ऐसा है राहुल गांधी का ननिहाल
अच्छा लगता है जब कोई बड़ी शख़्सियत कुछ अपने ही जैसा सोचते और करते हैं। फिर नानी से मिलने का मन तो सभी का करता है !
2006 की गर्मियों में जब हम पहली बार इटली में गए थे तो हमने सोनिया गांधी के जन्मस्थान लुज़ीआना जाने की ठान रखी थी।मैं शुरू से ही सोनिया गांधी की बहुत इज़्ज़त करती हूं। और हमेशा से ही इस जगह के बारे में भी पढ़ा करती थी।नानी से राहुल की मुलाक़ात कहाँ होगी ये स्पष्ट नहीं, मगर उनका ननिहाल तो लुज़ीयाना ही है।बस्सानो देल ग्राप्पा नामक शहर से हम गाड़ी में रवाना हुए और पहाड़ों, पर्वतों से होते हुए, लगभग दो घंटे में लुज़ीआना पहुँच गए।
अलतो पियानो के सात बड़े शहरों में से एक, यह शहर पहले विश्व युद्ध में बहुत हानि झेल चुका था।यहाँ पर रहने वाले कई लोग आपको बताएंगे कि किस तरह उनके घर के बड़े-बूढ़े उस दौरान किसी और शहर में बसने चले गए थे।
जंगलों और स्कीइंग के पहाड़ों का यह छोटा-सा शहर, युद्ध की अनेकों कहानियां ख़ुद में बसाए हुए है।जिस रेस्तरां में हम गए, वहां का मालिक क़रीब साठ वर्षीय एक हंसमुख व्यक्ति था। उसे यह जानकर बहुत ख़ुशी हुई थी कि मैं हिंदुस्तानी होने के बावजूद उनकी स्थानीय भाषा जानती थी, जो इतालवी भाषा से कुछ अलग थी।दरअसल मेरे कई मित्र वेनिस के थे और उन्होंने मुझे यहां की लोकल भाषा सिखा दी थी!श्रद्धालु दूर-दूर से इसके दर्शन के लिए आते हैं। गिरजा के भीतर की शांति मुझे आज भी याद है। वहां की अलौकिक ठंडक में मैं काफ़ी देर तक बैठी रही और सोचती रही कि समर्पण या क़ुर्बानी के बिना कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता।
लेकिन क्या हमारा समाज दूसरों के त्याग को समझता भी है?चर्च की घंटी बजने लगी और मुझे लगा कि अब चलना चाहिए।