इस व्रत को करने से शीतला देवी प्रसन्न होती हैं। इस वर्ष बुधवार 27 मार्च को अष्टमी रात 12 बजकर 16 मिनट से लग रही है जो गुरुवार 28 मार्च को रात 1 बजकर 10 मिनट तक रहेगी। अतः गुरुवार 28 मार्च को ही शीतलाष्टमी मनायी जाएगी।

शीतलाष्टमी व्रत चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। इस व्रत के करने से व्रती के कुल में दाहज्वर, पीतज्वर, विस्फोटक ज्वर, दुर्गन्धयुक्त फोड़े, चेचक, नेत्रों के समस्त रोग, शीतला की फुन्सियों चिह्न तथा शीतलाजनित दोष दूर हो जाते हैं।

शीतलाष्टमी मुहूर्त

इस व्रत को करने से शीतला देवी प्रसन्न होती हैं। इस वर्ष बुधवार 27 मार्च को अष्टमी रात 12 बजकर 16 मिनट से लग रही है, जो गुरुवार 28 मार्च को रात 1 बजकर 10 मिनट तक रहेगी। अतः गुरुवार 28 मार्च को ही शीतलाष्टमी मनायी जाएगी।

शीतलाष्टमी व्रत एवं पूजा विधि

इस दिन प्रातःकाल शीतल जल से स्नान कर " मम गेहे शीतलारोगजनितोपद्रवप्रशमनपूर्वकायुरारोग्यैश्वर्याभिवृद्धये शीतलाष्टमीव्रतमहं करिष्ये।"

ऐसे संकल्प करें। इस व्रत की विशेषता है कि इसमें शीतला देवी को भोग लगाने वाले सभी पदार्थ एक दिन पूर्व ही बना लिए जाते हैं अर्थात् शीतला माता को एक दिन का बासी (शीतल) भोग लगाया जाता है, इसलिए लोक में यह व्रत बसौड़ा के नाम से भी प्रसिद्ध है।

भोग के लिए मेवे, मिठाई, पूआ, पूरी, दाल, भात, लपसी आदि एक दिन पहले से ही बनाए जाते हैं, जिस दिन व्रत रहता है, उस दिन चूल्हा नहीं जलाया जाता। इस व्रत में रसोईघर की दीवार पर पांचो अंगुली घी में डुबोकर छापा लगाया जाता है। उसपर रोली, चावल चढ़ाकर शीतलामाता के गीत गाए जाते हैं।

सुगन्धित गन्ध-पुष्पादि से शीतला माता का पूजन-कर 'शीतलास्त्रोत' का यथासम्भव पाठ करना चाहिए तथा शीतला माता की कहानी भी सुननी चाहिए। रात्रि में दीपक जलाने चाहिए। एक थाली में भात, रोटी, दही, चीनी, जल का गिलास, रोली, चावल, मूँग की दाल का छिलका, हल्दी, धूपबत्ती, मोंठ, बाजरा आदि रखकर घर के सभी सदस्यों को स्पर्श कराकर शीतलामाता के मन्दिर में चढ़ाना चाहिए।

इस दिन चौराहे पर भी जल चढ़ाकर पूजन करने का विधान है। फिर मोंठ-बाजरा का वायना निकालकर उस पर रुपया रखकर अपनी सासजी के चरणस्पर्श कर उन्हे देने की प्रथा है। इसके बाद किसी वृद्धा को भोजन कराकर दक्षिणा देनी चाहिए।

शीतलाष्टमी कथा

किसी गांव में एक औरत रहती थी। वह बसौड़े के दिन शीतला माता की पूजा करती और ठंडी रोटी खाती थी। उसके गांव में और कोई भी शीतला माता की पूजा नहीं करता था। एक दिन उस गांव में आग लग गई, जिसमें उस औरत की झोपड़ी छोड़कर बाकी सबकी झोपड़ियां जलकर राख हो गईं। इससे सबको बड़ा आश्चर्य हुआ। सब लोगों ने उस औरत से इस चमत्कार का कारण पूछा। उस औरत ने कहा, मैं तो बसौड़े के दिन ठंडी रोटी खाती हूं, तुम लोग यह काम नहीं करते थे। इससे मेरी झोपड़ी बच गई, तुम लोगों की जल गई। तब से बसौड़े के दिन पूरे गांव में शीतला माता की पूजा होने लगी। 

शीतलाष्टमी लोकगीत

मेरी माताको चिनिये चौबारो,

दूधपूत को चिनिये चौबारो।

कौन ने मैया ईंटे थपाई,

और कौन ने घोरौ है गारो।

श्रीकृष्ण ने मैया ईंटे थपाई,

दाऊजी घोरौ है गारौ।

मेरी माताको चिनिये चौबारो...।।

गीत गाते समय श्रीकृष्ण और दाऊ जी के स्थान पर अपने परिवार के सदस्यों के नाम लिए जाते हैं।

शीतलाष्टमी पर बन रहा दुर्लभ योग

इस वर्ष शीतलाष्टमी के दिन "वरीयान" नामक योग दुर्लभ संयोग बना रहा है। वरीयान का अर्थ अपेक्षाकृत श्रेष्ठ या उत्तम होता है। इस योग में किया गया कार्य अच्छी प्रकार से सफल होता है। यह योग इष्ट एवं पूर्त्त कर्मों को करने के लिए उपयुक्त है अर्थात् इसमें लोक एवं परलोक दोनों के लिए हितकर कृत्य करना चाहिए।

— ज्योतिषाचार्य पं. गणेश प्रसाद मिश्र

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Posted By: Kartikeya Tiwari