चाइल्‍ड लेबर यानि बाल श्रम एक ऐसा अभिशाप है जिसके चंगुल में फंसकर भारत के लाखों करोंडो बच्‍चों अपना बचपन खो रहे हैं। देश भर के तमाम लघु और कुटीर उद्योगों में सस्‍ते श्रमिकों के रूप में बच्‍चों से मजदूरी कराके मालिक खूब लाभ कमा रहे हैं लेकिन उन बच्‍चों का भविष्‍य खराब करके वो देश का बड़ा नुकसान कर रहे हैं। वैसे अगर आपको लगता है कि भारत ही चाइल्‍ड लेबर का दंश झेल रहा है तो ऐसा नहीं है। आज विश्‍व की महाशक्‍ति बने अमेरिका में करीब 100 साल पहले वहां के रहने वाले बच्‍चे भी बाल श्रमिक बनकर कितनी खराब जिंदगी जी रहे थे उसकी बानगी देखिए इन ऐतिहासिक तस्‍वीरों में। अमेरिकन फोटोग्राफर लेविस हाइन की इन तस्‍वीरों में उनकी जिंदगी देखकर आपकी आंखों में आंसू आ जाएंगे।

 


अमेरिका की कपड़ा मिलों में ये छोटे मजदूर यहां काम करने वाले कुल मजदूरों के करीब 20 परसेंट के बराबर काम करते थे, लेकिन उन्हें इतना कम पैसा मिलता था, जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते।


कताई मिल की मैनुअल मशीनों के बीच खड़ी यह छोटी सी छोटी अपने रात के खाने के इंतजाम में ही पूरा दिन काम करके काट देती है। अपने भविष्य के सुनहरे सपने बुनने का उसे समय कहां?


सीफूड उद्योग में इन बच्चों को कटर्स कहा जाता था, जो बड़े चाकू से जिंदा मछलियों की हेड और टेल काटते थे। चिकनी और उछलकूद मचाती मछलियों को काटने में इन बच्चों के हाथ जब तब कटते ही रहते थे।


साल 1900 के आसपास अमेरिका में छपने वाले अखबारों को बांटने का ज्यायातर काम बच्चे ही करते थे, जिसके लिए उन्हें बहुत ही कम पैसा मिलता था। इसके विरोध में यहां बच्चों के समूहों ने कई बार हड़तालें कर अच्दे मेहनताने की मांग भी की।


इन नन्हें मुन्ने कोयला मजदूरों की हालत देखकर किसी की भी आंखों में आंसू आ जाएंगे। अमेरिका के पेन्िसलवेनिया में मौजूद कोयला खदानों में ये बच्चे 10-10 घंटे काम करते थे। इसके अलावा क्रशिंग मशीनों या कन्वेयर बेल्ट में फंसकर तमाम बच्चे अपनी जान या हाथ पैर तक गंवा देते थे।


ये नन्हीं सी मजदूर की हालत बयां करती है कि शायद आज से 100 साल पहले भारत से भी ज्यादा खराब स्थितियों में काम करने को मजबूर थे अमेरिका के चाइल्ड लेबर।

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Posted By: Chandramohan Mishra