भारत में समलैंगिकता अब अपराध नहीं, सुप्रीम कोर्ट का धारा 377 पर एेतिहासिक फैसला
नई दिल्ली (एजेंसियां)। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 पर एक फैसला सुनाते हुए समलैंगिकता को कानूनी रूप से वैध ठहरा दिया है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई में पांच जजों की बेंच ने एकमत से फैसला दिया कि लेस्बियन गे बाइसेक्शुअल ट्रांसजेंडर (एलजीबीटी) समुदाय को भी सामान्य नागरिकों की तरह ही अधिकार प्राप्त है। मानवता सर्वोपरी है और हमें एकदूसरे के अधिकारों का सम्मान करना चाहिए। समलैंगिकता को अपराध मानना अतार्किक और सही नहीं माना जा सकता।
आईपीसी 1861 के मुताबिक धारा 377 यौन संबंधों उन गतिविधियों को अपराध माना गया है जिन्हें कुदरत के खिलाफ या अप्राकृतिक माना जाता है। इसमें समलैंगिक संबंध भी शामिल हैं। जुलाई 2009 में दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में दो बालिगों के सहमति से समलैंगिक संबंध को इस धारा के तहत अपराध नहीं माना था। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर, 2013 को इस फैसले को पलटते हुए कहा था कि यह मामला संसद पर छोड़ देना चाहिए। 6 फरवरी, 2016 को नाज फाउंडेशन ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में एक क्यूरेटिव पीटिशन दाखिल कर दी। तब सीजेआई दीपक ठाकुर की अगुआई वाली एक तीन जजों की बेंच ने इस मामले से जुड़ी सभी आठ क्यूरेटिव पीटिशन को पांच जजों की संवैधानिक पीठ को रेफर कर दिया था।