दुबई की दौलत का एक अनदेखा रास्ता
तेल नहीं, सोना नहीं, वो चीज़ है मानव मल.मानव मल को शोधित कर इससे इंसान की बढ़ती ज़रूरतों को पूरा करने का जुनून दुबई के एक शख्स को है.यह जुनून ही उनके जीवन का मकसद बन चुका है.मोहम्मद अब्दुल्लाजीज अल अवाधी इंसान के मल-मूत्र और कचरे को फिर से उपयोगी बनाने को लेकर बेहद उत्साहित हैं.लगभग 25 सालों से अल अवाधी दुबई के सीवेज ट्रीटमेंट सयंत्रों के निदेशक हैं.आर्थिक लाभदुबई के इस सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में शहर भर के सीवेज सिस्टम के ज़रिए करीब तीन चौथाई मानव मल-मूत्र लाया जाता है.फिर यहां इसके शोधन का काम शुरु होता है.मल को परिष्कृत कर साफ स्वच्छ पानी अलग करने के साथ साथ अन्य कई उत्पादों का निर्माण भी यहां किया जाता है.
इस परिष्कृत पानी और उत्पाद का इस्तेमाल मुख्यतः खेती-बाड़ी और बागवानी के लिए हो रहा है और इससे कई आर्थिक लाभ उठाए जा रहे हैं.अल अवाधी ने बताते है, "सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से निकला पानी शहर में बड़े पैमाने पर हो रही खेती और बागवानी के लिए इस्तेमाल किए जाने के कारण आर्थिक ऱूप से बेहद किफायती साबित हो रहा है."अल अवाधी के अनुसार मानव मल में ढेर सारे पोषक तत्व मौजूद होते हैं.
यदि इसके साथ मौजूद गंदे पानी से प्लास्टिक, लकड़ियां और अन्य बेकार चीजें हटा दी जाऐं तो इसका इस्तेमाल कई जैविक और मशीनी प्रक्रियाओं में बखूबी किया जा सकता है.अल अवाधी बताते हैं, "शहर ने हाल फिलहाल तेज़ी से विकास किया है. ऐसे में कई बार ऐसी कठिन परिस्थितियां पैदा हो गई हैं कि पानी के अनगिनत टैंकरों की लंबी लाइनें लोगों तक पहुंचने में 40 घंटे तक लगा देती है."वे आगे कहते हैं, "प्लांट बढ़ी हुई मांग के अनुपात में पूर्ति नहीं कर पा रहे. इससे लोगों को काफी मुसीबतें झेलनी पड़ रही हैं."इन नई परिस्थितियों में शहर में कई नए सीवेज ट्रीटमेंट खोले जा रहे है.सफलतामगर यह कहानी दुनिया के इस हिस्से में किसी अनोखे सीवेज ट्रीटमेंट भर की कहानी नहीं है.रेगिस्तान से घिरे इस शहर के बाहरी इलाके में एक जंगल हैं जहां दुर्लभ पक्षी और चटक रंगों वाले ड्रैगनफ्लाई से चारों तरफ दिखाई दे जाते है. यह सब इसी तरह के पानी से संभव हो रहा है.यह अल बरारी आवासीय समुदाय का इलाका भी है.यहां करीब 200 ऐसे घर हैं जिन्होंने अपने यहां मल से उपयोगी चीजों बनाने और बेहतर प्रयोग करने की एक चुस्त और कारगर व्यवस्था बना रखी है.
इससे बढ़ी हुई ज़रूरतें आसानी से पूरी कर ली जाती हैं.अल अवाधी के अनुसार, "यहां की हरी भरी खूबसूरती और प्राकृतिक वातावरण को बनाए रखने के लिए यहां के लोगों को अधिक और स्वच्छ जल की निरंतर आवश्यकता रहती है."अल अवाधी बताते हैं कि इस तरह की कार्यप्रणाली पूरी दुनिया में चर्चित हो रही है.उनके अनुसार अब उनकी यह प्रणाली मध्य पूर्व, उत्तरी अमरीका के कई क्षेत्रों में निर्यात की जा रही है.यही नहीं नाईजीरिया और घाना के अलावा सूडान में भी अपनाई जा रही है.वे बताते हैं कि इस व्यवस्था के पीछे का विज्ञान भले ही मूल रूप से जीवविज्ञान से जुड़ा हो, मगर इसके संयंत्र व्यवहार में बहुत सामान्य हैं.और इन संयंत्रों को चलाने के लिए किसी तरह की यांत्रिक कुशलता की ज़रूरत नहीं है.विशुद्ध विज्ञानपानी को दूसरे उपयोगों के लायक बनाना कठिन नहीं है.अल अवाधी कहते हैं, "हमने अपने संयंत्र में एक खास तकनीक का इस्तेमाल किया है जो एमबीआर या मेम्ब्रेन बॉयोरिऐक्टर तकनीक कहलाती है. यह बेकार गंदे पानी को पीने लायक बना देती है."
उन्होंने कहा, "हम ये नहीं कहते कि हमारा पानी आप पीने के लिए इस्तेमाल करें. मगर इसके कई और बेहतर इस्तेमाल किए जा सकते हैं. जैसे कि इस परिष्कृत पानी को औद्योगिक इलाके में प्रसंस्करण और यंत्रो को ठंडा करने में उपयोग में लाया जा सकता है."