरण पूरा होगा। इतना ही नहीं उनका कहना है कि अंतरिक्ष लिफ्ट के लिए ग्रैफेन या फिर नैनोट्यूब का प्रयोग किया जाएगा। वहीं इस स्पेस टॉवर को लेकर यह भी कहा जा रहा है कि अंतरिक्ष के सफर को आसान करने के लिए यह कोई पहली बार की पहल नहीं इसके पहले भ कई सारे वैज्ञानिक ऐसी योजनाओं की पहल कर चुके हैं। सबसे पहले इसकी पहले रूस के एक वैज्ञानिक  कॉन्स्टेंटिन ने 1895 में  की थी, लेकिन वह भी पूरी नहीं हो पाई थी।

 

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Courtesy : www.dailymail.co.uk

Posted By: Shweta Mishra