नेपाल में संविधान सभा के लिए दूसरी बार चुनाव
संविधान सभा के लिए कुल 240 सदस्य 'फर्स्ट पास्ट दी पोस्ट' प्रणाली के तहत देश के 240 निर्वाचन क्षेत्रों से सीधे चुने जाएंगे. इस प्रणाली में सबसे ज़्यादा मत पाने वाले उम्मीदवार को विजेता घोषित किया जाता है.इसी तरह समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के तहत 335 सदस्यों को चुना जाएगा. शेष 26 सदस्यों को मंत्रिपरिषद राजनीतिक पार्टियों से सलाह मशविरे के बाद नामांकित करेगी.सीधे और समानुपातिक आधार पर कराए जा रहे इन चुनावों में सौ से भी अधिक राजनीतिक पार्टियों के 16 हज़ार से भी ज़्यादा उम्मीदवार भाग ले रहे हैं. इन उम्मीदवारों में छह हज़ार के करीब महिलाएँ हैं और कुछ उम्मीदवार तो निर्दलीय भी लड़ रहे हैं.
साल 2006 के जनांदोलन में नेपाल में राजशाही का तख्ता पलट दिया गया था. इन्हीं परिस्थितियों में 'नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी-माओवादी' दशक भर से चल रहे अपने सशस्त्र संघर्ष को खत्म कर मुख्यधारा की राजनीति पार्टियों के साथ हाथ मिलाते हुए इस आंदोलन में शामिल हुई थी.
महीनों की राजनीतिक उठा पटक के बाद सियासी पार्टियों ने संविधान सभा के लिए दूसरी बार चुनाव कराने का फ़ैसला किया. उसके बाद राजनीतिक पार्टियों में इस बात को लेकर झगड़ा शुरू हो गया कि चुनाव की अगुवाई करने वाली सरकार का नेतृत्व किसे करना चाहिए.इस साल मार्च के महीने में राजनीतिक पार्टियां वर्तमान मुख्य न्यायाधीश खिल राज नेगमी की अगुवाई में अंतरिम चुनावी सरकार के गठन को लेकर सहमत हो गईं. अंतरिम सरकार ने बाद में नए सिरे से चुनाव कराने के लिए 19 नंवबर 2013 की तारीख़ तय कर दी.अब क्या?संविधान सभा के लिए दूसरी बार चुनाव कराने को लेकर राजनीतिक पार्टियों में सहमति नहीं बन पा रही थी. मोहन बैद्य की अगुवाई वाले माओवादी धड़े ने इन चुनावों को ख़ारिज कर दिया है. फ़िलहाल 33 छोटी-छोटी पार्टियों के गठजोड़ का नेतृत्व कर रहे मोहन बैद्य ने चुनावों को पलीता लगाने की धमकी भी दी है.उन्होंने चुनावों से पहले ट्रांसपोर्ट की हड़ताल का आह्वान किया है. मोहन बैद्य के धड़े पर छिट-पुट हिंसक घटनाओं को अंजाम देने के आरोप भी लगे हैं.
चुनावों के बाद अस्तित्व में आने वाली संविधान सभा के सामने संविधान बनाने के अलावा इन प्रतिक्रियावादी पार्टियों की चिंताओं को जगह देना भी एक चुनौती है. इसके अलावा सरकार और संघीय ढाँचे के स्वरूप को लेकर मुख्य पार्टियों के बीच के फासले को पाटना भी है.ये चुनौतियाँ आसानी से खत्म होने वाली नहीं हैं. ख़ासकर जब ये कहा जा रहा हो कि त्रिशंकु सदन के हालात बन सकते हैं.इस संविधान सभा में क्रांतिकारियों, मध्यमार्गियों, वामपंथियों, कट्टरपंथियों, राजशाही समर्थकों, संघीय ढाँचे के पैरोकारों और इसकी मुख़ालफ़त करने वाले लोगों का बहुरंगी जत्था एक ही साथ एक ही मंच पर खड़ा होने जा रहा है.