सेक्स बदलने वाला घोंघा
लिसार्का मिलिआरिस नाम की इस प्रजाति को 1845 में पहली बार खोजा गया था. 1970 के दशक में इनके प्रजनन पर अध्ययन किया गया.
लेकिन इनके उभयलिंगी होने की जानकारी हाल ही में ब्रिटेन के साउथेम्पटन में स्थित नेशनल ओशियनोग्राफ़ी सेंटर के वैज्ञानिकों के शोध में सामने आई है.
शोधकर्ताओं के मुताबिक़ अत्यंत ठंडे वातावरण में रहने वाले ये घोंघे अपना लिंग बदल सकते हैं जिससे उन्हें प्रजनन में मदद मिलती है.
इस शोध के नतीजे 'पोलर बायोलॉजी' नाम की पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं.
वैज्ञानिक हैरान
इस शोधपत्र के प्रमुख लेखक और पीएचडी छात्र एडम रीड का कहना है, ''इससे पहले हुए प्रजनन संबंधी शोधों में सिर्फ़ अंडों के बड़े समूहों पर ध्यान दिया गया था.''
पिछले शोधों में बताया गया था कि कैसे एक मादा अपने बच्चे को जन्म से लेकर 18 महीने तक पालती है. इनसे ये भी पता चला था कि एक मादा अपने खोल में एक साथ 70 बच्चों को पाल सकती है.
लेकिन कोशिकीय स्तर पर प्रजनन के बारे में ताज़ा शोध में पता चला है कि असल में घोंघों के अंडे मादा के बजाए नर के खोल में मौजूद थे.
एडम रीड कहते हैं, ''हमें आश्चर्यजनक रूप से नर घोंघों के शरीर में बड़ी मात्रा में छोटे-छोटे अंडे मिले. ये अंडे इतने ज़्यादा थे कि एक घोंघा अपने जीवन काल में इतने बच्चे नहीं पाल सकता है.''
इस टीम के अनुसार, ''शुरुआत में इन अंडों का प्रजनन एक नर घोंघे के शरीर में होता है और बाद में इनके पूर्ण विकास के लिए नर घोंघा अपने शरीर को मादा घोंघे में बदल लेता है.''
इस तरह से लिसार्का मिलिआरिस का विकास होता है.
और शोध की ज़रूरत
रीड के अनुसार, ''दक्षिणी ध्रुव पर रहने वाले इन घोंघों में फ़िलहाल इस तरह का स्वभाव होना थोड़ा अस्वाभाविक है लेकिन शायद अगले 10 सालों में ये बिल्कुल सामान्य बात होगी.''
वो कहते हैं कि दक्षिणी ध्रुव की कई प्रजातियों पर शोध होना बाक़ी है जिससे इन घोंघों में उभयलिंगी होने के बारे में भी ज़्यादा जानकारी मिल सकती है.
फ़िलहाल इन घोंघों की इस रहस्यमयी दुनिया के बारे में विस्तार से जानकारी नहीं है क्योंकि वैज्ञानिकों को अत्यंत ठंडे दक्षिणी ध्रुव पर ज़्यादा समय तक रहने की अनुमति नहीं है.
एडम रीड के अनुसार, ''इन घोंघों में लिंग बदलने की वजह ये हो सकती है कि वो एक ही समय में नर के रूप में प्रजनन और फिर मादा के रूप में 18 महीने तक के छोटे बच्चों का पालन-पोषण एक साथ कर सकें.''
वे आगे कहते हैं, ''इससे आगे पता चलता है कि दक्षिणी ध्रुव पर रहने वाले कुछ जीवों के बारे में हम कितना कम जानते हैं और उनके बारे में और कितना जानने की ज़रूरत है.''